बैतूल
भोपाल के खटलापुरा और आंध्रप्रदेश के गोदावरी ज़िले में हुए नाव हादसों के बावजूद सरकार और प्रशासन की नींद नहीं खुली है. इसकी बानगी बैतूल के सारनी में देख सकते हैं. यहां 5 हज़ार लोगों की ज़िंदगी केवल दो बेहद जर्जर हो चुकी नावों के भरोसे है. सैकड़ों लोग रोज़ अपनी ज़िंदगी दांव पर लगाते हैं. यहां नाव का इस्तेमाल क्यों और कैसे होता है ये देखकर कोई भी हैरान रह जाए.
दो नाव के सहारे ज़िंदगी- नए भारत में ऐसी जोख़िम भरी तस्वीर भी एक कड़वी हक़ीक़त हैं. एक जर्जर हो चुकी नाव पर तीन चार बाइक,साइकल,बोरियां और लोग जिनके पास खुद को बचाने ना कोई लाइफ जैकेट है और ना कोई दूसरा इन्तेज़ाम. ऐसा नज़ारा बैतूल में सारनी के पास राजडोह नदी में रोज देखा जा सकता है.नदी में पूरे साल पानी रहता है. इस नदी के दूसरे छोर पर छह गांव हैं. गांव में रहने वाले लोगों को रोज़मर्रा के काम के लिए सारनी आना पड़ता है. लेकिन इनकी मजबूरी ये है कि इसके लिए केवल एक ही रास्ता है नदी का. और ज़रिया सिर्फ नाव. उस पर लोग अपनी मोटरसाइकिल से लेकर राशन तक लादकर नदी पार करते हैं. ये कोई एक दो दिन या महीनेभर की बात नहीं बल्कि रोज़ की आम बात है.
रोज़ जोख़िम-आज़ादी के बाद से आज तक ग्राम पंचायत लोनिया,राजेगांव सहित आधा दर्जन गांव टापू बने हुए हैं. राजडोह नदी ने इन्हें अलग थलग कर रखा है. सारनी और बैतूल पहुंचने के लिए नाव के अलावा कोई दूसरा साधन नहीं है. सारनी से लोनिया और लोनिया से सारनी या अन्य जगह जाने वाले शिक्षक छात्र ,व्यापारी ,मजदूर और नौकरीपेशा लोग रोज़ अपनी जान जोखिम में डालकर राजडोह नदी को पार करते हैं.बारिश के मौसम में तो इनकी ज़िंदगी ही थम जाती है.
सबसे बड़ी परेशानी यहां तब होती है जब भारी बारिश या फिर रात के समय नाव नहीं चलती और कोई बीमार हो जाए या किसी गर्भवती को अस्पताल पहुंचाने की नौबत हो. ऐसे हालात में लोग केवल भगवान को ही याद करते हैं.
आज़ादी के बाद पहली बार साल 2012 यहां एक पुल बनकर तैयार हुआ था लेकिन वो पहली ही बारिश झेल नहीं पाया और टूटकर बह गया.जिसके बाद लोगों की ज़िंदगी दोबारा इन नावों के भरोसे आ गई. यहां केवल दो नाव हैं और वो भी बेहद जर्जर. इनके कारण कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है.
राजडोह घाट पर कई बार छोटे बड़े हादसे होना आम बात है. यहां के लोगों ने कई बार प्रशासन और सरकार से पुल बनाने की मांग की लेकिन जब किसी ने नहीं सुना तो इन्होंने खामोशी से इन दो नावों को ही हमराह मानकर अपना लिया.