एक जंगल में एक संत अपनी कुटिया में रहते थे। एक किरात (शिकारी), जब भी वहां से निकलता संत को प्रणाम ज़रूर करता था। एक दिन किरात संत से बोला की बाबा मैं तो मृग का शिकार करता हूं, आप किसका शिकार करने जंगल में बैठे हैं.? संत बोले-श्री कृष्ण का, और फूट फूट कर रोने लगे। किरात बोला अरे, बाबा रोते क्यों हो? मुझे बताओ वो दिखता कैसा है? मैं पकड़ के लाऊंगा उसको। संत ने भगवान का वह मनोहारी स्वरूप वर्णन कर दिया, कि वो सांवला सलोना है, मोर पंख लगाता है, बांसुरी बजाता है।
किरात बोला-बाबा जब तक आपका शिकार पकड़ नहीं लाता, पानी भी नहीं पियूंगा। फिर वो एक जगह जाल बिछाकर बैठ गया। तीन दिन बीत गए प्रतीक्षा करते-करते, दयालू ठाकुर को दया आ गयी, वो भला दूर कहां है, बांसुरी बजाते आ गए और खुद ही जाल में फंस गए।
किरात तो उनकी भुवन मोहिनी छवि के जाल में खुद फंस गया
किरात तो उनकी भुवन मोहिनी छवि के जाल में खुद फंस गया और एक टक श्याम सुंदर को निहारते हुए अश्रु बहाने लगा। जब कुछ चेतना हुयी तो बाबा का स्मरण आया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा, शिकार मिल गया, शिकार मिल गया, शिकार मिल गया और ठाकुरजी की ओर देख कर बोला, अच्छा बच्चू तीन दिन भूखा प्यासा रखा, अब मिले हो और मुझ पर जादू कर रहे हो। शयाम सुंदर उसके भोलेपन पर रीझे जा रहे थे एवं मंद-मंद मुस्कान लिए उसे देखे जा रहे थे। किरात, कृष्ण को शिकार की भांति अपने कंधे पे डालकर और संत के पास ले आया।
किरात के कंधे पे श्री कृष्ण हैं और जाल में से मुस्कुरा रहे हैं
बाबा, आपका शिकार लाया हूं। बाबा ने जब ये दृश्य देखा तो क्या देखते हैं किरात के कंधे पे श्री कृष्ण हैं और जाल में से मुस्कुरा रहे हैं। संत के तो होश उड़ गए, किरात के चरणों में गिर पड़े, फिर ठाकुर जी से कातर वाणी में बोले- हे नाथ मैंने बचपन से अब तक इतने प्रयत्न किये। आप को अपना बनाने के लिए घर बार छोड़ा, इतना भजन किया आप नहीं मिले और इसे तीन दिन में ही मिल गए।
भगवान तो भक्तों के संतों के आधीन ही होते हैं
भगवान बोले-इसका तुम्हारे प्रति निश्छल प्रेम व कहे हुए वचनों पर दृढ़ विश्वास से मैं रीझ गया और मुझ से इसके समीप आये बिना रहा नहीं गया। भगवान तो भक्तों के संतों के आधीन ही होते हैं। जिस पर संतों की कृपा दृष्टि हो जाय, उसे तत्काल अपनी सुखद शरण प्रदान करते हैं। किरात तो जानता भी नहीं था की भगवान कौन हैं। पर संत को रोज प्रणाम करता था। संत प्रणाम और दर्शन का फल ये है कि तीन दिन में ही ठाकुर मिल गए। यह होता है संत की संगति का परिणाम।
संत मिलन को जाईये तजि ममता अभिमान,
ज्यों-ज्यों पग आगे बढ़े कोटिन्ह यज्ञ समान