नियमितीकरण में गड़बड़ी, शासन ने आयुक्त से मांगा जवाब

बिलासपुर
नगर निगम ने 18 दैनिक वेतनभागी कर्मचारियों को नियमित कर दिया है। जबकि इनसे ज्यादा पुराने कर्मचारी अब भी कतार में हैं। इस विवादित नियमितीकरण आदेश के बाद पूरे मामले की शिकायत और मुख्यमंत्री से हुई है। उनके निर्देश पर उप संचालक नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने आयुक्त को नोटिस जारी कर दस्तावेज मगाए हैं। माना जा रहा है कि शासन स्तर पर हो रही इस जांच से नियमितीकरण के नाम पर हो रही गफलत का खेल उजागर हो सकता है।

नगर निगम ने 1997 के पहले नियुक्त 18 दैनिक वेतनभागी कर्मचारियों को एक-एक कर नियमित कर दिया है। नियमित होने वाले कर्मचारियों के पहले से कार्यरत बाकी को छोड़ दिया गया है। इस विवादित निर्णय का स्थानीय स्तर पर प्रभावित कर्मचारियों ने विरोध किया। लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला। अंत में उन्होंने मुख्यमंत्री जनदर्शन में पूरे मामले की शिकायत की। इसके बाद नगरीय प्रशासन विभाग ने नोटिस देकर आयुक्त से सारे दस्तावेज तलब किया है।

माना जा रहा है कि इस विवादित निर्णय में कई तरह की अनदेखी हुई है। अधिकारियों की मेहरबानी चंद लोगों पर ही बरसी है। आनन-फानन में जारी हुए आदेश के बाद निगम में खलबली मच गई है। कर्मचारियों ने अब इस विवादित निर्णय के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। प्रकरण से जुड़े कई अहम दस्तावेज भी सार्वजनिक हो रहे हैं। इससे पता चला है कि जिन कर्मचारियों को नियमित किया गया है,उनमें से ज्यादातर की 2000 में सेवा ब्रेक हुई थी। इसके बाद भी उन्हें नियमित किया गया,जबकि अन्य कर्मचारी को सेवा ब्रेक के बहाने नियमित नहीं किया गया। शासन स्तर से होने वाली जांच में फर्जीवाड़े का खुलासा होने की बात कही जा रही है।

नगर निगम ने जिन 18 कर्मचारियों को नियमित किया है। सभी के लिए नियमितीकरण का अलग-अलग आदेश जारी किया गया है। जबकि सामान्यतया सभी कर्मचारियों का एक लिस्ट में आदेश जारी हुआ है। इसे असामान्य माना जा रहा है। अब तक स्थापना शाखा के कर्मचारियों ने नियमित किए गए सभी की कोई एक सूची नहीं बनाई है। इसने मामले को और भी संदिग्ध बना दिया है।

नगर निगम के अधिकारियों को केवल 18 कर्मचारियों को नियमित करने की इतनी जल्दबाजी थी कि उन्होंने पूर्व आयुक्त मुकेश बंसल द्वारा जारी आदेश की भी अनदेखी कर दी। बंसल ने अपने आदेश में साफ कर दिया था कि किसी भी कर्मचारी को नियमित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने हाईकोर्ट के निर्देश पर उक्त आदेश जारी किए थे। वर्तमान अधिकारियों ने अपने पूर्व आयुक्त के आदेश की ही अनदेखी कर दी।

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