छत्तीसगढ़

सब्सिडी में ई-रिक्शा मिलने से आत्मनिर्भर हुईं गायत्री, सेरूना और मंजू

धमतरी
शासन की किंचित सहायता और आमजनता की थोड़ी सी जागरूकता से जीवन में ऐतिहासिक परिवर्तन आते हैं। ऐसा ही बदलाव ग्रामीण महिलाओं के जीवन में आया है। जो महिला कृषि मजदूर के तौर पर मात्र 100 रूपए के लिए दिनभर फावड़ा, तगाड़ी चलाकर रोजाना जूझती थीं, वही अब अपने हाथों में ई-रिक्शा का हैण्डल थामकर अपने परिवार को खुशहाल बनाने के लिए अच्छी-खासी आमदनी अर्जित कर रही हैं। ग्राम कोर्रा की श्रीमती गायत्री साहू, कोसमर्रा की श्रीमती सेरूना बंजारे और पचपेड़ी की श्रीमती मंजू साहू अपने गांव से बाहर निकल शहर में ई-रिक्शा में सवारी बिठाकर प्रतिदिन औसतन 400-500 रूपए कमा रही हैं।

ग्राम कोर्रा (गातापार) की 30 वर्षीय श्रीमती गायत्री साहू ने बताया कि उनके पति खेतिहर मजदूर हैं और लगभग डेढ़ साल पहले वह भी खेती मजदूर के तौर पर 100 रूपए रोजी कमाकर जैसे-तैसे अपना और अपने तीन बच्चों का भरण-पोषण करती थीं। इसी बीच ई-रिक्शा के बारे में पता चला। पहले तो घरवालों ने रिक्शा चलाने के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। फिर शासन से सब्सिडी मिलने की जानकारी दी, जैसे-तैसे उन्हें समझा-बुझाकर रिक्शा के लिए फॉर्म भरा। तदुपरांत देना आरसेटी से 15 दिनों का रिक्शा चालन का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद कुल एक लाख 90 हजार में लिथियम बैटरीयुक्त ई-रिक्शा कैनरा बैंक की कुरूद ब्रांच के माध्यम से फायनेंस कराया। इसमें एक लाख 10 हजार रूपए की सब्सिडी रूर्बन योजना के तहत प्राप्त हुई, जबकि श्रम विभाग की ओर से 50 हजार रूपए की सब्सिडी मिली। हितग्राही को सिर्फ 30 हजार रूपए और ब्याज के साथ जमा करना था। अंतत: गायत्री को जून 2018 में ई-रिक्शा मिला, जिसके बाद वो रोजाना अपने गांव से धमतरी शहर आकर सवारी गाड़ी चलाती हैं। अब वह रोजाना 400 से 500 रूपए तक आय अर्जित कर न सिर्फ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो चुकी हैं, बल्कि अपने परिवार को आर्थिक रूप से सक्षम भी बना रही हैं। शासन की इस योजना से गायत्री के जीवन-यापन, रहन-सहन में काफी बदलावा आया है।

>

About the author

info@jansamparklife.in

Leave a Comment