छत्तीसगढ़

शौर्य और धैर्य के साथ मन-बुद्धि में संतुलन जरूरी – दीदी मंदाकिनी

रायपुर
सद्गुण सब में है पर उसका प्रयोग किस दिशा में किस लिए कर रहे है और उसकी सार्थकता क्या है यह सबसे बड़ी कसौटी है जीवन की। सर्वहित में उसका उपयोग होगा तभी उसकी सार्थकता है। जिस प्रकार माँ गंगा बगैर किसी से भेदभाव किए समान रुप से सभी को पवित्रता और शुद्धता प्रदान करती है, यही सद्गुण हनुमानजी महाराज में भी है। शौर्य और धैर्य के साथ मन और बुद्धि में जो संतुलन बनाकर चलेगा वही राम काज कर सकेगा।

मानस मर्मज्ञ दीदी मंदाकिनी ने हनुमान चालीसा प्रसंग को मानव जीवन से जोड़ते हुए विभिन्न सूत्र साधकों को बताए। रामकाज की बात तो हम करते है सेवा के नाम पर कई सारी संस्थाएं चल रही है पर काम क्या हो रहे है यह आत्म निरीक्षण का विषय है। यदि आप में ताकतवर होने का गुण है तो उसका उपयोग भी समाजहित में करें। आजकल के बलवान या तो अस्पताल पहुंच जाते है या थाना। रामकाज वही कर सकता है जो शौर्य और धैर्य के साथ मन और बुद्धि रुपी पहिया को संतुलित कर आगे बढ़ेगा। संसारी जीव के सर्वहिताय संसार काज ही तो राम काज है। बल के साथ विवेक और विनय (विनम्रता) का होना भी जरुरी है। दूसरों के प्रति आदर-सम्मान रखना चाहिए।

सांसारिक व्यक्ति अपने दुगुर्णों को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं होता है यह हमारी – तुम्हारी नहीं सामूहिक आत्मनिरीक्षण का विषय है। दुगुर्णों का विसर्जन और सद्गुणों का सृजन कैसे हो यही तो रामकथा का प्रयास होता है। यदि किसी के गुणों का अनुसरण करना है तो हनुमान जी महाराज का करें। भले ही आप में एक गुण हो यदि उसकी सार्थकता है तो सारे गुण स्वमेव आ जाएंगे। गुणों की पराकाष्ठा होते हुए भी वे बुजुर्ग जामवंत से अपनी भूमिका पूछते है।

क्या वृद्धाश्रम है हमारा विकास
आज के नौजवान अपने बड़ों का सम्मान-आदर करना भूल गए है। यहां तक कि बूढ़े माँ-बाप को वृद्धाश्रम भेज रहे है। लगातार वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ रही है क्या यही है हमारा विकास? कौन करेगा इनका मार्गदर्शन?

शांति का अपहरण हो गया है
हर आदमी आज अशांत है, सब कुछ होते हुए। सोने की लंका का राजा रावण भी अशांत था। क्या किसी का अपहरण या दुख देकर आपको शांति मिल सकती है, शांति तो आपके भीतर है।

विश्राम कहां हैं
वास्तविक विश्राम कहां है यह रहस्य छिपा हुआ है। विश्राम तो आराम की शरण में, जहां भी जाएं वास्तविक विश्राम तो राम में ही है। यहां तो हर कदम पर सुरसा मुंह फाड़े खड़ी है उससे पार पाने के लिए हनुमान जी बनना पड़ेगा।

संस्कृति की प्रतीक है माँ गंगा
गंगा सिर्फ नदी ही नहीं हमारी माँ व देवी है। गंगा हमारी संस्कृति है जो किसी से बगैर भेदभाव किए सभी जाति-धर्म के लोगों को समान रुप से अपनी पवित्रता व शुद्धता का स्नेह देती है। हनुमानजी महाराज में भी यही गुण है बस हम वरण करें।

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