भोपाल
मप्र सहित देश के अधिकांश हिस्सों में डॉक्टरों की भारी कमी है। डॉक्टरों की कमी के चलते ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवायें बदहाल हैं। सरकार ने 2002 में अनिवार्य ग्रामीण सेवा बंधपत्र (बांड) का नियम लागू किया था। इसके तहत एमबीबीएस की पढाई पूरी करने के बाद डॉक्टरों को दो साल गांव में सेवायें देने का नियम बनाया गया था। लेकिन बाद में डॉक्टरों के आंदोलन के बाद इसे एक साल कर दिया गया।
बांड का नियम बनाकर प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों के अधिष्ठाता पढकर निकलने वाले डॉक्टरों की निगरानी करना भूल गये। और पढाई पूरी करने के बाद डॉक्टर इसी का लाभ उठाकर गायब हो गये न बांड की राशि जमा की और न ही एक साल की ग्रामीण सेवायें दीं। मामले की चूक का विभाग को तब पता चला जब एक डॉक्टर के परिवारिक विवाद की शिकायत उसके ससुर ने चिकित्सा शिक्षा विभाग में की।
प्रदेश के 6 चिकित्सा महाविद्यालयों से एमबीबीएस और पीजी की पढाई करने के बाद डॉक्टर बिना गांव गये गायब हो गये। पढाई के बहाने कॉलेजों से अपने मूल दस्तावेज लेकर डॉक्टर बिना ग्रामीण सेवा दिए और बांड भरे नौकरी करने चले गये। चूक का पता चलने के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग ने सभी कॉलेजों के डीन को पत्र लिखकर जानकारी मंगाई तो पता चला कि 3899 चिकित्सा छात्र पढाई पूरी कर कॉलेजों से निकल गये।