नई दिल्ली
प्रशांत किशोर ने दो साल पहले 2018 में जेडीयू से सियासी पारी का आगाज किया था. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीके को बिहार का भविष्य बताया था. अब उसी नीतीश कुमार का रुख प्रशांत किशोर के लिए बदल गया है. पीके को बुधवार को जेडीयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह रही कि जिस प्रशांत किशोर की तारीफ में जो नीतीश कसीदे पढ़ा करते थे, उन्होंने पीके को बाहर का रास्ता दिखा दिया.
बता दें कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर 2014 के आम चुनाव में पहली बार चर्चा में आए. उन्हें बीजेपी के चुनाव प्रचार को 'मोदी लहर' में तब्दील करने का श्रेय जाता है. इसके बाद प्रशांत किशोर और अमित शाह के बीच मतभेद की खबरें आईं. फिर बीजेपी का काम छोड़ पीके ने नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू की कमान संभाली.
नीतीश को दिलाई धमाकेदार जीत, मिला इनाम
बिहार के 2015 चुनाव में पीके ने महागठबंधन (आरजेडी+जेडीयू+कांग्रेस) के प्रचार की जिम्मेदारी संभाल ली. इस चुनाव में बीजेपी को तगड़ी हार का सामना करना पड़ा. नीतीश कुमार बिहार के सीएम बने तो प्रशांत किशोर को कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला. नीतीश के साथ प्रशांत किशोर की नजदीकियां बढ़ती गईं.
इधर, पीके का जेडीयू में कद बढ़ने लगा, उधर जेडीयू के कई दिग्गज नेता साइडलाइन हो गए. इसमें आरसीपी सिंह से लेकर लल्लन सिंह जैसे नेता शामिल थे. इसके बाद जेडीयू का आरजेडी से नाता टूटा और बीजेपी से नजदीकी बढ़ी, लेकिन प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार की केमिस्ट्री पर कोई असर नहीं पड़ा.
जब नीतीश ने बताया भविष्य
2018 में प्रशांत किशोर आधिकारिक तौर पर जेडीयू में शामिल हो गए. नीतीश कुमार ने उन्हें सीधे पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष घोषित कर दिया. पीके अघोषित रूप से पार्टी में नंबर 2 माने जाने लगे. प्रशांत किशोर की जेडीयू में एंट्री के दौरान नीतीश कुमार ने कहा था, 'मैं आपको कहता हूं, प्रशांत किशोर भविष्य हैं.' सूत्रों की मानें तो पीके के बढ़ते सियासी कद से जेडीयू के कई नेताओं को चिंता में डाल दिया था. इन्हीं में एक नाम आरसीपी सिंह का भी था, जिन्होंने कभी नीतीश कुमार के राइट हैंड माने जाने वाले लल्लन सिंह को रिप्लेस किया था.
प्रशांत किशोर के जेडीयू में आने के बाद आरसीपी सिंह पूरी तरह से साइडलाइन हो चुके थे. नीतीश कुमार के सीएम हाउस के अतरिक्त दूसरे आवास 7 सर्कुलर रोड पर प्रशांत किशोर बैठने लगे. यहां वह जेडीयू के नेताओं के साथ बैठकें करते और पार्टी का जनाधार बढ़ाने की दिशा में काम करते. जेडीयू में नीतीश कुमार के बाद प्रशांत किशोर के घर भी जेडीयू नेताओं की भीड़ जुटने लगी.
वहीं, जेडीयू में साइडलाइन चल रहे आरसीपी सिंह और लल्लन सिंह के बीच नजदीकी बढ़ी. आरसीपी सिंह ने दिल्ली में अपनी लॉबिइंग बीजेपी में शुरू कर दी और अमित शाह से उनके बेहतर रिश्ते बन गए. इसी बीच पिछले साल प्रशांत किशोर ने एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि आरजेडी से गठबंधन तोड़ने के बाद नीतीश कुमार को नैतिक रूप से चुनाव में जाना चाहिए था न कि बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनानी चाहिए थी.
सूत्रों की मानें तो प्रशांत किशोर का यह बयान नीतीश कुमार को तीर की तरह चुभा. मौके की नजाकत को समझते हुए आरसीपी सिंह ने लल्लन सिंह के साथ मिलकर पीके के खिलाफ ऐसी सियासी गोटियां सेट की कि नीतीश के आंखो के तारे बने प्रशांत किशोर कांटे की तरह चुभने लगे.
हालांकि पिछले साल जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रशांत किशोर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बगल में बैठे नजर आए. बैठक के बाद नीतीश ने ये कहा था कि प्रशांत किशोर की आईपैक कंपनी है, उसका पार्टी से कोई लेना देना नहीं है. इसके बाद, दोनों के बीच नजदीकियां पहले जैसे हो गईं, लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान अमित शाह ने जेडीयू के साथ सीट शेयरिंग को लेकर आरसीपी सिंह के जरिए नीतीश कुमार के साथ बातचीत शुरू की.
2019 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू के प्रचार की कमान प्रशांत किशोर के बजाय आरसीपी सिंह ने संभाली. जेडीयू के नारे से लेकर पोस्टर और एजेंडा तक आरसीपी सिंह ने तय किया. इसी के बाद पीके ने अपने आपको पार्टी से किनारे कर लिया. नागरिकता संशोधन कानून पर जेडीयू मोदी सरकार के साथ खड़ी रही. इसका प्रशांत किशोर ने विरोध किया तो आरसीपी सिंह एक्ट के समर्थन में आ गए. इस तरह से पीके की छवि नीतीश कुमार की नजर और भी बिगड़ गई.
प्रशांत किशोर ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी के प्रचार की कमान संभाला और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. साथ ही नीतीश कुमार पर भी सवाल खड़े करने लगे. विवाद बढ़ता ही गया और आरोप-प्रत्यारोप दोनों ओर से लगाए जाने लगे. नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह के साथ मिलकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि अमित शाह के कहने पर प्रशांत किशोर को पार्टी में लिया गया है और उन्हें पार्टी से बाहर जाना है तो जा सकते हैं.