नई दिल्ली
19 सितंबर 2008 की सुबह देश की राजधानी दिल्ली में जामिया नगर इलाके के बाटला हाउस में एनकाउंटर हुआ. एनकाउंटर को बीते आज 11 साल हो गए लेकिन इस पर सियासत आज भी गरमा जाती है. कंट्रोवर्सी से लेकर राजनीति तक सब कुछ हुआ है इस एनकाउंटर पर. इस एनकाउंटर को लेकर आजतक ने ईडी के पूर्व डायरेक्टर और बाटला हाउस एनकाउंटर के दौरान ज्वाइंट कमिश्नर रहे करनैल सिंह से बातचीत की. पहली बार उन्होंने इस एनकाउंटर से जुड़े कई खुलासे किए हैं. बाटला हाउस एनकाउंटर के दौरान कैसा प्रेशर था? कैसे स्पेशल सेल की टीम को बांटने की कोशिश की गई? कैसे सियासी बयानबाजी के बीच एनकाउंटर का हर सबूत देना पड़ा? सभी पहलुओं को लेकर बातचीत हुई. पढ़ें उन्होंने क्या कहा-
गुजरात पुलिस को मिला था सुराग
गुजरात में 26 जुलाई 2008 में ब्लास्ट हुआ था. गुजरात पुलिस ने जांच की उससे जो लीड मिली वो उन्होंने इंटेलिजेंस एजेंसियों के अलावा सभी राज्यों की पुलिस से भी शेयर की. जानकारी दिल्ली पुलिस से भी शेयर की गई. जब उन लीड्स को डेवलप किया गया, जिसमें मुख्य काम इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा का था, तो डाउट गया एक फोन नंबर पर कि ये इन्वोल्ड हो सकता है. लीड के आधार पर बाटला हाउस में मोहन चंद शर्मा की टीम ने सर्च ऑपरेशन किया लेकिन इस दौरान एनकाउंटर हुआ. एनकाउंटर के बाद जो लीड्स मिली उससे पूरा इंडियन मुजाहिद्दीन का मॉड्यूल था वो धीरे-धीरे धराशाई हो गया.
एनकाउंटर को फर्जी बताया गया!
एनकाउंटर पर कंट्रोवर्सी हुई. जिनके निहितार्थ हैं, वे हमेशा कंट्रोवर्सी क्रिएट करने की कोशिश करते हैं और उस समय भी यह किया गया. एक वर्क प्रेशर था कि आपको समझाना है. लोग शक कर रहे थे. उनको क्लियर करना था कि नहीं ऐसा नहीं था, जो स्पेशल सेल की टीम ने करके भी दिखाया. लीगल स्क्रूटनी में भी यह साफ हो गया. काम स्पेशल सेल की टीम ने किया उसके बाद जो लीड मिली वो इंटेलिजेंस ऐजेंसी से शेयर की गई और उसके बाद कई सफलताएं मिलीं. जैसे 26 सितंबर को मुंबई पुलिस ने इंडियन मुजाहिद्दीन के एक और मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया. अलग-अलग राज्यों की पुलिस को भी सफलताएं मिलीं. यह सब साबित करता था कि बाटला हाउस में जो लोग पकड़े गए थे वे इंडियन मुजाहिद्दीन के लोग थे और उन्होंने बहुत सारी जगह पर ब्लास्ट किए थे.
बाटला हाउस पर हुई सियासत!
नेताओं के अलावा कुछ एक्टिविस्ट थे जिनका काम ही है पुलिस के एक्शन का विरोध करना. लेकिन सच नहीं बदलता. हमारे इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा और उनकी टीम एक क्लोज नेट टीम थी. यह पहला मौका नहीं था कि टीम ने किसी आतंकवादी को पकड़ा हो या एनकाउंटर हुआ हो. टीम ने कश्मीर में भी ऑपरेशन किया था. ऐसी टीम पर आरोप लगाना गलत है और गलत था टीम को आपस में बांटने की कोशिश. मोहन को आतंकवादी की गोली लगी, आतंकवादी को भी गोली लगी, वहां 2 आतंकी मारे गए और 2 भाग गए. एक पकड़ा भी गया वहां से जिससे आगे की लीड्स मिली तो सच्चाई नहीं बदलती और सच्चाई यही थी कि मोहन चंद शर्मा को आतंकवादी की गोली लगी थी.
टीम में कौन डालना चाहते थे फूट!
बहुत से लोग थे, कुछ एक्टिविस्ट थे जिनका नाम अभी मैं यहां नहीं लेना चाहूंगा. नेताओं का आपको मालूम है जो बोले थे टीवी पर. अब उस विवाद में जाने का कोई फायदा नहीं. 11 साल कोर्ट में केस हुए. एनएचआरसी ने जांच की, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं डाली गईं लेकिन सब जगह जीत सच की हई. टीम ने जो काम किया उसकी वजह से इंडियन मुजाहिदीन कमजोर हुआ. हर ब्लास्ट के बाद ई-मेल आते थे. यूपी कोर्ट ब्लास्ट, जयपुर ब्लास्ट, गुजरात ब्लास्ट के बाद जो मेल आए उसमें उन्होंने कहा कि हमारे आदमी सेफ हैं और हर ई-मेल में उन्होंने पुलिस वालों को धमकी दी कि हम आपको नहीं छोडेंगे. बाटला हाउस के बाद क्या हुआ? कौन सा ई-मेल आया? कौन सी धमकी आई? ये इशारा करता है कि आतंकवादियों की रफ्तार कम हुई और बहुत सारे लोग पकड़े भी गए.
आतंकवाद पर नेशनल पॉलिसी बने
एक नेशनल पॉलिसी आतंकवाद पर होनी चाहिए. चाहे वो किसी पार्टी की सरकार हो, उसे नेशनल पॉलिसी बनानी चाहिए. वह हर राजनीतिक शख्स पर लागू होनी चाहिए. तभी हम एक होकर आतंकवाद के खिलाफ युद्ध कर सकते हैं. नहीं तो जाहिर है जो भी टीम जांच कर रही है, उन पर बेवजह प्रेशर आता है और उनके काम में बाधा आती है.