जयपुर
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने द्विराष्ट्र सिद्धांत पर ऐसा बयान दिया है जिस पर काफी विवाद हो सकता है। जयपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि दक्षिणपंथी नेता वीर सावरकर ने ही सबसे पहले द्विराष्ट्र सिद्धांत दिया था। कांग्रेस सांसद ने कहा कि सावरकर के ऐसा करने के तीन साल बाद मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान प्रस्ताव पारित किया था। उन्होंने यह भी कहा कि धर्म के आधार पर राष्ट्रीयता तय करने के पक्ष में सावरकर, गोलवलकर और दीनदयाल उपाध्याय थे।अक्सर अपने बयानों के कारण सुर्खियां बटोरने वाले कांग्रेस नेता के इस बयान पर भी विपक्षी जमकर हमलावर हो सकते हैं।
सावरकर थे द्विराष्ट्र सिद्धांत के पैरोकार
कांग्रेस सांसद ने कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि विभाजन के समय सबसे बड़ा सवाल था कि क्या धर्म राष्ट्र की पहचान होनी चाहिए। थरूर ने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में कहा कि मुस्लिम लीग ने 1940 में अपने लाहौर अधिवेशन में इसे सामने रखने से पहले ही सावरकर द्विराष्ट्र सिद्धांत की पैरोकारी कर चुके थे। तिरुवनंतपुरम से सांसद ने कहा, 'महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू सहित कई अन्य कद्दावर नेताओं की अगुवाई में भारत में ज्यादातर लोगों ने कहा कि धर्म आपकी पहचान तय नहीं करता। धर्म आपकी राष्ट्रीयता तय नहीं करता, हमने सभी की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी और सभी के लिए देश का निर्माण किया।’
'हिंदुत्व आंदोलनों ने किया था संविधान को खारिज'
संघ, बीजेपी और हिंदूवादी ताकतों पर तल्ख बयान देने के लिए चर्चित थरूर ने फिर एक बार सावरकर पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, ‘सावरकर ने कहा कि हिंदू ऐसा व्यक्ति है जिसके लिए भारत पितृभूमि (पूर्वजों की जमीन), पुण्यभूमि है। उस परिभाषा से हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन दोनों श्रेणियों में समाते थे, मुसलमान और ईसाई नहीं।’ उन्होंने कहा कि हिंदुत्व आंदोलन ने संविधान को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया।
अपनी किताब में भी थरूर ने किया है सावरकर का जिक्र
अपनी किताब का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘मैंने अपनी पुस्तक व्हाए एम आई ए हिंदू में सावरकर, एम एस गोलवलकर और दीन दयाल उपाध्याय का हवाला दिया है। ये ऐसे लोग थे जो मानते थे कि धर्म से ही राष्ट्रीयता तय होनी चाहिए। अपनी ऐतिहासिक कसौटी में द्विराष्ट्र सिद्धांत के पहले पैरोकार वाकई वी डी सावरकर ही थे जिन्होंने हिंदू महासभा के प्रमुख के तौर पर भारत से हिंदुओं और मुसलमानों को दो अलग अलग राष्ट्र के रूप मे मान्यता देने का आह्वान किया था। तीन साल बाद मुस्लिम लीग ने 1940 में पाकिस्तान प्रस्ताव पारित किया।’