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विदेशी राजनयिक – कश्मीर में सब ठीक-ठाक है

नई दिल्ली
जम्मू-कश्मीर से संविधान के आर्टिकल 370 के तहत प्राप्त विशेष दर्जा वापस लिए जाने के छह महीने बाद केंद्र शासित प्रदेश की स्थिति का जायजा के लिए राज्य में पहुंचा 25 विदेशी राजनयिकों का दल गुरुवार शाम दिल्ली लौट आया। राज्य की स्थिति को लेकर राजनयिकों में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली। यूरोपीय दल के कुछ लोग जम्मू-कश्मीर की स्थिति को लेकर बहुत अधिक संतुष्ट नहीं दिखे, हालांकि दल के अधिकतर राजनयिकों ने राज्य में व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। राजनयिकों ने यह भी महसूस किया कि राज्य में विकास के लिए आर्टिकल 370 के प्रावधानों को हटाना जरूरी था।

गुरुवार सुबह प्रतिनिधिमंडल को XY कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल के जे एस ढिल्लन ने सुरक्षा की स्थिति को लेकर जानकारी दी, जिसके बाद यूरोपीय दल जम्मू चला गया। वहां उन्होंने लेफ्टिनेंट गवर्नर जी एस मुर्मू, मुख्य सचिव बी वी आर सुब्बू और प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की। इसके अलावा उन्होंने राज्य में हिरासत में लिए गए लोगों के मामलों की सुनवाई कर रही जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल से भी मुलाकात की।

'बेहतर करने को उत्सुक दिख रहे अधिकारी'
भारत में मेक्सिको के राजदूत एफएस लोटेफने कहा, 'हमने राज्य में क्या हो रहा है, उसका जायजा लिया। ऐसा लगता है कि यहां स्थिति सामान्य हो रही है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि इसमें कोई परेशानी नहीं है। लेकिन स्थिति में सुधार करने की इच्छा दिख रही है, यहां के अधिकारी भी इसे बेहतर करने के लिए उत्सुक हैं।'

'विकास के लिए 370 के प्रावधानों को हटाना जरूरी था'
डिप्लोमैटिक कॉर्प्स इन इंडिया के डीन हैंस डैननबर्ग कैस्टेलानोस ने कहा, 'आज हमने जम्मू-कश्मीर के मुख्य न्यायाधीश, मुख्य सचिव और लेफ्टिनेंट गवर्नर के साथ बैठकें कीं। इन तीनों ही हमें चीजें बेहतर करने के रोडमैप के बारे में बताया।' सूत्रों के मुताबिक, राजनयिकों ने जम्मू-कश्मीर में विकास की कमी को देखते हुए महसूस किया कि आर्टिकल 370 के प्रावधानों को हटाना जरूरी था। उन्होंने कहा कि राज्य में माहौल शांत है और स्थिति भी लगभग सामान्य हो गई है। उन्होंने कहा कि श्रीनगर और जम्मू, दोनों जगहों पर दुकानें खुली थीं, यह एक उत्साहजनक संकेत था।

'आर्थिक विकास के लिए रोडमैप जरूरी'
सूत्रों ने आगे कहा कि राजनयिकों का मानना है कि आर्थिक विकास का एक स्पष्ट रोडमैप जरूरी है। युवाओं को शिक्षा और नौकरी दिए बिना जम्मू-कश्मीर में कट्टरता और उग्रवाद को रोकना मुश्किल होगा। राजनयिकों ने यह भी कहा कि श्रीनगर और जम्मू में सिविल सोसाइटी, मीडिया, व्यापारियों के साथ उनकी बातचीत में सामने आया कि लोगों में इस पूरी एक्सर्साइज को लेकर आलोचनात्मक आवाजें भी हैं।

राजनयिकों के मुताबिक, राज्य में 35ए, संपत्ति और डोमिसाइल राइट्स की बहाली के लिए भी कुछ मांगें उठ रही थीं, लेकिन इससे ज्यादा मांग इंटरनेट और संचार की बहाली के लिए थी। राजनयिकों ने बताया कि जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल के साथ लैंगिक समानता और एलजीबीटी अधिकारों को लेकर भी बातचीत हुई।

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