भोपाल
पचास हजार रुपए की रिश्वत लेते पकड़े गए राज्य वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारी विजय कुमार मोरे के ठिकाने से बरामद तीन डायरियों से विभाग के कई आला अफसर लोकायुक्त संगठन की राडार पर आ गए हैं। इन डायरियों में रिश्वत देने के राज निकले हैं। डायरियों से खुलासा हुआ है कि मोरे द्वारा डीएफओ और एसडीओ को एक-एक लाख रुपए महीने और सीसीएफ को 50 हजार रुपए देना होता था। डायरी से हुए खुलासे को लेकर की गई पूछताछ में आरोपी ने स्वीकार किया कि आला अफसरों को कमीशन का हिस्सा देना पड़ता था। लोकायुक्त संगठन पुलिस की भोपाल टीम ने दो दिन पहले मोरे को 50 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथों गिरफ्तार किया था। पकड़े जाने के बाद पुलिस को मोरे के कमरे की तलाशी में सात लाख पच्चीस हजार रुपए नगद मिले थे। उसके साथ तीन डायरियां मिली हैं। डायरी में लेन-देन का पूरा हिसाब किताब है।
डायरी के एक पन्ने में उन लोगों के नाम हैं, जिनसे महीने में रिश्वत ली जाती थी और दूसरे पन्ने में उन आला अफसरों के नाम हैं, जिन्हें रिश्वत देना पड़ती थी। मोरे ने पूछताछ में स्वीकार किया है कि बरामद राशि रिश्वत की है। उन्होंने यह भी कहा कि एक अधिकारी (नाम लेकर) के पास जाने वाला था। यह राशि उन्हें अपनी नई पदस्थापना के बदले में देना है। राशि आला अफसर तक जाती, उससे पहले ही वह पकड़ा गया। बपने बयान मेें मोरे ने स्वीकार किया कि बीस फीसदी कमीशन पर पूरा काम होता था। यह बीस फीसदी राशि मोरे के हिस्से में आती थी। मोरे ने कहा कि बहुत सारे काम होते थे और उनके बदले में चालीस फीसदी तक कमीशन चलता है। कुछ राशि तो आला अफसरों और ऊपर चली जाती थी। बची हुई राशि में से बीस फीसदी मेरे हिस्से में आती है और उसमें से मुझे आला अफसरों को बांटना होता है। मोरे की डायरी में उन सरपंचों और अन्य लोगों के भी नाम हैं, जिनसे वे रिश्वत लेते थे। उनका कहना है कि लकड़ी कटाई से लेकर बहुत सारा पैसा क्षेत्र के अधिकारी को मिलता है।
मोरे पहले अधिकारी हैं, जिन्हें परिवीक्षा अवधि के दौरान रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया है। ऐसे में व्यवस्था पर भी सवाल उठने लगे हैं? आखिर कैसा सरकारी तंत्र है, जो शुरुआती नौकरी में रिश्वत लेने और देने के लिए मजबूर करता है। डायरी के पन्ने भी इसी तरफ इशारा करते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि सरकारी तंत्र और आला अफसरों की चाहत नीचे वाले अफसरों से कितनी बढ़ गई है।