भागलपुर में नवजात और किशोरों की सेहत की नियमित मॉनिटरिंग नहीं हो रही, रैंकिंग में पिछड़े

भागलपुर 
भागलपुर में नवजात से लेकर किशोरों की सेहत की नियमित मॉनिटरिंग नहीं हो पा रही है। आलम यह है कि जिले की 21 आरबीएसके (राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम) की टीम अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पा रही है। इससे अधिकांश संख्या में मायागंज एवं सदर अस्पताल में बच्चे इलाज के लिए तब पहुंच रहे हैं, जब उनकी बीमारी गंभीरावस्था में पहुंच चुकी होती है। टीम की इस लापरवाही के कारण हाल में ही राज्यस्तरीय रैंकिंग में भागलपुर के सरकारी अस्पतालों की रैंकिंग सूबे में 18वें स्थान पर आ गयी।

आरबीएसके की 21 टीम में 31 डॉक्टर तैनात 
जिले में आज की तारीख में आरबीएसके की 21 टीम कार्यरत है। इनमें 31 डॉक्टर तैनात हैं। आरबीएसके द्वारा जारी गाइडलाइन के मुताबिक, अगर एक टीम में दो डॉक्टर हैं तो इस टीम को हर दिन शून्य से लेकर 18 साल तक के कम से कम 80 से 100 बच्चों की सेहत की जांच करनी है। ऐसे में इन टीमों में तैनात 31 डॉक्टरों को रोज 40 से 50 बच्चों की सेहत की जांच करनी है। लेकिन यह लक्ष्य जिले की एक भी टीम के एक भी डॉक्टर साल 2019 में हासिल नहीं कर सके। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, हर डॉक्टर औसतन 15 से 20 बच्चों की सेहत रोजाना नहीं जांच सके।

बच्चों में विकार, दिव्यांगता, कमी व बीमारी का पता लगाना है टीम का काम
आरबीएसके का मूल उद्देश्य शून्य से 18 साल तक के बच्चों में चार प्रकार की परेशानी (विकार, बीमारी, कमी व दिव्यांगता) की जांच करनी है। साथ ही इस टीम को बच्चों के विकास में आ रही बाधाओं की जांच कर उन्हें अस्पताल तक रेफर करना है। डीएचएस के आंकड़े बताते हैं कि जन्म लेने वाले हर 100 बच्चों में से छह से सात बच्चों को जन्म संबंधी विकार होता है। यानी 9.6 प्रतिशत नवजातों की मृत्यु का कारण जन्म संबंधी विकार से होता है। 

इस तरह की समस्या आ रही सामने 
-सन्हौला निवासी रामप्रीत के पांच साल के बेटे को सांस लेने में तकलीफ हुई तो उसे 27 जनवरी को मायागंज अस्पताल में दिखाया गया, जहां उसे पता चला कि उसे हृदय में छेद है। अब परिजन उसके इलाज के लिए परेशान हैं।
-सुल्तानगंज निवासी सात साल के सुबोध की खांसी ठीक नहीं हो रही थी। उसे चेस्ट फिजिशियन को दिखाया तो पता चला कि उसे टीबी है। डॉक्टर ने पोषण की कमी से उसे टीबी होना बताया। बच्चे को पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कर इलाज कराया गया। तब जाकर वह तीन सप्ताह बाद कुपोषण से मुक्त हुआ।

 टीम के कार्यों की समीक्षा की जायेगी। टीम की कमियों को दुरुस्त व परेशानियों का निदान किया जायेगा ताकि राष्ट्रीय मानक पर यह टीम काम कर सके। – डॉ. विजय कुमार सिंह, सिविल सर्जन 

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