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प्रभु श्रीराम का नाल लेने मात्र से हमें आत्मिक शांति मिलती है

हिन्दू धर्म के चार आधार स्तंभों में से एक हैं भगवान श्रीराम

हिन्दू धर्म के चार आधार स्तंभों में से एक हैं भगवान श्रीराम। ‘राम’ यह शब्द दिखने में जितना सुंदर है उससे कहीं महत्वपूर्ण है इसका उच्चारण। राम कहने मात्र से शरीर और मन में अलग ही तरह की प्रतिक्रिया होती है, जो हमें आत्मिक शांति देती है। भगवान श्री राम ने एक आदर्श चरित्र प्रस्तुत कर समाज को एक सूत्र में बांधा था। भारत की आत्मा है प्रभु श्रीराम।

ऐतिहासिक महापुरुष थे भगवान श्रीराम
भगवान राम एक ऐतिहासिक महापुरुष थे। शोध के अनुसार पता चलता है कि भगवान राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था। इनका जन्म दिन हर साल चैत्र मास की नवमी को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। उपरोक्त जन्म का समय राम की वंशपरंपरा और उनकी पीढयि़ों से भी सिद्ध होता है। अयोध्या के इतिहास और अयोध्या की वंशावली से भी यह सिद्ध होता है।

प्रभु श्रीराम पर लिखे गए सभी ग्रंथों में वाल्मीकि कृत रामायण ही प्रमाणिक ग्रंथ माना जाता है। यह ग्रंथ मूल संस्कृत में लिखा गया ग्रंथ है। तमिल भाषा में कम्बन रामायण, असम में असमी रामायण, उडिय़ा में विलंका रामायण, कन्नड़ में पंप रामायण, कश्मीर में कश्मीरी रामायण, बंगाली में रामायण पांचाली, मराठी में भावार्थ रामायण आदि भारतीय भाषाओं में प्राचीनकाल में ही रामायण लिखी गई।

मुगलकाल में गोस्वामी तुलसीदास ने अवधि भाषा में रामचरित मानस लिखी, जो कि हिन्दी भाषा और उससे जुड़े राज्यों में प्रचलित है। विदेशी में कंपूचिया की रामकेर्ति या रिआमकेर रामायण, लाओस फ्रलक-फ्रलाम (रामजातक), मलयेशिया की हिकायत सेरीराम, थाईलैंड की रामकियेन और नेपाल में भानुभक्त कृत रामायण आदि प्रचलीत है। इसके अलावा भी अन्य कई देशों में वहां की भाषा में रामायण लिखी गई है।

कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए
बता दें कि वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे। उनमें से एक इक्ष्वाकु के कुल में रघु हुए। रघु के कल में राम हुए। राम के पुत्र कुश हुए कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए जो महाभारत के काल में कौरवों की ओर से लड़े थे। शल्य की 25वीं पीढ़ी में सिद्धार्थ हुए जो शाक्य पुत्र शुद्धोधन के बेटे थे। इन्हीं का नाम आगे चलकर गौतम बुद्ध हुआ। यह नेपाल के लुम्बिनी में रहते थे। सिद्धार्थ के बाद राहुल, प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्र हुए। जयपुर राजघराने की महारानी पद्मिनी और उनके परिवार के लोग की राम के पुत्र कुश के वंशज हंै।

वनवास के 12 वर्ष जंगल में रहकर काटे
भगवान राम को 14 वर्ष को वनवास हुए था। उनमें से 12 वर्ष उन्होंने जंगल में रहकर ही काटे। 12वें वर्ष की समाप्त के दौरान सीता का हरण हो गया तो बाद के 2 वर्ष उन्होंने सीता को ढूंढने, वानर सेना का गठन करने और रावण से युद्ध करने में गुजारे। 14 वर्ष के दौरान उन्होंने बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किए जिसके चलते आज भी हमारे देश और देश के बाहर राम संस्कृति और धर्म को देखा जा सकता है।

प्रभु श्रीराम ने वन में बहुत ही सादगी भरा तपस्वी का जीवन जिया। वे जहां भी जाते थे तो 3 लोगों के रहने के लिए एक झोपड़ी बनाते थे। वहीं भूमि पर सोते, रोज कंद-मूल लाकर खाते और प्रतिदिन साधना करते थे। उनके तन पर खुद के ही बनाए हुए वस्त्र होते थे। धनुष और बाण से वे जंगलों में राक्षसों और हिंसक पशुओं से सभी की रक्षा करते थे। इस दौरान उन्होंने देश के सभी संतों के आश्रमों को बर्बर लोगों के आतंक से बचाया।

अत्रि को राक्षसों से मुक्ति दिलाने के बाद प्रभु श्रीराम दंडकारण्य क्षेत्र में चले गए, जहां आदिवासियों की बहुलता थी। यहां के आदिवासियों को बाणासुर के अत्याचार से मुक्त कराने के बाद प्रभु श्रीराम 10 वर्षों तक आदिवासियों के बीच ही रहे। उन्होंने वनवासी और आदिवासियों के अलावा निषाद, वानर, मतंग और रीछ समाज के लोगों को भी धर्म, कर्म और वेदों की शिक्षा दी।

