वशिष्ठ बाबू के लिए पीयू ने बदले थे नियम

पटना                                                                                                                                                                                           
बिहार के आइंस्टीन कहे जाने वाले महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह नहीं रहे। गणित की जटिलताओं में उलझी गुत्थियों को सुलझाने वाले वशिष्ठ बाबू बहुत सारी यादें छोड़ गए। उनके जाने की खबर से हर किसी की आंखें नम हुईं। भले ही वह उम्र के अंतिम पड़ाव पर थे, लेकिन उनका जाना हर किसी को अखर गया। पीएम, मुख्यमंत्री व राज्यपाल सहित तमाम हस्तियों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, उन्हें (वशिष्ठ बाबू) कभी भुलाया नहीं जा सकता। मेधा के क्षितिज पर वह हमेशा धु्रवतारे की तरह चमकते रहेंगे। 

बिहार के होनहार गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ बाबू के लिए पटना विश्वविद्यालय ने अपना नियम तोड़ा था। अपने इस होनहार छात्र के लिए एक विशेष नियम बनाया। इनकी मेधा को देखते हुए स्नातक प्रथम वर्ष से सीधे गणित ऑनर्स के अंतिम वर्ष की परीक्षा में शामिल होने की अनुमति प्रदान की थी। इस परीक्षा में वशिष्ठ बाबू कुल 600 में से 574 अंकों के साथ सफल हुए थे। इनकी मेधा की कहानी इनके बैचमैट सेवानिवृत्त प्रोफेसर एनएन पांडेय बताते हैं। वे 1957 से 1963 तक नेतरहाट में उनके साथ पढ़े थे। उन्होंने बताया कि वशिष्ठ बाबू ने नेतरहाट में टॉप किया था। जब हम लोग कैलकुलस का नाम भी नहीं जानते थे, तब वशिष्ठ बाबू गणित के सारे प्रश्नों को हल करते थे। नौवीं कक्षा में ही गणित की किताबों के सारे प्रश्न दो बार बना चुके थे। जब हमलोग हायर सेकेंड्री में थे, तो कॉलेज के गणित के सवाल इंटीग्रल, डिफ्रेंशियल गणित के हल करते थे।  

साइंस कॉलेज के प्राचार्य ने सीने से लगाया था
पांडेय ने साइंस कॉलेज का एक वाकया सुनाया। उन्होंने बताया कि एक बार ट्यूटोरियल क्लास के दौरान एक शिक्षक डॉ. बिकन भक्त से वशिष्ठ ने कहा कि इस गणित के सवाल को दूसरे नियम से बनाया जा सकता है। यह बात शिक्षक को बुरी लग गई। इसके बाद शिक्षक ने एचओडी डॉ. आरकेपी सिन्हा से शिकायत कर दी। एचओडी ने पूरे मामले की जानकारी प्राचार्य को दी। उस वक्त के प्राचार्य  डॉ. नगेन्द्र नाथ ने वशिष्ठ बाबू को एक कठिन सवाल हल करने को दिया। वशिष्ठ बाबू ने चुटकी में सवाल हल कर दिया। इसके बाद प्राचार्य गदगद हो गए। उन्होंने कहा कि इतना मेधावी छात्र नहीं देखा। उन्हें गले से लगा लिया। उन्होंने कहा कि वशिष्ठ बहुत बड़ा विद्वान बनेगा। सबसे बड़ी बात कि डॉ. नगेन्द्र नाथ खुद बड़े वैज्ञानिक थे। वे नाथ रमण इफेक्ट के मशहूर साइंटिस्ट थे। 

कुलपति रिसीव करने गेट पर खड़े थे
साइंस कॉलेज के तत्कालीन प्राचार्य ने उस वक्त के कुलपति जॉर्ज जैकब को पूरी कहानी सुनाई। कुलपति ने खुद अपनी गाड़ी बीआरए 8812 साइंस कॉलेज में भेजी। वशिष्ठ बाबू को बुलवाया। उन्हें रिसीव करने के लिए खुद गेट पर मौजूद थे। प्रिंसिपल के साथ वशिष्ठ नारायण और डॉ. बिकन भक्त भी गये थे। इसके बाद इनके लिए विशेष परीक्षा की अनुमति दी गई। सत्र 1963-64 में डिग्री वन की जगह पर फाइनल ऑनर्स की परीक्षा ली गई। इसमें बेहतर अंकों के साथ टॉप कर गये। इसके बाद एमएससी में दाखिला होने के कुछ दिनों के बाद अमेरिका से प्रो. केली आए थे। वशिष्ठ नारायण अमेरिका चले गये। वहीं अपनी पीएचडी पूरी की। 

तीस कम्प्यूटरों के बराबर अकेले कर दी थी गणना
वशिष्ठ नारायण सिंह बचपन से ही होनहार व विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। छठी क्लास में नेतरहाट स्कूल में कदम रखा। इसके बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। हर क्लास में टॉप करते रहे। कामयाबी की नई इबारत लिखते रहे। नेतरहाट में टॉप करने के बाद उन्होंने पटना साइंस कॉलेज में दाखिला लिया। वहां पढ़ाई पूरी करने के बाद कैलिफोर्निया की बर्कले यूनिवर्सिटी से 1969 में पीएचडी पूरी की। वशिष्ठ नारायण ने ‘साइकिल वेक्टर स्पेस थ्योरी पर शोध किया था। उन्हें नासा में भी काम करने का मौका मिला। यहां भी वशिष्ठ नारायण की काबिलियत ने लोगों को हैरान कर दिया। बताया जाता है कि अपोलो की लॉन्चिंग के वक्त अचानक 30 कम्यूप्टरों ने काम करना बंद कर दिया तो वशिष्ठ नारायण ने कैलकुलेशन शुरू कर दिया, जिसे बाद में सही माना गया।

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