मिलें टीएनबी के रिटार्य प्रोफेसर से, कागज के फूलों में भी डाल देते हैं जान

भागलपुर 
मिलें टीएनबी के रिटार्य प्रोफेसर से, हर दिन फूल और पत्तियों से घिरे रहने वाले प्रो. संजीव कुमार झा कागज के फूलों में भी जान डालने का हुनर विकसित कर चुके हैं। इनके द्वारा बनाई गईं कागज की पत्तियां, गुलाब की पंखुड़ी हो या फिर कैक्टस का काटा देखकर कोई भी यह नहीं कह सकता है कि यह असली नहीं है।  
कागज से बने बरगद के पेड़, फूल और पत्तियों के इस हुनर को देख उन्हें बीते दिनों मुंगेर में आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। टीएनबी कॉलेज के बॉटनी विभाग से सेवानिवृत्त प्रो. संजीव की कलाकारी के मुरीद उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर आशा भोसले तक रही हैं। प्रो.संजीव ने बताया कि वह 12 साल की उम्र से कागज से फूल, पत्ती आदि बना रहे हैं। हर दिन कुछ न कुछ अलग करने की सोचते हैं। उनके कागज से तैयार किए गए बरगद के पेड़ों को बिहार म्यूजियम में जगह दी गई है। बॉटनी विभाग में कैक्टस से लेकर कई पौधे बनाए गए हैं। उन्होंने कहा कि कागज से बने बरगद का जड़ तैयार किया जा रहा है। इसे छूकर भी कोई यह नहीं बता सकता कि यह कागज का बना हुआ है। 

हुनर सीखने वाला कोई नहीं मिलता
60 सालों से कागज से कई तरह के प्रयोग करने वाले प्रो.संजीव बताते हैं कि इसे सीखने वाला कोई नहीं है। इसमें समय और साधना दोनों लगता है। यह कहने के लिए कागज का है। इसे बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि जब किसी के हाथ में यह जाए तो उसे पता न चले कि यह कागज का बना है। उसे असल ही नजर में आए। 

आईआईएम अहमदाबाद भी हुआ मुरीद 
प्रो.संजीव के इस कला का मुरीद आईआईएम अहमदाबाद भी रहा है। पत्नी निभा झा ने बताया कि उनके पति सिर्फ कागज और पेपर से ही नहीं बल्कि बिजली के तार की चाभी, स्वेटर, कलम आदि से भी कई चीज बनाते हैं। इनमें खासियत है कि इन्हें हर काम आता है। खाना भी बहुत अच्छा बना लेते हैं। 1962 के करीब बॉडी बिल्डिंग के क्षेत्र में इन्हें बिहार श्री से भी नवाजा गया है। 
 

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