गुरुवार को औरंगाबाद में हुए रेल हादसे में 16 मजदूरों की हुई थी मौत
भोपाल. शहडोल के जयसिंहनगर ब्लॉक में एक साथ पहुंचे नौ शवों को देखकर हर किसी का धैर्य टूट गया। आंखों से सिर्फ आंसुओं की धार ही बह रही थी। रेल हादसे में मारे गए 16 मजदूरों में से नौ लोगों के शव करीब 6 बजे अधिकारी गांव लेकर पहुंचे। अंधेरा होने के कारण यहां पर शवों को दफनाया गया। इसमें अलग-अलग जगहों पर नौ मजदूरों को दफनाया गया।
परिजनों का दर्द तब और ज्यादा बढ़ गया जब वे लोग आखिरी वक्त भी अपने बेटे, भाई, पति और और पिता को नहीं देख पाए। रोते बिलखते गमजदा परिजनों का कहना था कि एक बार शव घर तक तो पहुंच जाता। आखिरी दर्शन कर लेते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इनका दर्द था कि अपनों का चेहरा भी नहीं देख पाए और दफना दिया गया।
बता दें कि मृतकों का शव घर तक नहीं ले जाया गया। गांव से दो किमी दूर शाम 7 बजे से गायत्री मंत्र के साथ शवों को दफनाना शुरू किया। अधिकारियों ने घर से परिजनों को बुलाकर शवों को दफनाना शुरू किया, जिसकी प्रक्रिया देर शाम तक चलती रही।
गौरतलब है कि गुरुवार को औरंगाबाद में हुए रेल हादसे में 16 मजदूरों की मौत हो गई थी। इनमें शहडो के एक ही गांव के नौ मृतक थे। सभी 16 मजदूरों का शव लेकर शनिवार को दोपहर ट्रेन शहडोल पहुंची। इसके बाद यहां से एम्बुलेंस से सभी शवों को उनके गृहग्राम रवाना किया गया। गांव पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई, जिससे सभी शवों को गायत्री मंत्र के साथ दफना दिया गया।
सरकार पहले तो लाई नहीं, अब उनके शरीर के टुकड़े लेकर आ रही
मृतकों के रोते बिलखते परिजनों का कहना था कि सरकार पहले तो लाई नहीं, अब उनके शरीर के टुकड़े लेकर आ रही, मुझे नहीं चाहिए। मृतक के परिजन रोते विलखते सरकार को कोसते रहे। इनका कहना था कि सरकार ने पहले कोई व्यवस्था नहीं की। मेरे घर से एक साथ दो जवान बेटों की मौत हुई है। पहले जिंदा लाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया।
हम गांव के नेताओं के यहां जाते थे। अधिकारियों के पास भी जाते थे, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। अब जब मौत हो गई है तब शव की गठरियों को लेकर सरकार आई है। ये अब सरकार के ही हैं। मैं तो पहचान भी नहीं पा रहा हूं। अब मुझे नहीं चाहिए। इतना कहते हुए मृतकों के परिजन बेसुध हो गए।
सरकार का लचर सिस्टम, व्यवस्था करती तो नहीं बनती स्थिति
गोंगपा के कार्यवाहक प्रदेश अध्यक्ष तेज प्रताप उइके ने सरकार के लचर सिस्टम पर सवाल खड़े किए हैं। उइके का कहना है हर साल 30 हजार से ज्यादा लोग शहडोल से पलायन कर जाते हैं। अभी भी हजारों मजदूर दूसरे प्रांतों में फंसे हैं। सरकार तमाम वादे कर रही है वापस लाने के लिए, लेकिन कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हैं।
हेल्पलाइन नंबरों में फोन नहीं लगता है। हादसे में मृतक मजदूर तो सरकार की सूची में ही शामिल नहीं थे। इन्हे न तो आर्थिक मदद पहुंचाई गई थी और न ही बाहर फंसे श्रमिकों की सूची में शामिल किया था।
शाम को अंतिम संस्कार, गांव में मातम
उमरिया के पांच मजदूरों का शव ट्रेन से पहुंचा। मजदूरों का अंतिम संस्कार जनप्रतिनिधियों एवं जिला प्रशासन के अधिकारियों की उपस्थिति में परिवार के लोगों ने किया। जिला प्रशासन द्वारा इन श्रमिकों के परिजनोंं को उमरिया जिले में दान की राशि से संचालित मदद सहकारी उप समिति से जिला प्रशासन द्वारा मृतकों के परिवार को एक-एक लाख रुपये की तत्कालिक मदद की गई है।
एक साथ 16 शव उतरते देख सबकी छलक गईं आंखें
शहडोल शनिवार दोपहर ट्रेन के माध्यम से 16 मजदूरों का शव संभाग में लाया गया। उमरिया के 5 मजदूर और शहडोल के 11 मजदूरों का ट्रेन से शव उतरता देख हर कोई की आंखें छलक आईं। ट्रेन से एक के बाद एक उतारते देख हर कोई स्तब्ध था। औरंगाबाद रेलवे स्टेशन से श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन द्वारा मजदूरों के शव रवाना किए गए थे।
उमरिया जिले के पांच मृतक श्रमिकों के शव जिला प्रशासन द्वारा एंबुलेंस के माध्यम से घर भेजे गए। रेल दुर्घटना में मृतक अच्छे लाल कुशवाहा का का शव चिल्हारी, प्रदीप सिंह का शव अमडी, मुनीम सिंह और नेमशाह का शव रक्सा एवं बिजेंन्द्र सिंह का शव ममान पहुंचाया गया। इसी तरह शहडोल में पांच एंबुलेंस के माध्यम से शव भेजा गया। कलेक्टर डॉ सतेन्द्र सिंह द्वारा औरंगाबाद रेल हादसे में शहडोल रेलवे स्टेशन आने के बाद गांव भेजा। पृथक-पृथक एम्बुलेंसों की व्यवस्था कर अंतौली, बैरिहा एवं