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बेहमई कांड: फूलन पर 39 साल बाद फैसला!

कानपुर
80 के दशक की शुरुआत में देश-प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला देने वाले बेहमई कांड में आज निचली अदालत का फैसला आ सकता है। इस कांड की मुख्य आरोपी फूलन देवी की 2001 में हत्या कर दी गई थी। 2011 में जिन 5 आरोपियों के खिलाफ ट्रायल शुरू हुआ था, उनमें से एक की मौत हो चुकी है।

बेहमई में 20 लोगों की हुई थी हत्या
आरोप है कि अपने अपने साथ हुए गैंगरेप का बदला लेने के लिए 14 फरवरी, 1981 को फूलन देवी और उसके गैंग के कई अन्य डकैतों ने कानपुर देहात में यमुना के बीहड़ में बसे बेहमई गांव में 20 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इनमें 17 लोग ठाकुर बिरादरी से ताल्लुक रखते थे। वारदात के दो साल बाद तक पुलिस फूलन को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी।

1983 में सरेंडर, बनीं सांसद, फिर हत्या
1983 में फूलन ने कई शर्तों के साथ मध्य प्रदेश में आत्मसमर्पण किया था। 1993 में फूलन जेल से बाहर आईं। वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर मिर्जापुर लोकसभा सीट से दो बार सांसद भी बनीं। 2001 में शेर सिंह राणा ने फूलन देवी की दिल्ली में उनके घर के पास हत्या कर दी थी। 2011 में स्पेशल जज (डकैत प्रभावित क्षेत्र) में राम सिंह, भीखा, पोसा, विश्वनाथ उर्फ पुतानी और श्यामबाबू के खिलाफ आरोप तय होने के बाद ट्रायल शुरू हुआ। राम सिंह की जेल में मौत हो गई। फिलहाल पोसा ही जेल में है।

पीड़ित पक्ष की महज 8 विधवाएं ही जिंदा
इस हत्‍याकांड में मारे गए लोगों की विधवाएं न्‍याय की बाट जोहती रहीं। इनमें से आज महज 8 ही जीवित रह गई हैं। ये भी किसी तरह जानवरों को पालकर अपना जीवन-यापन कर रही हैं। उनसे विधवा पेंशन का वादा किया गया था लेकिन वह वादा ही रहा। गांव में बिजली कुछ समय ही आती है, रात में गांव अंधेरे में डूब जाता है। नजदीकी बस स्‍टैंड यहां से 14 किलोमीटर दूर है। प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र तक जाने में करीब दो घंटे लग‍ते हैं। 300 घरों के इस गांव में रह रही इन विधवाओं के पास गरीबी में जीने के अलावा कोई और रास्‍ता नहीं बचा।

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