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रिव्यू पिटिशन खारिज होने के बाद दोषियों के पास क्यूरेटिव पिटिशन का विकल्प मौजूद

  

नई दिल्ली
निर्भया के गुनहगारों फांसी के फंदे के बीच की दूरी और कम हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दोषी अक्षय की रिव्यू पिटिशन को खारिज कर दिया। कोर्ट ने साथ में यह कहा कि दोषी तय समय में दया याचिका के विकल्प का इस्तेमाल कर सकता है। हालांकि, रिव्यू पिटिशन खारिज होने का यह मतलब नहीं कि जल्द ही निर्भया के गुनहगारों को फांसी पर लटका दिया जाएगा। आइए समझते हैं कि इस केस में अब आगे क्या हो सकता है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दोषियों को रिव्यू के लिए 1 हफ्ते और राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल करने के लिए एक हफ्ते का समय दिया जा सकता है। अक्षय के मामले में रिव्यू का निपटारा हो चुका है इस तरह अभी उसे दया याचिका दायर करने की मोहलत मिलेगी। राष्ट्रपति के पास एक और दोषी विनय की दया याचिका लंबित है। दया याचिका खारिज होने के बाद ही फांसी होगी।

ट्रायल कोर्ट में डेथ वॉरंट पर सुनवाई टली
सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन खारिज होने के कुछ ही घंटे बाद पटियाला हाउस कोर्ट में दोषियों को डेथ वॉरंट जारी करने को लेकर सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने दोषियों को नोटिस जारी किया। डेथ वॉरंट को लेकर अगली सुनवाई 7 जनवरी को होगी।

निर्भया के दोस्त के बारे में कथित खुलासे का इस्तेमाल करेगा बचाव पक्ष!
अक्षय की पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में उसका पक्ष रखने वाले वकील ए. पी. सिंह ने फैसले के बाद अदालत के बाहर जो कुछ भी कहा, उससे साफ है कि बचाव पक्ष मामले को लटकाने की कोशिश करेगा। निर्भया के दोस्त द्वारा मीडिया में बयान देने, पैनलों में बैठने के लिए कथित तौर पर पैसे लेने संबंधी एक पत्रकार के हाल में किए दावे का इसके लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। एपी सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले (रिव्यू पर नहीं) के बाद नए तथ्य सामने आए हैं कि निर्भया के दोस्त ने पैसे लेकर मीडिया को कहानियां बताई। उन्होंने कहा कि नए तथ्यों के आने के बाद नए सिरे से केस को सुना जाना चाहिए। अक्षय के अलावा बाकी 3 दोषियों ने अभी रिव्यू पिटिशन दाखिल नहीं की है। इसके जरिए भी बचाव पक्ष मामले को लटकाने की कोशिश कर सकता है।

बचाव पक्ष के वकील का दावा- अभी भी फांसी से बचने की 'उम्मीद'
निर्भया गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन खारिज होने के बाद अब फांसी से बचने के लिए चारों दोषियों की उम्मीद उन 17 मामलों पर सुप्रीम कोर्ट के रुख पर टिक गई है, जिसमें कोर्ट ने फांसी को उम्रकैद में बदल दिया था। रिव्यू पिटिशन खारिज होने के बाद दोषियों के वकील एपी सिंह ने कहा कि वह आज या कल में क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करेंगे और सुप्रीम कोर्ट के सामने 2017 के बाद के उन सभी 17 मामलों की लिस्ट रखेंगे, जिसमें देश की सबसे बड़ी अदालत ने मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था।

दोषियों के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के बाहर मीडिया से कहा, 'हम क्यूरेटिव पिटिशन में 17 केस लाएंगे। ये सभी 17 केस निर्भया गैंगरेप में दोषियों की एसएलपी रद्द होने के बाद के है। ये 17 मामले मर्डर, रेप, पॉक्सो जैसे जघन्य अपराधों के हैं जिसमें फांसी की सजा दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने ही बाद में फांसी की सजा को खत्म करके उम्रकैद में बदला।'

पहले दया या फिर क्यूरेटिव पिटिशन?
दोषियों के वकील ने कहा कि वह दोनों याचिकाएं दाखिल करेंगे। पहले क्यूरेटिव पिटिशन फाइल करेंगे और फिर दया याचिका फाइल कर दी जाएगी। उन्होंने कहा, 'हमें अभी क्यूरेटिव में भी विश्वास है। हमारा बहस सही है। हमारा केस सही है। हमारे सबूत और तथ्य सही हैं। लेकिन पब्लिक प्रेशर हमारे साथ नहीं हैं। क्यूरेटिव फाइल का प्रोसेस चल रहा है। आज या कल में फाइल कर देंगे।'

क्यूरेटिव पिटिशन का विकल्प अभी भी मौजूद
रिव्यू पिटिशन अगर खारिज हो जाए तो मुजरिम क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट के वकील डीबी गोस्वामी बताते हैं कि क्यूरेटिव पिटिशन में जजमेंट पर तकनीकी तौर पर सवाल उठाया जा सकता है। जजमेंट के कानूनी पहलू को देखा जाता है और अगर किसी पहलू को नहीं देखा गया है तो उस मुद्दे को क्यूरेटिव पिटिशन में उठाया जाता है। अगर क्यूरेटिव पिटिशन भी खारिज हो जाए उसके बाद मुजरिम को दया याचिका दायर करने का अधिकार है।

दया याचिका
रिव्यू और क्यूरेटिव पिटिशन खारिज होने के बाद राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर किए जाने का प्रावधान है। राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद-72 व राज्यपाल अनुच्छेद-161 के तहत दया याचिका पर सुनवाई करते हैं। इस दौरान राष्ट्रपति गृह मंत्रालय से रिपोर्ट मांगते हैं। मंत्रालय अपनी सिफारिश राष्ट्रपति को भेजता है और फिर राष्ट्रपति दया याचिका का निपटारा करते हैं। अगर राष्ट्रपति दया याचिका खारिज कर दें उसके बाद मुजरिम को फांसी पर लटकाने का रास्ता साफ होता है। दया याचिका के निपटारे में गैर वाजिब देरी के आधार पर मुजरिम चाहे तो दोबारा सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सकता है।

डेथ वॉरंट और आखिरी इच्छा
तमाम अर्जी खारिज होने के बाद संबंधित निचली अदालत मुजरिम के नाम डेथ वॉरंट जारी करती है। सरकार की ओर से निचली अदालत से पूछा जाता है कि मुजरिम की अर्जी कहीं भी पेंडिंग नहीं है, लिहाजा उसे कब फांसी पर चढ़ाया जाए? इसके बाद निचली अदालत डेथ वॉरंट जारी करती है और उसमें फांसी दिए जाने की तारीख और समय तय होता है और इस बारे में संबंधित जेल अधीक्षक को बताया जाता है। इसके बाद मैजिस्ट्रेट फांसी पर लटकाने के पहले दोषी की आखिरी इच्छा पूछता है। मसलन-उसकी प्रॉपर्टी किसके नाम की जाए। उसके बाद डॉक्टर, जेल सुपरिंटेंडेंट और पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में जल्लाद मुजरिम को फांसी पर लटकाता है।

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