छत्तीसगढ़

शाही अंदाज में होता है रावण का दहन, लोगों को भेंट में मिलता है पान

कवर्धा
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के कवर्धा (Kawardha) जिले में शाही दशहरा मनाने की सालों पुरानी परंपरा आज भी कायम है. यहां 17वीं शताब्दी से शाही दशहरा मनाया जा रहा है. इसी काल में कवर्धा स्टेट की स्थापना के साथ ही यहां राजपरिवार का दशहरा (Dussehra) में खास सहभागिता शुरू हुई, जो आज 400 वर्षों बाद भी कायम है. दशहरा के दिन कवर्धा रियासत के राजा योगेश्वर राज सिंह, उनके बेटे युवराज मैकलेश्वरराज सिंह महल से शाही रथ में सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं. रास्ते में रावण के पुतले का दहन भी होता है. उसके बाद राजपरिवार लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते हैं.

लोगों की मान्यता है कि दशहरा के दिन राजा के दर्शन करना शुभ होता है. इसलिए दूर-दूर से ग्रामीण दर्शन के लिए कवर्धा आते हैं. नगर भ्रमण के बाद कवर्धा के मोतीमहल में राज दरबार लगता है. जहां राजा से नागरिक भेंट मुलाकात करते हैं. राजा उन्हें पान भेंटकर अभिवादन करते हैं.

कवर्धा महल की भव्यता और सुंदरता आज भी कायम है. महल देखकर नहीं लगता है कि ये वर्षों पुराना महल है. कवर्धा में राजपरिवार का दबदबा रहा है. वर्तमान में यहां कवर्धा के राजा योगेश्वर राज सिंह हैं.  राजपुरोहित पंडित सनत कुमार शर्मा बताते हैं कि दशहरा के दिन पूरा राजपरिवार नगर के प्रतिष्ठित मंदिरों में दर्शन करता है. देर शाम को राजा महल से रथ में सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं.

राजपुरोहित पंडित सनत कुमार शर्मा बताते हैं कि दशहरे के दिन कवर्धा के राजा योगेश्वर राज सिंह, युवराज मैकलेश्वर राज सिंह रथ में सवारा होकर महल से नगर भ्रमण पर निकलते हैं. बाजे-गाजे के साथ हजारों की संख्या में लोग राजा के साथ चलते हैं. नगर के सरदार पटेल मैदान में रावण दहन किया जाता है. उसके बाद राजा अपने रथ में पूरे नगर का भ्रमण करते हैं.

इतिहासकार देविचंद रूसिया के मुताबिक कवर्धा में दशहरा मनाने की परम्परा 400 साल पुरानी बताई जा रही है. कवर्धा रियासत की स्थापना 17वीं शताब्दी में हुई थी. उसी समय से यहां शाही दशहरा मनाने की परम्परा की शुरूआत हुई, जो आज भी कायम है. पीढ़ी दर पीढ़ी राजपरिवार इस परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं.

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