अध्यात्म

मृत्यु के बाद आत्मा सूक्ष्म शरीर धारण करती है, तो इसमें दो तत्व शेष रह जातें है, वायु और आकाश


आत्माओं का रहस्यमय संसार: ब्रम्हांड में लाखों आत्माओं का अस्तित्व विद्यमान है, जो वायुमंडल में स्वतंत्र रूप सें विचरण करती हैं

ब्रम्हांड में लाखों आत्माओं का अस्तित्व विद्यमान है, जो वायुमंडल में स्वतंत्र रूप सें विचरण करती हैं। इनमें कई प्रकार की आत्माएं होती हैं। जैसे राजा, महाराजा, वैज्ञानिक, विशेषज्ञ, विद्वान, चोर, डाकू, बदमाश, सामान्य मनुष्य तथा उच्चकोटि के मनुष्य आदि, जिनमें मुख्यत: दो प्रकार की आत्माएं होती हैं। दिव्यात्मा तथा दुष्टात्मा।

दिव्य आत्मा
ये आत्माएं कभी-कभी किसी मनुष्य की जिंदगी से प्रभावित हो जाती हंै और उसको सहयोग भी करती हैं। खासकर उस व्यक्ति के जिंदगी से प्रभावित होती हैं, जिनकी जिंदगी उसी आत्मा की जिंदगी से मिलती-जुलती है। जैसे उस आत्मा ने अपनी पूर्व जिंदगी में बहुत कष्ट झेले हों और दु:खों का सामना किया हो, तो वह आत्मा किसी व्यक्ति के जिंदगी के कष्टों एवं दु:खों को देख नहीं सकती, क्योंकि वह अपने जिंदगी में दुख, कष्ट, कठिनाइयों और परेशानियों से भली-भांति परिचित रही है। अत: वह किसी ऐसे व्यक्ति की सहायता अवश्य करती हैं, जो इस प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त रहता है।

ऐसी आत्मा जिनकी जिंदगी से प्रभावित हो जाती हैं, उनकी जिंदगी खुशियों से भर जाती है और जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं रहता। पग-पग पर सफलताएं कदम चूमने लगती हैं। गांव तथा शहरों में ऐसे सैकड़ों उदारण देखने को मिल जाते हैं। जैसे अनायास ही गड़े धन का पता लग जाना, चांदी के सिक्कों से भरा घड़ा मिल जाना, इच्छा करते ही उसकी पूर्ति हो जाना, एक्सीडेंट या दुर्घटना का पूर्वाभास होना, यह सब दिव्यात्माओं के प्रसन्न होने के कारण अनायास ही होने लगता है।

दुष्टात्मा
ये आत्माएं बहुत ही दुष्ट होती हैं। इन्हें हमेशा किसी न किसी को सताते रहने में बहुत आनंद आता है। ये आत्माएं कभी किसी का भला नहीं करती। ये आत्माएं जिनके पीछे पड़ जाती हैं, उसकी जिंदगी बर्बाद कर देती हैं। उनके परिवार में कभी सुख-शांति नहीं रहती। कदम-कदम पर हानि पहुंचाती हैं। उनके साथ कब कौन सी घटना घट जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। जिस व्यक्ति पर ऐसी आत्माओं का प्रकोप हो जाता है, वह व्यक्ति पागल भी हो जाता है। दुष्ट आत्मायें किसी भी दृष्टि से हितकर नहीं हैं।

आत्माओं का रहस्य
शरीर से निकलने के बाद सैकड़ों वर्ष तक आत्मायें वायुमंडल में विचरण करती रहती हैं, क्योंकि वह पुन: गर्भ में जाने की इच्छुक नहीं होतीं या किसी ऐसे गर्भ में जन्म लेने को उत्सुक होती हैं, जो उनका मनोवांछित हो। उदाहरण के लिए अधिकांश आत्मायें तो जन्म ही नहीं लेना चाहती, क्योंकि उन्होंने गर्भ में या गर्भ के बाहर जो कुछ भोगा है, वह ज्यादा सुखकर नहीं होता है। अगर वे जन्म भी लेना चाहें तो किसी ऐसे गर्भ की खोज में रहती हैं, जो सभी दृष्टियों से सुखी एवं सम्पन्न हो, तथा उन्हें खुलकर कार्य करने का मौका मिले। पर ऐसा संयोग से ही प्राप्त हो पाता है।

आत्मायें कैसे आकर्षित होती हैं
मनुष्य का शरीर जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी और आकाश इन पांच तत्वों से निर्मित होता है। मृत्यु के बाद जब मनुष्य स्थूल शरीर को छोड़कर सूक्ष्म शरीर धारण करता है, तो इसमें मात्र दो तत्व शेष रह जातें है, वायु और आकाश तत्व। पृथ्वी तत्व समाप्त हो जाने के कारण पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का आत्माओं पर कोई असर नहीं होता।

फलस्वरूप स्थूल शरीर के अलावा सूक्ष्म शरीर की शक्ति हजारों गुणा अधिक हो जाती है और विचारों के माध्यम से ही वे पूरे ब्रह्मांड में विचरण करने में समर्थ हो जाते हैं। आत्माओं की गति वायु से भी अधिक तेज होती है, एक मिनट में वे पूरे ब्रह्मांड में विचरण कर सकती हैं।

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