देखी सुनी

दुनियां में वाक़ई बहुत दुख है, मैं बहुत सुखी और भाग्यशाली हूं

कहानी पडऩे के बाद अब आपको भी ऐसा लगता है कि आप डिप्रेशन में हैं, तो तीसरी का रजिस्टर स्कूल जाकर ले आएं और उपने मित्रों के बारे में जानें

मेरे एक परम मित्र हैं, अब 55 के हैं। 5 साल पहले जब 50 के थे, भाभी का फ़ोन आया की ये भयंकर डिप्रेशन में हैं, कुंडली देखो इनकी, देख ली। मन का हाल बता दिया कि मैं ठीक नहीं हूं। फिर मैं और वो गये गुरु के पास, दोस्त ने गुरु से कहा, कुछ मन नहीं करता, दुनियां तोप समझती है, पर मेरे पास कारतूस जितना सामान नहीं, मैं डिप्रेशन में हूं।

गुरु ने कहा-तीसरी में किस स्कूल में पढ़ता था, उसने स्कूल का नाम बता दिया। गुरु ने कहा जा स्कूल, वहां तेरी क्लास का तीसरी का रजिस्टर लेकर आ, जो 40 नाम उस रजिस्टर में लिखे हैं। पांच दिन में मुझे आकर सबका हाल बताना। दोस्त गया, रजिस्टर लाया और तीन दिन घूमा। आश्चर्य उसमें से 20 प्रतिशत लोग मर चुके थे। 20 प्रतिशत लड़कियां विधवा या तलाकशुदा थीं। 15 प्रतिशत नशेड़ी निकले, जो बात करने लायक़ नहीं थे। 20 प्रतिशत का पता ही नहीं चला की अब वो कहां हैं।

पांच प्रतिशत इतने गऱीब निकले की पूंछो मत, पांच प्रतिशत इतने अमीर निकले की पूंछे नहीं। 7-8 प्रतिशत लकवा या कैंसर या दिल के रोगी निकले। 3-4 प्रतिशत का एक्सीडेंट में हाथ-पांव या रीढ़ की हड्डी में चोट से बिस्तर पर थे। 2 से 3 प्रतिशत के बच्चे पागल, एक जेल में था, एक अब सैटल हुआ था, इसलिए अब शादी करना चाहता था। एक अभी भी सैटल नहीं था पर दो तलाक़ के बावजूद तीसरी शादी की फिराक़ में था।

तीसरे दिन “तीसरी का रजिस्टर” भाग्य की व्यथा ख़ुद गा रहा था। अब दोस्त को समझ आ गई की मुझे कोई बीमारी नहीं, मैं भूंखा नहीं मर रहा, मेरा दिमाग एकदम सही है, मेरे बीवी, बच्चे बहुत अच्छे हैं। दुनियां में वाक़ई बहुत दुख: है, मंै बहुत सुखी और भाग्यशाली हूं, दो बात तय हुई आज कि धीरूभाई अम्बानी मैं बनूं नहीं और भूखा मैं मरू नहीं। अब आपको भी ऐसा लगता है कि आप डिप्रेशन में हैं।
आप को भी ऐसा लगता है, तो तीसरी का रजिस्टर स्कूल जाकर ले आएं।

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