देखी सुनी

सामाजिक एकता के सूत्रधार जननायक कर्पूरी ठाकुर

शिवकुमार सेन की कलम से

जातीय संगठन का नेतृत्व करने वाले कुछ तो मदन मोहन मालवीय विचारधारा तो कुछ दीनदयाल उपाध्याय, कुछ लोहिया विचारधारा के अनुयाई हैं, जिसके कारण समाज में एकता और विकास के सारे दरवाजे बंद कर दिए

आज के समय में जितने भी जातीय संगठन चल रहे हैं, कहीं न कहीं विचारधारा के अभाव से ग्रसित हैं। जिसका अर्थ यह है कि हमें मंजिल का पता नहीं और हम मंजिल की तरफ निकल पड़े। निश्चित तौर पर आदिकाल में हमारे समाज का इतिहास गौरवशाली रहा है, परंतु वेद मंत्रों के कारण हमारी मानसिकता को बदल कर रख दिया।

हम वेद मंत्रों से इतना ग्रसित हो गए कि हम अपने इतिहास को भूल बैठे। आज भी हम यह कह सकते हैं कि हम अपनों का नहीं, बल्कि दूसरों के सम्मान में ज्यादा विश्वास रखते हैं, जो हमारी कमजोरी का मुख्य कारण है। जातीय संगठन का नेतृत्व करने वाले कुछ तो मदन मोहन मालवीय विचारधारा तो कुछ दीनदयाल उपाध्याय, कुछ लोहिया विचारधारा के अनुयाई हैं। जिसके कारण समाज में एकता और विकास के सारे दरवाजे बंद कर दिए।

समाज के लोग आज भी गलती में गलती दोहरा रहे हैं। हम जननायक कर्पूरी ठाकुर की विचारधारा की बात करें, जिन्होंने दलित, अति पिछड़ा वर्ग को वर्गीकृत अर्थात आरक्षण में आरक्षण कर समाज को मुख्यधारा से जोडऩे का काम किया। ठीक इसी प्रकार बाबा साहब अंबेडकर के माध्यम से लोकतंत्र में समान अधिकार न्याय आने का संवैधानिक स्वतंत्रता मिली, परंतु अति पिछड़े वर्गों के लोगों का शासन सत्ता में भागीदारी नहीं होने की वजह से न्याय पाने से आज भी वंचित हैं।

आज समाज को चिंतन मनन करना चाहिए। हम किसकी विचारधारा को अपनाकर मंजिल तक पहुंच सकते हैं। मेरा ऐसा मत है, हमें जननायक कर्पूरी ठाकुर की विचारधारा पर चलने की आवश्यकता है। अगर हम बाबा साहब अंबेडकर विचारधारा पर चलें या दोनों पर चलें तो शासन सत्ता न्याय की उम्मीद की जा सकती है।

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