वन में रहकर उन्होंने वनवासी और आदिवासियों को धनुष एवं बाण बनाना सिखाया, तन पर कपड़े पहनना सिखाया, गुफाओं का उपयोग रहने के लिए कैसे करें, ये बताया और धर्म के मार्ग पर चलकर अपने रीति-रिवाज कैसे करें, यह भी बताया। उन्होंने आदिवासियों के बीच परिवार की धारणा का भी विकास किया और एक-दूसरे का सम्मान करना भी सिखाया। उन्हीं के कारण हमारे देश में आदिवासियों के कबीले नहीं, समुदाय होते हैं। उन्हीं के कारण ही देशभर के आदिवासियों के रीति-रिवाजों में समानता पाई जाती है।

संप्रदायों को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया
भगवान श्रीराम ने ही सर्वप्रथम भारत की सभी जातियों और संप्रदायों को एक सूत्र में बांधने का कार्य अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान किया था। एक भारत का निर्माण कर उन्होंने सभी भारतीयों के साथ मिलकर अखंड भारत की स्थापना की थी। भारतीय राज्य तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, केरल, कर्नाटक सहित नेपाल, लाओस, कंपूचिया, मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा और थाईलैंड आदि देशों की लोक-संस्कृति व ग्रंथों में आज भी राम इसीलिए जिंदा हैं।

14 वर्ष के वनवास में से अंतिम 2 वर्ष प्रभु श्रीराम दंडकारण्य के वन से निकलकर सीता माता की खोज में देश के अन्य जंगलों में भ्रमण करने लगे और वहां उनका सामना देश की अन्य कई जातियों और वनवासियों से हुआ। उन्होंने कई जातियों को इक_ा करके एक सेना का गठन किया और वे लंका की ओर चल पड़े। श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया।

महाकाव्य ‘रामायण’ के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है। इसके बाद प्रभु श्रीराम ने नल और नील के माध्यम से विश्व का पहला सेतु बनवाया था और वह भी समुद्र के ऊपर। आज उसे रामसेतु कहते हैं जबकि राम ने इस सेतु का नाम नल सेतु रखा था।

जाने-माने इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री अनुसंधानकर्ता डॉ. राम अवतार ने श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े ऐसे 200 से भी अधिक स्थानों का पता लगाया है, जहां आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके या रहे थे। वहां के स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की जांच-पड़ताल वैज्ञानिक तरीकों से की।

इन स्थानों में से प्रमुख के नाम है- सरयू और तमसा नदी के पास के स्थान, प्रयागराज के पास श्रृंगवेरपुर तीर्थ, सिंगरौर में गंगा पार कुरई गांव, प्रायागराज, चित्रकूट (मप्र), सतना (मप्र), दंडकारण्य के कई स्थान, पंचवटी नासिक, सर्वतीर्थ, पर्णशाला, तुंगभद्रा, शबरी का आश्रम, ऋष्यमूक पर्वत, कोडीकरई, रामेश्वरम, धनुषकोडी, रामसेतु और नुवारा एलिया पर्वत श्रृंखला।

वाल्मीकि ने रामायण की संरचना श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद वर्ष 5075 ईपू के आसपास की होगी (1/4/1- 2)। श्रुति-स्मृति की प्रथा के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी परिचलित रहने के बाद वर्ष 1000 ईपू के आसपास इसको लिखित रूप दिया गया होगा। इस निष्कर्ष के बहुत से प्रमाण मिलते हैं। रामायण की कहानी के संदर्भ निम्नलिखित रूप में उपलब्ध हैं- कौटिल्य का अर्थशास्त्र (चौथी शताब्दी ईपू), बौद्ध साहित्य में दशरथ जातक (तीसरी शताब्दी ईपू), कौशाम्बी में खुदाई में मिलीं टेराकोटा (पक्की मिट्टी) की मूर्तियां (दूसरी शताब्दी ईपू), नागार्जुनकोंडा (आंध्रप्रदेश) में खुदाई में मिले स्टोन पैनल (तीसरी शताब्दी), नचार खेड़ा (हरियाणा) में मिले टेराकोटा पैनल (चौथी शताब्दी), श्रीलंका के प्रसिद्ध कवि कुमार दास की काव्य रचना ‘जानकी हरण’ (सातवीं शताब्दी), आदि।

