नई दिल्ली
कैबिनेट में NPR-2020 के लिए मंगलवार को 8,500 करोड़ रुपये का बजट मंजूरनेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटीजन (NRIC) की दिशा में है दूसरा बड़ा कदमइसके द्वारा ‘अवैध प्रवासियों’ और ‘संदिग्ध नागरिकों’ की पहचान भी की जाएगी‘संदिग्ध नागरिक’ कौन होगा इसके बारे में अभी कोई परिभाषा नहीं तय की गई है केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) के लिए मंगलवार को 8,500 करोड़ रुपये का बजट मंजूर किया. देशभर में नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटीजन (NRIC) तैयार करने की दिशा में सरकार का यह दूसरा बड़ा कदम है. इसके पहले 31 जुलाई, 2019 को सरकार ने ऑफिशियल गजट में नोटिफिकेशन के द्वारा एनपीआर के लिए कदम आगे बढ़ाए थे.
क्या है NRIC
नरिक असल में NRC ही है, बस अंतर यह होगा कि इसमें असम को शामिल नहीं किया जाएगा, जहां पहले ही एनआरसी लागू हो चुका है. देशभर में NRIC लागू करने से पहले एनपीआर तैयार किया जाएगा, जिसकी बाद में जांच और पुष्टि की जाएगी. इसमें न केवल ‘सामान्य निवासियों’ की सूची तैयार की जाएगी बल्कि ‘अवैध प्रवासियों’ और ‘संदिग्ध नागरिकों’ की पहचान भी की जाएगी.
देशभर में अभी नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 (CAA) और एनआरसी का विरोध हो रहा है, क्योंकि इसमें बाहर से आए मुस्लिमों को नागरिकता नहीं देने की बात कही गई है, लेकिन एनपीआर में ‘संदिग्ध नागरिकता’ की पहचान की बात कही गई है. ‘संदिग्ध नागरिकता’ का प्रावधान सिटीजनशिप रूल्स, 2003 (रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटीजन्स ऐंड इश्यू ऑफ नेशनल आइडेंडिटी कार्ड्स) में दिया गया है, जिसके तहत ही NPR तैयार किया जा रहा है.
क्या है ‘संदिग्ध नागरिकता’? कौन माना जाएगा ‘संदिग्ध नागरिक’
2003 रूल्स के उपनियम (4) के नियम 4 में कहा गया है कि, ‘जनसंख्या रजिस्टर (NPR) के वेरिफिकेशन प्रक्रिया के दौरान किसी व्यक्ति या परिवार को ‘संदिग्ध नागरिक’ या ‘संदिग्ध नागरिकता’ माना जा सकता है. अब सवाल उठता है कि ‘संदिग्ध नागरिकता’ क्या है? आखिर किस आधार पर कोई व्यक्ति या परिवार को ‘संदिग्ध नागरिक’ माना जा सकता है?
पहली बात, 2003 रूल्स में ‘संदिग्ध नागरिकता’ को परिभाषित नहीं किया गया है. यहां तक कि मुख्य कानून यानी 1955 के सिटीजनशिप एक्ट में भी इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है. सिटीजनशिप (संशोधन) एक्ट 2003 आने के बाद 2003 रूल्स लाए गए थे. दूसरे, एनपीआर और एनआरआईसी तैयार करने के लिए जिस 2003 रूल्स के तहत जो बुनियादी नियम और प्रक्रियाएं उपलब्ध की गई हैं, उनमें भी यह नहीं बताया गया है कि किसी व्यक्ति या परिवार को 'संदिग्ध' किस तरह से माना जाएगा. इसमें बस यही कहा गया है कि 'लोकल रजिस्ट्रार' इसे तय करेगा (उपनियम (4) नियम 4).
अधिकारियों के रहमोकरम पर होगा सबकुछ!
एक बार जब कोई व्यक्ति या परिवार 'संदिग्ध' नागरिक मान लिया जाएगा, तो (a) उससे कहा जाएगा कि वह 'निर्धारित प्रोफार्मा' में कुछ जानकारियां दे और (b) उसे NRIC में शामिल किया जाए या नहीं इस बारे में अंतिम निर्णय से पहले उसे 'सब-डिस्ट्रिक्ट (तहसील या तालुका) रजिस्ट्रार' के सामने अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाएगा.
इस तरह एक तहसील या तालुका के रजिस्ट्रार को यह तय करने का पूरा अधिकार होगा कि कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक होगा या नहीं और जो प्रोफार्मा इस आधार होगा, उसके बारे में भी कुछ तय नहीं किया गया है. तो यह साफ है कि यह पूरी कवायद स्थानीय अधिकारियों की मनमर्जी पर आधारित होगी और इसलिए इसमें इस बात की जबरदस्त गुंजाइश है कि इसमें मनमानापन हो या इसका दुरुपयोग हो. जनसंख्या रजिस्टर के प्रकाशन और किसी के नाम शामिल करने न करने पर आपत्ति के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं, लेकिन इसके उपखंड (6) में जो प्रावधान हैं उससे कितना नुकसान होगा इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता.
'संदिग्ध नागरिकता' के प्रावधान से किसे हो सकता है नुकसान
'संदिग्ध नागरिक' तय करने का जिस तरह से अधिकारियों को असीमित पावर मिल रहा है उससे साफ है कि इस श्रेणी में कोई भी आ सकता है. संवैधानिक एक्सपर्ट और हैदराबाद की NALSAR लॉ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर फैजान मुस्तफा कहते हैं, 'आज के ध्रुवीकरण वाले माहौल में इस कठोर कानून के द्वारा नागरिकता के दायरे से बाहर करने के लिए मुख्य शिकार मुसलमान, उदारवादी और राजनीतिक विरोधी हो सकते हैं. इसी तरह गरीबों, निरक्षरों, भूमिहीनों, महिलाओं और अनाथ लोगों को भी संदिग्ध नागरिक माना जा सकता है. इससे भ्रष्टाचार को भी काफी बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि संदिग्ध का ठप्पा हटाने के लिए अधिकारी घूसखोरी कर सकते हैं.'