नई दिल्ली
महाभारत में कुछ पात्र ऐसे थे, जिन्हें उनके वचनों और कर्मों के आधार पर बड़ा माना जाता था लेकिन वो योद्धा सभी के लिए न्यायपूर्ण नहीं थे।जीवन में कभी न कभी उनसे अन्याय हो ही गया था।ऐसे ही योद्धा थे भीष्म, जिन्हें उनकी प्रतिज्ञाओं के लिए याद रखा जाता है लेकिन उनका किया है कार्य, उनकी मृत्यु का कारण बन गया। आइए, जानते हैं महाभारत की यह कहानी-
पूर्व जन्म में अम्बा थी शिखंडी
अम्बा काशीराज की पुत्री थी।उसकी दो और बहनें थी जिनका नाम अम्बिका और अम्बालिका था।विवाह योग्य होने पर उसके पिता ने अपनी तीनो पुत्रियों का स्वयंवर रचाया। हस्तिनापुर के संरक्षक भीष्म ने अपने भाई विचित्रवीर्य के लिए जो हस्तिनापुर का राजा भी था, काशीराज की तीनों पुत्रियों का स्वयंवर से हरण कर लिया। उन तीनों को वे हस्तिनापुर ले गए। वहां उन्हें अंबा के किसी और के प्रति आसक्त होने का पता चला।भीष्म ने अम्बा को उसके प्रेमी के पास पहुंचाने का प्रबंध कर दिया किंतु वहां से अम्बा तिरस्कृत होकर लौट आई।
अम्बा को मिला वरदान
अम्बा ने इसका उत्तरदायित्व भीष्म पर डाला और उनसे विवाह करने पर जोर दिया। भीष्म द्वारा आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने की प्रतिज्ञा से बंधे होने का तर्क दिए जाने पर भी वह अपने निश्चय से विचलित नहीं हुई। अंततः अंम्बा ने प्रतिज्ञा की कि वह एक दिन भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी।इसके लिए उसने घोर तपस्या की। उसका जन्म पुनः एक राजा की पुत्री के रूप में हुआ।पूर्वजन्म की स्मृतियों के कारण अम्बा ने पुनः अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए तपस्या आरंभ कर दी। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उसकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया तब अंबा ने शिखंडी के रुप में महाराज द्रुपद की पुत्री के रुप में जन्म लिया।
भीष्म से कोई नहीं करना चाहता था शत्रुता
सी।राजगोपालचारी द्वारा लिखित महाभारत के अनुसार शिखंडी जब पूर्वजन्म में अम्बा के रूप में न्याय मांगने के लिए जगह-जगह भटक रही थी, तो भगवान सुब्रह्मण्य ने उसकी व्यथा देखकर उसे कमल के फूलों का एक दिव्य हार दिया। इस हार के अनुसार ये हार जिस किसी योद्धा के गले में भी पहनाया जाता, उसमें असीम शक्ति उत्पन्न होती और उस योद्धा में भीष्म को मारने का बल का संचार होता। अम्बा पूर्वजन्म में इस हार को लेकर भटकती रही लेकिन किसी ने भी ये हार स्वीकार नहीं किया, क्योंकि कोई भी भीष्म से शत्रुता नहीं करना चाहता था।
ऐसे आई शिखंडी में असीम शक्ति
इस तरह अम्बा ने फूलों के इस हार को राजा द्रुपद के द्वार पर लटकाकर आत्मदाह कर लिया।अगले जन्म में अम्बा ने राजा द्रुपद के घर में जन्म लिया। शिखंडी ने स्त्र रूप में जन्म लिया था, लेकिन एक दिन उन्होंने द्वार पर उस हार को देखकर उसे पहन लिया। इस प्रकार उस हार की असीम शक्ति शिखंडी में समाहित हो गई और उसमें किसी पुरूष योद्धा जितना ही बल आ गया। इस तरह शिखंडी में जन्म से स्त्री गुण और हार के द्वारा पुरूष गुण भी समाहित हो गए और वे शिखंडी नामक ‘किन्नर’ बन गई। अंत में महाभारत के युद्ध में शिखंडी भीष्म पितामहा की मृत्यु का कारण बनी।