लखनऊ
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने अपनी बैठक में फैसला लिया है कि वह अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन दायर करेगा। फैसले के बाद बोर्ड की ओर से प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा गया कि मस्जिद की जमीन के बदले में मुसलमान कोई अन्य जमीन कबूल नहीं कर सकते हैं।
एआईएमपीएलबी की ओर से सैयद कासिम रसूल इलियास ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर कुछ बिंदु गिनाते हुए बताया कि उनकी रिव्यू पिटिशन का आधार क्या है। बोर्ड ने जो बिंदु गिनाए उनमें से कुछ प्रमुख बिंदु ये हैं।
1.बाबरी मस्जिद की तामीर बाबर के कमांडर मीर बाकी द्वारा 1528 में हुई थी जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कबूल किया है।
2. मुसलमानों द्वारा दिए गए सबूत के मुताबिक, 1857 से 1949 बाबरी मस्जिद की तीन गुंबद वाली इमारत और मस्जिद का अंदरूनी हिस्सा मुसलमानों के कब्जे और इस्तेमाल में रहा है। इसे भी सुप्रीम कोर्ट ने माना है।
3. बाबरी मस्जिद में आखिरी नमाज 19 दिसंबर 1949 को पढ़ी गई, सुप्रीम कोर्ट ने इसे भी माना है।
4.22 और 23 दिसंबर 1949 की रात में बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे राम की जो मूर्ति रखी गई, सुप्रीम कोर्ट ने उसे भी गैरकानूनी माना है।
5. बाबरी मस्जिद के बीच वाले गुंबद वाली जमीन के नीचे राम जन्मभूमि या वहां पूजा किए जाने का कोई सबूत नहीं है।
एआईएमपीएलबी ने दिया वक्फ ऐक्ट 1995 का हवाला
बोर्ड की मीटिंग में जिस दस्तावेज में सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर किए हैं, उसमें लिखा गया है, 'संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते समय माननीय न्यायमूर्ति ने इस बात पर विचार नहीं किया कि वक्फ ऐक्ट 1995 की धारा 104-ए और 51 (1) के तहत मस्जिद की जमीन के खिलाफ और वैधानिक रोक/पाबंदी को अनुच्छेद 142 के तहत मस्जिद की जमीन के बदले दूसरी जमीन कैसे दी जा सकती है? जबकि स्वंय सुप्रीम कोर्ट ने अपने दूसरे फैसले में स्पष्ट किया है कि अनुच्छेद 142 के अधिकार का प्रयोग करने की न्यायमूर्तियों ने लिए कोई सीमा निश्चित नहीं है।'
इससे पहले जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के मौलाना अरशद मदनी ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक के बाद अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा- 'इस तथ्य के बावजूद कि हम पहले से ही जानते हैं कि हमारी पुनर्विचार याचिका 100% खारिज कर दी जाएगी, हमें पुनर्विचार याचिका दायर करनी चाहिए। यह हमारा अधिकार है।'