छत्तीसगढ़

मृत्यु के घाव से बड़ा है अपमान का घाव – जया किशोरी

रायपुर
मृत्यु के घाव से भी बड़ा होता है अपमान का घाव, जीवन में चाहे कैसी भी परिस्थिति आ जाएं लेकिन कभी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए। अपमानित हुए व्यक्ति के मन में हमेशा द्वेश और बदले की भावना बनी रहती है। अवसर मिलते ही वह बदला लेने से चुकता नहीं है। कथा के दौरान प्रसंगवश जीवंत झांकियों की आकर्षक प्रस्तुति भी दी जा रही है।

महाभारत में दुर्योधन की मृत्यु नहीं होने पर संक्षिप्त प्रसंग का सार बताते हुए जया किशोरी ने कहा कि महाभारत के युद्ध में पूरे कौरव मारे गए लेकिन दुर्योधन की मृत्यु नहीं हुई, उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि पांच पांडव ने मिलकर पूरे कौरव का नाश कैसे कर दिया। क्षण भर में सुख और दुख मिलने पर ही दुर्योधन की मृत्यु थी जिसको अश्वतथामा ने पूरा किया। द्रौपदी के पांचों पुत्रों की हत्या के बावजूद द्रौपदी को उस समय भी अपनी पीड़ा से बढ़कर अश्वतथामा की माता की चिंता थी, यदि वह मारा जाता तो उसकी क्या दशा होती। उसके सिर पर लगी मणि निकाली जिससे अपमानित होकर अश्वतथामा ने बदला लेने की ठान ली। भगवान प्रत्येक जीव को जीवन में दुख-सुख, धन-संपत्ति को एकत्र करने का मौका अवश्य देते है, यह जीव पर निर्भर है कि वह उन अवसरों का कैसे उपयोग करता है। संसारिक गृहस्थ जीवन में परिवार को चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है लेकिन धन सत्यता और ईमानदारी से कमाया जाना चाहिए, वही धन सुख और आनंद दे सकता है। भगवान केवल अवसर नहीं देते तो वह मृत्यु के समय में, इसलिए मनुष्य को ऐसे कार्य करने चाहिए कि अंत समय में केवल भगवान के ही दर्शन हो और उन्हीं के नाम का स्मरण रहे जैसे की भीष्म पितामह को प्राप्त हुआ।

अवधपुरी मारूति मंगलम भवन गुढि?ारी में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में जया किशोरी जी ने वेद व्यास जी और नारद प्रसंग कथा का सार बताते हुए कहा कि केवल वेशभूषा या कपड़ों से कोई संत नहीं हो जाता, संत की पहचान करना आना चाहिए। संत वह होता है जो अपने सुख और दुख के बारे में हमेशा समभाव में रहता है और दूसरों के कल्याण और उसके सुख और दुख के बारे में सोचता है। ज्ञानी पुरुष हमेशा चिंतन करते रहते है और उन्हें हमेशा दूसरों के कल्याण के बारे में चिंता लगी रहती है। वेद व्यास जी इसलिए चिंतित थे कि कलयुग में मनुष्य को कैसे दुखों से छुटकारा मिलेगा। भगवत गीता में ज्ञान की बातें लिखी थी और कलयुग में ज्ञान की बातें सुनना कोई पसंद नहीं करेगा, ऐसे में एक ही उपाय है कि उसमें भगवान की भक्ति की लीलाओं का रस आ जाए क्योंकि भक्ति मार्ग से ही कलयुग में लोगों को भगवान से जोड़ा जा सकता है।

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