मुंबई
बीजेपी की तरफ से बार-बार राज्य में सरकार बनाने का दावा किए जाने और राज्य में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार के गठन में हो रही देरी से महाराष्ट्र की राजनीति सहमी हुई है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार के अप्रत्याशित फैसले लेने की छवि का साया इसकी प्रमुख वजह है। बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित भी सीना ठोक कर बीजेपी के सरकार बनाने के दावे को निराधार नहीं मान पा रहे।
शुक्रवार को पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने दावा किया कि राज्य में बीजेपी के अलावा कोई भी दल सरकार नहीं बना सकता। राज्य में दोबारा बीजेपी की सरकार बनेगी। बैठक के बाद पत्रकारों को यह जानकारी बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकांत पाटील ने दी। उन्होंने कह कि बीजेपी के पास 119 विधायकों को समर्थन है और जल्द सरकार बनाने के लिए कदम आगे बढ़या जाएगा।
राजनीतिक पंडित मान रहे हैं कि ताजा स्थितियों में शिवसेना-बीजेपी का पुनर्मिलन संभव दिखाई नहीं दे रहा। एनडीए की दिल्ली में होने वाली बैठक में भी बीजेपी ने शिवसेना को आमंत्रित नहीं किया है। राजनीतिक सर्कल में इसे बीजेपी-शिवसेना गठबंधन खत्म होने का ऐलान माना जा रहा है। ऐसे में यह कयास लगाया जा रहा है कि अगर बीजेपी राज्य में अपनी सरकार बनाने का दावा कर रही है, तो यह बिना एनसीपी के संभव नहीं है।
जादुई आंकड़े का जुगाड़
बीजेपी को अपनी सरकार बनाने के लिए 145 विधायक चाहिए। इस समय उसके पास 119 विधायक हैं। 105 उसके खुद के और 14 अन्य निर्दलीय विधायक उसके साथ हैं। ऐसे में उसे सिर्फ 26 विधायक चाहिए। राज्य में इस वक्त जैसी स्थिति है, उसमें किसी दल के विधायकों के टूटने की संभावना भी कम ही है। वैसे भी बीजेपी इतनी जल्दी विधायकों की तोड़-फोड़ या खरीद-फरोख्त का दाग खुद के माथे पर नहीं लेना चाहेगी। इसीलिए बीजेपी की कोशिश यही होगी कि वह शिवसेना को अलग-थलग करने के लिए एनसीपी को अपने पाले में कर ले। एनसीपी के पास 54 विधायक हैं। वैसे भी पिछली बार एनसीपी-बीजेपी को बिना शर्त समर्थन की पेशकश कर ही चुकी है।
फायदे-नुकसान का गणित
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पिछले पांच साल से सत्ता से दूर एनसीपी के लिए दोनों तरफ स्थिति फायदे वाली है। अगर वह शिवसेना और कांग्रेस के साथ राज्य में सरकार बनाती है तब भी और बीजेपी के साथ जाती है तब भी। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी के साथ जाना एनसीपी के लिए ज्यादा फायदे का सौदा है। वह एनडीए में शिवसेना की जगह ले सकती है, तो उसे राज्य और केंद्र दोनों जगह सरकार में हिस्सेदारी मिल सकती है।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता जो राज्य में मंत्री भी रहे हैं, ने एनबीटी से कहा, 'पवार की पार्टी महाराष्ट्र के पांच जिलों तक सीमित पार्टी है। उन्हें मालूम है कि उन्हें ताउम्र गठबंधन की राजनीति करनी है। ऐसे में वह राज्य और केंद्र दोनों जगह अधिकतम फायदा लेने से चूकेंगे नहीं। कांग्रेस के इस पूर्व मंत्री ने कहा, 'आखिर शिवसेना का मुख्यमंत्री बनवाने में एनसीपी क्यों ही रुचि लेगी। जबकि यह साफ है कि कई केसों में फंसे उसके नेताओं को दिल्ली के साथ समझौता करके तत्काल राहत मिल सकती है।'
कांग्रेस का कनेक्शन
कांग्रेस नेता का यह भी कहना है कि एनसीपी यह कभी नहीं चाहेगी कि राज्य में कांग्रेस को महाराष्ट्र में संजीवनी मिले। राज्य में कांग्रेस की हालत किसी से छुपी नहीं है। पवार के कद का कोई नेता महाराष्ट्र कांग्रेस में नहीं है। इस बार के विधानसभा चुनाव के बाद, तो कांग्रेस पूरी तरह से पवार की छात्रछाया में चली गई है। ऐसे में एनसीपी यह क्यों चाहेगी कि कांग्रेस को महाराष्ट्र में शिवसेना जैसा मजबूत दोस्त मिल जाए।
तर्कों के परे
इन तमाम तर्कों के बावजूद एक तर्क यह भी है कि शिवसेना के साथ सरकार बनाने की पहल खुद एनसीपी ने ही की है। कांग्रेस को तैयार करने का काम भी खुद पवार ने किया है। ऐसे में राजनीतिक ड्रामे का अंतिम सीन सामने आने तक किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दीबाजी होगी।