प्रयागराज
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेन्द्र गिरि ने कहा कि रविवार सुबह आठ बजे उनकी आशीष गिरि से फोन पर बात हुई थी। पुलिस को निरंजनी अखाड़े की ओर से सूचना दी गई कि 8 बजकर 45 मिनट पर महंत आशीष गिरि ने अपनी लाइसेंसी पिस्टल से गोली मारकर आत्महत्या कर ली। सवाल उठता है कि आखिर के 45 मिनट में ऐसा क्या हुआ कि आशीष गिरि आत्महत्या करने को मजबूर हो गए। उन्हें नाश्ते के लिए जाना था लेकिन वह नहीं गए। क्या उनकी मौत के पीछे सिर्फ बीमारी वजह थी या कुछ और। इसकी तफ्तीश के लिए पुलिस अफसरों ने फोरेंसिक टीम की मदद ली लेकिन कुछ खास हाथ नहीं आया।
फोरेंसिक टीम के आने से पहले कमरे को सील कर दिया गया था। दूसरी मंजिल पर बने कमरे में आशीष गिरि रहते थे। उनके कमरे से जुड़ा एक और कमरा है। दोनों कमरों की पुलिस ने तलाशी ली। महंत आशीष गिरि जमीन पर बिस्तर लगाकर सोते थे। बिस्तर पर उनका शरीर खून से लथपथ था। तकिया के पास ही दोनों मोबाइल रखे थे। आलमारी पर दवाएं रखी थीं। फोरेंसिक एक्सपर्ट ने पिस्टल अपने कब्जे में लेकर उसे खोजी कुत्ता को सुंघाया ताकि यह पता चल सके कि कहीं किसी दूसरे ने तो पिस्टल इस्तेमाल नहीं की लेकिन खोजी कुत्ता कमरे से बाहर नहीं निकला। वहीं घूमता रहा। ऐसे में फोरेंसिक टीम को यकीन हो गया कि लाइसेंसी पिस्टल महंत की थी और उन्होंने ही खुद को गोली मारी है। इसके बाद फोरेंसिक टीम ने सभी पहलुओं पर ध्यान देते हुए तफ्तीश की लेकिन कोई बात सामने नहीं आई।
घटना की खबर सुनकर पहुंचे साधु संतों से डीआईजी केपी सिंह और एसपी सिटी ने जानकारी ली। पुलिस अफसरों को बताया गया कि आशीष गिरि काफी समय से बीमार थे। देहरादून में उनकी हालत बिगड़ गई थी तब उन्हें मैक्स अस्पताल में भर्ती भी कराया गया था। उसके बाद से उनकी हालत में सुधार था लेकिन फिर न जाने क्यों उन्होंने जान दे दी। एसपी सिटी बृजेश श्रीवास्तव ने बताया कि पैथोलाजी रिपोर्ट और मेडिकल रिपोर्ट से पता चला कि उनका लीवर खराब हो चुका था। शायद इसी बीमारी से परेशान होकर उन्होंने जान दे दी।