साइनस के नाम से तो हर कोई वाकिफ हैं, लेकिन साइनोसाइटिस के बारे में आप जानते हैं? ये सुनने में तो साइनस के तरह ही लगता है लेकिन इसे लक्षण इससे बहुत अलग हैं। साइनोसाइटिस के बारे में जानने से पहले साइनस के बारे में जान लें। साइनस हमारे सिर के विभिन्न हिस्सों में मौजूद कैविटीज (खोखले छेद) होते हैं- गाल की हड्डियों, नाक के दोनों ओर, दोनों आंखों के बीच और माथे में. साइनस एक-दूसरे से जुड़े होते हैं और आमतौर पर हवा से भरे होते हैं. साइनस एक श्लेष्म झिल्ली (म्यूकस मेंबरांस) से जुड़े होते हैं, जो हवा में गंदगी या अन्य कणों को रोककर साइनस को साफ रखती हैं। इसके प्रभावित होने से शुष्क वातावरण में सांस लेने में दिक्कत होने लगती है।
जब साइनस तरल पदार्थ से ब्लॉक हो जाते हैं, तो इसकी लाइनिंग (अस्तर) में सूजन आ सकती है और इससे बैक्टीरिया अंदर आ सकते हैं, जो संक्रमण का कारण बनते हैं, जिसे हम साइनोसाइटिस कहते हैं। इससे म्यूकस बन सकता है (नाक बहना), जिससे दर्द और बेचैनी के साथ सांस लेने में मुश्किल हो सकती है।
क्या हैं इसके लक्षण
सिर में दर्द और भारीपन
आवाज में बदलाव
बुखार और बेचैनी
आंखों के ठीक ऊपर दर्द होना
दांतों में दर्द
सूंघने और स्वाद की शक्ति कमजोर होना
बाल सफेद होना
नाक से पीले रंग का द्रव गिरने की शिकायत
क्या है कारण
आमतौर पर साइनस की इस समस्या का मुख्य कारण धूल और प्रदूषण है। युवाओं में यह बीमारी ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। कामकाजी युवा बार-बार घर से बाहर निकलते हैं। इसी दौरान धूल और वायुमंडल में फैला प्रदूषण उनकी नाक में चला जाता है, जो बाद में साइनस की बीमारी का कारण बन जाता है। इसके अलावा एलर्जी, नाक में टय़ूमर या नाक की हड्डी का टेढ़ा होना या चोट की वजह से भी साइनस की समस्या पैदा हो सकती है। यह बीमारी आनुवंशिक भी होती है, इसलिए कई बार लोग इस कारण भी साइनस की चपेट में आ जाते हैं।
आठ में से एक है इससे परेशान
लाखों लोग हर साल इसकी चपेट में आते हैं। डॉक्टर की मानें तो हर साल आठ में से एक व्यक्ति इससे परेशान हैं।इसमें पहले जुकाम और प्रदूषण की वजह से गले में खिंचखिंच पैदा होती है। इसी के साथ नाक बंद होना, नाक बहना और बुखार जैसी शिकायतें होने लगती हैं। अगर ये लक्षण कई दिनों तक बने रहें तो ये एक्यूट साइनोसाइटिस हो सकता है। अगर साइनोसाइटिस बार-बार होने लगे या तीन महीने से ज्यादा समय तक बना रहे तो ये क्रोनिक साइनोसाइटिस हो सकता है।
भाप लें
साइनोसाइटिस की समस्या को कम करने के लिए भाप एक सीधा और सटीक इलाज हैं। सभी किस्म के कफ और सर्दी का इलाज करने के लिए एक घरेलू नुस्खा है। भाप बंद नाक को खोलने में मदद करती है और जमे हुए म्यूकस को ढीला करती है। इसके अलावा आप हॉट शॉवर के जरिए भी भाप को अवशोषित कर सकते हो। जब आप भाप लें तो पानी में पिपरमिंट, यूकेलिप्टस या रोज मैरी एसिंशियल ऑयल की कुछ बूंदें डाल देने से भाप के असर में और सुधार हो सकता है।
मसाला या हर्बल चाय
साइनोसाइटिस की समस्या को दूर करने में मसालेदार ‘चाय' भी बड़ी भूमिका निभाता है, चाय में हल्दी, अदरक और शहद मिलाकर पीने से साइनोसाइटिस की समस्या दूर हो जाती है। इन तीनों में एंटी-इनफ्लेमेंटरी गुण होता है, जो संक्रमण से लड़ने के साथ साइनोसाइटिस की समस्या को दूर कर देता हैं।
2 कप पानी उबालें और एक बड़ा चम्मच कसा हुआ अदरक और 1/2 चम्मच हल्दी पाउडर मिलाएं। पांच मिनट उबालें और इसमें एक चम्मच शहद मिला लें। इसे दिन में कई बार पीएं। चाहें तो हल्दी के साथ थोड़ा दालचीनी पाउडर भी मिला सकते हैं।
कोल्ड और वार्म कंप्रेस
कोल्ड और वार्म कंप्रेस के कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं और ये साइनोसाइटिस में भी काम करते हैं। बारी-बारी से वार्म और कोल्ड कंप्रेस लेने से साइनस में जमे म्यूकस को ढीला करके बाहर निकालने में मदद करता है, जिससे नाक की सफाई होती है और इससे जुड़ा दर्द भी कम होता है।
नेजल इरिगेशन
साइनोसाइटिस के लिए सबसे प्रभावी इलाज है नेजल इरिगेशन, जिसे सेलाइन वॉश भी कहा जाता है। इसमें सेलाइन सॉल्यूशन के जरिए नाक को साफ और मौजूद म्यूकस को पतला किया जाता है, ताकि वो आसानी से बाहर निकल सके। ये या तो स्प्रे बॉटल या नेति पॉट की मदद से करते हैं।
हाइड्रेड रहें
साइनस के भीतर म्यूकस (श्लेष्म) झिल्ली को नम रखने में मदद के लिए उचित हाइड्रेशन महत्वपूर्ण है। शरीर में पर्याप्त मात्रा में पानी ड्राइनेस से निपटने में मदद करता है और तेजी से ठीक होने में मदद करता है।
इसे गंभीरता से लें
आमतौर पर लोग साइनोसाइटिस के प्रति ज्यादा गंभीर नहीं होते। यह बहुत ही कम लोग जानते हैं कि यदि समय पर उपचार न किया जाए तो संक्रमण नाक, दिमाग, आंख और गले तक भी पहुंच सकता है। इसके बढ़ जाने से गले के ऊपरी भाग के कैंसर के शिकार भी हो सकते हैं। इससे धीरे-धीरे रोगी की आवाज में परिवर्तन आने लगता है। स्थिति गंभीर होने पर श्वसन नली में संक्रमण से ब्रोंकाइटिस तथा फेफड़ों में सिकुड़न से दमा भी हो सकता है।