पटना
दुर्गापूजा में बांग्ला संस्कृति की भी झलक दिखेगी। यहां बांग्ला पद्धति से मां दुर्गा की पूजा की परंपरा सैकड़ों वर्ष पुरानी है। लगभग आधा दर्जन जगहों पर बांग्ला पद्धति से पूजा होती है। इसमें बंगाली अखाड़ा लंगर टोली, काली मंदिर यारपुर, ऑर ब्लॉक, बोंरिंग रोड,अदालतगंज आदि प्रमुख है। बंगाली अखाड़ा की पूजा सबसे पुरानी है। शुरोद्दान पूजा समारोह समिति की ओर से यहां 126 वर्षों से मां दुर्गा की धूमधाम से पूजा हो रही है। षष्ठी से विजयादशमी तक यहां भक्तिरस की अविरल धारा बहती रहती है। श्रद्धालुओं की महती भीड़ जुटती है। शुक्रवार को बांग्ला पूजा पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित होंगी।
पष्ठी को बोधन से मां का आवाहन होता
बांग्ला पद्धति में प्रतिपदा के बदले षष्ठी से मां दुर्गा की पूजा शुरू होती है। षष्ठी यानी शुक्रवार को बोधन से मां का आवाहन किया जाएगा। सप्तमी कोअधिवास होगाहै जिसमें मां को पूरे विधि-विधान के साथ आमंत्रित किया जाएगा। इस मौके पर ढाकवादन खास आकर्षण होगा। दुर्गापूजा के लिए बंगाल के बाकुरा से ढाकवादक बुलाए गए हैं। सप्तमी से नवमी तक हर दिन मां दुर्गा की पूजा,आरती आदि ढाक की मधुर धुनों के बीच ही होगी।
एक चाला में होती हैं सारी प्रतिमाएं:
बांग्ला पूजा समितियों की ओर से आयोजित पूजन में माता की मूर्ति के साथ लक्ष्मी,गणेश,कार्तिक आदि की प्रतिमाएं एक चाला में ही रहती हैं। सभी प्रतिमाएं एक-दूसरे से जुड़ीं होती हैं। मां की प्रतिमा को बनारसी साड़ी बिना किसी कट के पहनायी जाती है। इस प्रतिमाओं में बांग्ला संस्कृति की पूरी झलक देखने को मिलती है।
महानवमी को कुंवारी पूजन:-
बांग्ला पूजा समितियों द्वारा महानवमी को कुंवारी पूजन किया जाएगा। एक 8 वर्ष के कम आयु की कन्या को माता का स्वरूप देकर पूरी निष्ठा व भक्तिभाव से पूजा की जाएगी। कुंवारी पूजन में श्रद्धालुओं की महती भीड़ जुटती है।
शांति पूजा :-
शांति पूजा के लिए बंगाल से नीलकंठ व कमल के फूल मंगाए जाते हैं । माता की पूजा के लिए 108 कमल व 108 नीलकंठ के फूल चढ़ाए जाने की परंपरा है। महाष्टमी -नवमी के संधिकाल के बीच शांति पूजा की जाती है।
सिंदूर खेला जमकर होती है :-
मां दुर्गा की विदाई एक बेटी की तरह ही की जाती है। महिला-पुरुष सभी भावुक हो जाते हैं। विजयादशमी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा के विसर्जन के समय महिलाएं एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर सिंदूर खेला करती हैं।
मां का दर्शन दर्पण से :-
विसर्जन के दिन मां दुर्गा का दर्शन सीधे नहीं बल्कि दर्पण के जरिए किया जाता है। श्रद्धालु प्रतिमा के सामने एक कठौती में पानी व आइना रखते हैं। इसी आइने में मां दुर्गा के प्रतिबिंब का दर्शन किया जाता है।
धुनुची व ढाकी वादन:-
बांग्ला पद्धति में धुनुची नृत्य का खास महत्व है। सप्तमी से नवमी तक आरती के समय धुनुची नृत्य होती है। सारे श्रद्धालु मां की आरती के समय भाव-विह्वल होकर नृत्य करते हैं। बोधन से नवमी तक हर दिन बांकुरा के कलाकार ढाकी वादन करने यहां आते हैं।
चूडा़-दही खिलाकर विदाई::
मां दुर्गा की विदाई विजयादशमी के दिन चूड़ा-दही का भोग लगाकर की जाती है। बाद में सभी श्रद्धालु माता के इस भोग को ग्रहण करते हैं।
चंडी पाठ
महासप्तमी से महानवमी तक रोज सुबह चंडी पाठ किया जाता है।
कुश्ती के लिए चर्चित था बंगाली अखाड़ा
बंगाली अखाड़ा का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है। 1893 से पहले यह जगह कुश्ती के लिए चर्चित था। यहां पर स्वतंत्रता सेनानियों का जुटान होता था। अंग्रेजों को भगाने के लिए रणनीतियां बनायी जाती थीं। एक बार इसकी खबर अंग्रेजों को लग गई व छापेमारी हुई। इसके बाद आजादी के मतवालों ने यहां मंदिर की स्थापना की ताकि वे अंग्रेजों के खिलाफ आसानी से योजना बना सकें। वर्ष 1893 से यहां दुर्गापूजा होने लगी।