चेन्नई
तमिलनाडु में मानवता को शर्मसार कर देने वाली ऐसी घटना सामने आई है जो ना सिर्फ नारी सुरक्षा के तमाम दावों की कलई खोलती है, वहीं ये भी बताती है कि हवस में नर पिशाच किस हद तक अंधे हो जाते हैं.
दरिंदों ने कब दिया वारदात को अंजान?
कुड्डालोर जिले के नेइवेली की रहने वाली 32 वर्षीय महिला बीते शुक्रवार को किराना का सामान लेकर दुपहिया वाहन पर अपने एक रिश्तेदार के साथ घर लौट रही थी. रिश्तेदार ने रास्ते में पेशाब करने के लिए दुपहिया वाहन सड़क पर रोका और किनारे में चला गया. तभी वहां पांच नर पिशाचों ने महिला को सड़क पर अकेला खड़े देखकर घेर लिया और छेड़छाड़ करने लगे. हालांकि महिला का रिश्तेदार उसे बचाने के लिए आया. लेकिन पांचों ने उसे बुरी तरह पीट कर वहां से भगा दिया.
बारी को लेकर हुई झगड़ा तो साथी को मारी गोली
आरोप के मुताबिक फिर महिला को वो पांचों निर्जन स्थान पर ले गए और उसके साथ गैंगरेप किया. इसी दौरान पांचों में पहले रेप करने को लेकर आपस में झगड़ा हुआ और साथियों ने ही उनमें से एक की गोली मारकर हत्या कर दी. गोली कांड के बाद चारों दरिंदे महिला को वहीं बेहोशी की हालत में छोड़कर फरार हो गए. महिला ने बाद में होश में आने पर पास के पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई. पुलिस तत्काल महिला को मेडिकल टेस्ट कराने के लिए अस्पताल ले गई.
दिहाड़ी मजदूर हैं सभी आरोपी
तीन बच्चों की मां और विधवा महिला की शिकायत के आधार पर पुलिस ने चार आरोपियों की शिनाख्त कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. इनके नाम हैं- कार्तिक (23 वर्ष), एम सतीश कुमार (23), सी राजदुरई (25) और ए शिवाबालन (22). पांचवां आरोपी जिसकी साथियों ने ही हत्या कर दी, उसकी पहचान एम प्रकाश (26 वर्ष) के तौर पर हुई. सभी आरोपी दिहाड़ी मजदूर हैं और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.
महिला के खिलाफ अपराधों को लेकर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट में 2017 के आंकड़े दिए गए हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक इन अपराधों में सबसे ज्यादा 21.7% यौन उत्पीड़न के इरादे से हमले के अपराध हैं. दूसरे नंबर पर महिलाओं का अपहरण (20.5%) आता है. रिपोर्ट किए गए मामलों में 7% रेप के अपराध हैं.
2017 में रिपोर्ट किए गए महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या 3,59,849 रही. जबकि इससे पिछले साल 2016 में ऐसे अपराध 3.38 लाख ही रिपोर्ट हुए थे. 2015 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या 3.2 लाख रही थी. इन अपराधों का ग्राफ हर वर्ष बढ़ते जाने से पता चलता है कि महिलाओं की सुरक्षा के दावों में कितना दम है.