देखी सुनी

हैसियत का पैमाना बड़ा दिल : कुछ देने के लिए हैसियत नही दिल बड़ा होना चाहिए

जाह्नवी वर्मा भोपाल
पुरानी साडिय़ों के बदले बर्तनों के लिए मोल भाव करती सम्पन्न घर की महिला ने अंत में दो साडिय़ों के बदले एक टब पसंद किया। नहीं दीदी, बदले में तीन साडिय़ों से कम तो नही लूंगा, बर्तन वाले ने टब को वापस अपने हाथ में लेते हुए कहा। अरे भैया, एक एक बार की पहनी हुई तो हैं, बिल्कुल नए जैसी। एक टब के बदले में तो, ये दो भी ज्यादा हैं, मैं तो फिर भी दे रही हूं। नहीं-नहीं, तीन से कम में तो नहीं हो पाएगा, वह फिर बोला।

एक दूसरे को अपनी पसंद के सौदे पर मनाने की इस प्रक्रिया के दौरान गृह स्वामिनी को घर के खुले दरवाजे पर देखकर सहसा गली से गुजरती अद्र्ध विक्षिप्त महिला ने वहां आकर खाना मांगा। आदतन हिकारत से उठी महिला की नजरें उस महिला के कपड़ों पर गयी। अलग-अलग कतरनों को गांठ बांध कर बनायी गयी उसकी साड़ी उसके युवा शरीर को ढंकने का असफल प्रयास कर रही थी।

 

एकबारगी उसने मुंह बिचकाया पर सुबह-सुबह का याचक है, सोचकर अंदर से रात की बची रोटियां मंगवायी। उसे रोटी देकर पलटते हुए उसने बर्तन वाले से कहा, तो भैय्या क्या सोचा दो साडिय़ों में दे रहे हो या मैं वापस रख लूं। बर्तन वाले ने उसे इस बार चुपचाप टब पकड़ाया और अपना ग_र बांध कर बाहर निकला।

अपनी जीत पर मुस्कुराती हुई महिला दरवाजा बंद करने को उठी तो सामने नजर गयी, गली के मुहाने पर बर्तन वाला अपना ग_र खोलकर उसकी दी हुई साडिय़ों में से एक साड़ी उस अद्र्ध विक्षिप्त महिला को दे रहा था।

बर्तन वाला तीन की जगह दो साड़ी में सौदा कर गया और उन दो में से भी एक उसने जरूरतमंद की मदद में दान कर दी। उसका बड़ा दिल और अपनी हैसियत देखकर हाथ में पकड़ा हुआ टब उसे अब चुभता हुआ सा महसूस हो रहा था।

कुछ देने के लिए हैसियत नही दिल बड़ा होना चाहिए। आपके पास क्या है और कितना है, यह कोई मायने नहीं रखता है। आपकी सोच व नीयत का सर्वोपरि होना आवश्यक है और ये वही समझता है, जो इन परिस्थितियों से गुजरा हो।

>

About the author

admin administrator

Leave a Comment