इंदौर
देश में सफाई में नंबर-1 इंदौर नगर निगम (Indore Municipal Corporation) आजकल तंगहाली के दौर से गुजर रहा है. निगम के सामने कर्मचारियों की सैलरी और बिजली का बिल भरने तक की समस्या खड़ी हो गई है. ऐसे में निगम के सामने चौथी बार सफाई (Cleanliness survey) में नंबर-1 बनने की राह में चुनौतियां खड़ी हो गई हैं. राज्य सरकार (Kamalnath Government) द्वारा नगर निगमों के बजट में कटौती करने से यह स्थिति आई है. इसको लेकर मेयर मालिनी गौड़ (Mayor Malini Gaur) ने धरने पर बैठने की चेतावनी दी है. उनका कहना है कि सरकार ने प्रदेश की नगर निगमों के एक हजार करोड़ रुपए काट लिए हैं, जिससे हालात खराब हैं. ऐसे में इंदौर का सफाई में चौथी बार नंबर-1 आना चुनौती बनता जा रहा है
इंदौर को सफाई में अव्वल रखने में नगर निगम के आर्थिक हालात बड़ी बाधा खड़ी कर रहे हैं. राज्य सरकार ने हर महीने चुंगी क्षतिपूर्ति 48 करोड़ से घटाकर 31 करोड़ रुपए कर दिए हैं, निगम को यह राशि भी नहीं मिल पा रही है. ऐसे में बजट के संकट ने कर्मचारियों की तनख्वाह-पेंशन बांटने के अलावा बिजली बिल भरने तक का संकट खड़ा हो गया है. नगर निगम 22 करोड़ रुपए महीने का बिजली का बिल नहीं भर पा रहा है. वहीं, ठेकेदारों का 425 करोड़ रुपए का पेमेंट भी रुक गया है. इस कारण ठेकेदार आए दिन काम रोकने की धमकी दे रहे हैं. पेमेंट को लेकर ठेकेदार एक बार हड़ताल पर भी जा चुके हैं. ऐसे में मेयर मालिनी गौ़ड़ ने सरकार के खिलाफ धरने पर बैठने की चेतावनी दी है.
इंदौर नगर निगम को स्वच्छता के लिए 7 स्टार रेटिंग पाने को कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है. दरअसल इस बार स्वच्छता सर्वेक्षण के लिए कई कड़े नियम बनाए गए हैं. इसमें एक कचरा प्रबंधन शुल्क वसूली का भी है. यदि किसी शहर में 75 फीसदी से कम शुल्क वसूली हुई, तो रेटिंग के अंक कम हो जाएंगे. लिहाजा निगम के सामने बड़ी चुनौती है कि वो कैसे इतनी बड़ी राशि वसूल कर पाता है. अफसरों के मुताबिक आबादी और मकान-दुकानों की संख्या के लिहाज से हर साल निगम को स्वच्छता शुल्क के रुप में 63 करोड़ रुपए मिलना चाहिए, लेकिन 2017- 18 में 13 करोड़ और 2018-19 में 17.29 करोड़ रुपए ही मिल पाए. इस साल अब तक करीब 15 करोड़ रुपए आ चुके हैं, लेकिन 75 फीसदी राशि के लिए आंकड़े का 50 करोड़ के करीब पहुंचना जरूरी है. अब जबकि स्वच्छता सर्वे के लिए टीम के आने में सिर्फ एक महीने का समय बचा है, इंदौर नगर निगम के सामने 35 करोड़ रुपए जमा करने की चुनौती है. निगम अधिकारियों का कहना है कि पिछले साल की बकाया राशि और इस साल की वसूली का टारगेट सौ करोड़ का है. लोग राशि जमा नहीं करेंगे तो निगम उनकी संपत्ति की कुर्की करेगा.
मध्यप्रदेश में 16 नगर निगम हैं, जिनमें बीजेपी के मेयर सत्तासीन हैं. बीजेपी की सरकार के दौरान इन निगमों को राज्य सरकार से पूरा सपोर्ट मिल रहा था, लेकिन आरोप है कि कांग्रेस सरकार आने के बाद बीजेपी शासित नगर निगमों को पूरा बजट नहीं मिल पा रहा है. इसलिए ये मेयर सरकार के खिलाफ भोपाल में कई बार धरने की बात भी कह चुके हैं. इधर, राज्य सरकार के पास भी पैसे की कमी है. सरकार का खजाना खाली है और राज्य पर करीब दो लाख करोड़ का कर्ज भी है. ऐसे में हालात दिनों-दिन बिगड़ते चले जा रहे हैं.