राम के काल में नदी में नाव और पोत चलते थे। इसी काल में कुछ लोगों के पास विमान भी होते थे, जिसमें 4 से 6 लोग बैठकर यात्रा कर सकते थे। रामायण के अनुसार रावण के पास वायुयानों के साथ ही कई समुद्र जलपोत भी थे। रामायण काल में शतरंज खेला जाता था। इस खेल का आविष्कार लंका के राजा रावण की रानी मंदोदरी ने किया था। तब इसे चतुरंग कहा जाता था। यह भी कहा जाता है कि राम के काल में पतंग भी उड़ाई जाती थी। राम-रावण युद्ध केवल धनुष-बाण और गदा-भाला जैसे अस्त्रों तक सीमित नहीं था।

कहते हैं कि युद्ध के दौरान राम सेना पर सद्धासुर ने ऐसा विकट अस्त्र छोड़ा जिससे सुवेल पर्वत की चोटी को सागर में गिराते हुए सीधे दक्षिण भारत के गिरि को भी समुद्र में गिरा दिया था। सद्धासुर का अंत करने के लिए बिजली के आविष्कारक मुनि अगस्त्य ने सद्धासुर के ऊपर ब्रह्मास्त्र छुड़वाया था जिससे सद्धासुर और अनेक सैनिक तो मारे ही गए, लंका के शिव मंदिर भी विस्फोट के साथ ढहकर समुद्र में गिर गए थे।

इसी तरह उस काल में दूरबीन भी होता था। राम को अग्निवेश ने एक विशिष्ट कांच दिया था, जो संभवत: दूरबीन था। इसी दूरबीन से राम ने लंका के द्वार पर लगे ‘दारूपंच अस्त्र’ को देखा और प्रक्षेपास्त्र छोड़कर नष्ट कर दिया था। राम और रावण की सेनाओं के पास भुशुंडियां (बंदूकें) थीं। कुछ सैनिकों के पास स्वचालित भुशुंडियां भी थीं। गस्त्य ने राम के हितार्थ शंकर से ‘अजगव धनुष’ मांगा था।

इस धनुष की व्याख्या करते हुए श्री शाही ‘लंकेश्वर’ में लिखते हैं- ‘चाप’ अभी बंदूक के घोड़े (ट्रिगर) के लिए उपयोग में लाया जाता है। चाप ट्रिगर का ही पर्यायवाची होकर अजगव धनुष है। पिनाक धनुष में ये सब अनेक पहियों वाली गाड़ी पर रखे रहते थे। तब चाप चढ़ाने अथवा घोड़ा (ट्रिगर) दबाने से भंयकर विस्फोट करते हुए शत्रुओं का विनाश करते थे।

इसके अलावा दूरभाष की तरह उस युग में ‘दूर नियंत्रण यंत्र’ था जिसे ‘मधुमक्खी’ कहा जाता था। विभीषण को लंका से निष्काषित कर दिया था, तब वह लंका से प्रयाण करते समय मधुमक्खी और दर्पण यंत्रों के अलावा अपने 4 विश्वसनीय मंत्री अनल, पनस, संपाती और प्रभाती को भी राम की शरण में ले गया था। राम के काल में सभी लोग बहुत ही नैतिक और सभ्य थे। सभी मर्यादा में रहकर जीवन यापन करते थे। अधिकतर लोगों को वेद का ज्ञान था।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रामायण काल के तीन लोग आज भी जिंदा है। इनका नाम है हनुमान, जामवंत और विभीषण। इनके काल के पूर्व के दो लोग भी आज तक जिंदा हैं। उनके नाम हैं- विरोचन पुत्र महाबली और जमदग्नि के पुत्र परशुराम।

श्रीराम की दो बहनें भी थी एक शांता और दूसरी कुकबी। दक्षिण भारत की रामायण के अनुसार श्रीराम की बहन का नाम शांता था, जो चारों भाइयों से बड़ी थीं। शांता राजा दशरथ और कौशल्या की पुत्री थीं, लेकिन पैदा होने के कुछ वर्षों बाद कुछ कारणों से राजा दशरथ ने शांता को अंगदेश के राजा रोमपद को दे दिया था। भगवान श्रीराम की बड़ी बहन का पालन-पोषण राजा रोमपद और उनकी पत्नी वर्षिणी ने किया, जो महारानी कौशल्या की बहन अर्थात श्रीराम की मौसी थीं।

अयोध्या आगमन के बाद राम ने कई वर्षों तक अयोध्या का राजपाट संभाला और इसके बाद गुरु वशिष्ठ व ब्रह्मा ने उनको संसार से मुक्त हो जाने का आदेश दिया। अश्विन पूर्णिमा के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अयोध्या से सटे फैजाबाद शहर के सरयू किनारे जल समाधि लेकर महाप्रयाण किया। श्रीराम ने सभी की उपस्थिति में ब्रह्म मुहूर्त में सरयू नदी की ओर प्रयाण किया उनके पीछे थे उनके परिवार के सदस्य भरत, शत्रुघ्न, उर्मिला, मांडवी और श्रुतकीर्ति। का उच्चारण करते हुए वे सरयू के जल में एक एक पग आगे बढ़ते गए और जल उनके हृदय और अधरों को छूता हुआ सिर के उपर चढ़ गया।

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