मिट्टी के करवे से ही पानी पीकर महिलाएं क्यों तोड़ती हैं व्रत?

 

सिर्फ उत्तर भारत में ही नहीं, अब देश के दूसरे हिस्सों में भी करवाचौथ की धूम देखी जाती है। सुहागिन महिलाओं के लिए ये दिन किसी उत्सव से कम नहीं होता है। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवाचौथ का व्रत रखा जाता है। विवाहित महिलाएं इस दिन अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र और अपने खुशहाल रिश्ते की कामना करती हैं। वो प्रार्थना करती हैं कि उनके दांपत्य जीवन को किसी की नजर ना लगे।

छलनी की तरह करवा भी होता है खास
करवाचौथ व्रत में छलनी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके जरिए ही महिलाएं पहले चांद के दर्शन करती हैं और फिर अपने पति का दीदार करती हैं। इसके बाद जरूरत पड़ती है मिट्टी के करवे की। महिलाएं मिट्टी से तैयार करवे से पानी पीकर ही अपना व्रत खोलती हैं। यहां ये जानना दिलचस्प है कि मिट्टी के करवे से ही महिलाएं जल ग्रहण क्यों करती हैं।

मिट्टी के करवे के इस्तेमाल के पीछे ये है वजह
करवा बनाने के लिए सबसे पहले मिट्टी के साथ जल मिलाया जाता है। मिट्टी और पानी क्रमशः भूमि और जल का प्रतीक हैं। करवे का आकार दे देने के बाद इसे मजबूत करने के लिए धूप और हवा में रखा जाता है ताकि ये जल्दी सूख जाए, ये आकाश और वायु का प्रतीक हुए। इसके बाद करवे को आग में तपा कर पक्का किया जाता है जो अग्नि का प्रतीक है। एक करवा तैयार करने में पांचों तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है। सृष्टि के पांचों तत्वों से मिलकर बने होने के कारण मिट्टी के करवे का महत्व बढ़ जाता है और स्टेनलेस स्टील के करवे से ज्यादा खास माना जाता है।

पांचों तत्वों से मिलता है लाभ
चांद के उदय होने और दर्शन हो जाने के बाद व्रत के समापन के समय पति अपनी पत्नी को मिट्टी के करवे से पानी पिलाता है और इस तरह पांचों तत्वों की मौजूदगी में दोनों ही अपने खुशहाल वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करते हैं।

मिट्टी के बरतन में पानी पीना सेहत के लिहाज से भी बहुत अच्छा माना जाता है। मौजूदा समय में कई लोग स्टेनलेस स्टील से बने पात्र से पानी पीते हैं लेकिन कोशिश करें कि आप मिट्टी का करवा ही लाएं।

 

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