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टेलिकॉम कंपनियों पर संकट, वोडाफोन-आइडिया-एयरटेल के पास अब ये है आखिरी रास्ता

नई दिल्ली

एजीआर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टेलिकॉम कंपनियों को कोई भी राहत देने से इनकार किया है. अदालत ने इन कंपनियों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाया है. 16 जनवरी को जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ ने दूरसंचार कंपनियों को सरकार को एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) चुकाने के आदेश दिए थे.

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सरकार को 1.47 लाख करोड़ रुपये का बकाया नहीं देने को लेकर दूरसंचार कंपनियों को फटकार लगाई है और इन सभी कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों को तलब कर यह बताने के लिए कहा है कि बकाये को चुकाने को लेकर शीर्ष अदालत के आदेश का पालन क्यों नहीं किया गया है. अदालत ने इन कंपनियों को फटकार लगाते हुए 14 फरवरी की खत्म होने तक 1.47 लाख करोड़ रुपये जमा करने को कहा था.

मोबाइल कंपनियों के सामने क्या है रास्ता

सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश के बाद अब मोबाइल कंपनियों को इस बकाये का भुगतान करना ही पड़ेगा. एयरटेल ने हाल ही में ओवरसीज बॉन्ड और QIP (qualified institutional placement) से लगभग 3 अरब डॉलर जुटाए हैं. इसके जरिए एयरटेल अपने बकाये का भुगतान कर सकता है. लेकिन वोडाफोन आइडिया को लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है. 31 दिसंबर को वोडाफोन आइडिया के पास 12530 करोड़ रुपये नगदी मुद्रा थी. जबकि कंपनी की कुल देनदारी 1.03 लाख करोड़ थी. बता दें दिसंबर में आदित्य बिरला ग्रुप के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला ने कहा था कि अगर सरकार की ओर से कोई राहत नहीं दी गई तो उन्हें अपनी दुकान बंद करनी पड़ेगी.

बता दें कि वोडाफोन और आइडिया लगातार तीन साल से अपने बैलेंसशीट में घाटा दिखा रहे हैं. पिछले साल की सितंबर तिमाही में कंपनी ने 50,922 करोड़ का घाटा दर्ज किया. ये भारत के कॉरपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा घाटा था.

एयरटेल की हालत भी हालांकि खराब ही है लेकिन आइडिया वोडाफोन की तुलना में उसकी सेहत थोड़ी ठीक है. दिसंबर में एयरटेल का कैश और बैंक बैलेंस 10206 करोड़ रुपये था, जबकि इसकी कुल देनदारी 1.15 लाख करोड़ रुपये थी. एयरटेल का AGR का बोझ इसकी क्षमता के अंदर ही है. एक टेलिकॉम एक्सपर्ट का कहना है कि वोडाफोन को फिलहाल उसके पास जो भी नगदी है उसे जमा करना चाहिए, ताकि वो कोर्ट की दंडात्मक कार्रवाई से बच सके.

क्या होता है AGR

एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू संचार मंत्रालय के दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से लिया जाने वाला यूजेज और लाइसेंसिग फीस है. इसके दो हिस्से होते हैं- स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज और लाइसेंसिंग फीस, जो क्रमश 3-5 फीसदी और 8 फीसदी होता है.

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने दूरसंचार कंपनियों को चेतावनी देते हुए कहा कि अदालत उनके और सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ आदेश नहीं मानने के लिए अवमानना की कार्रवाई शुरू कर सकती है. क्योंकि अक्टूबर में कोर्ट के आदेश के बावजूद इन कंपनियों ने एक पैसा भी जमा नहीं करवाया है.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वो टेलिकॉम विभाग के डेस्क अधिकारी के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू कर सकती है. अदालत ने भारती एयरटेल, वोडाफोन आइडिया, एमटीएनएल, बीएसएनएल, रिलायंस कम्युनिकेशंस, टाटा टेलिकॉम के टॉप मैनेजमेंट को मामले की अगली सुनवाई यानी17 मार्च को बुलाया है.

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि इन कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश का पूरी तरह से उल्लंघन किया है. रिव्यू पिटीशन खारिज होने के बावजूद भी इन कंपनियों ने रकम जमा नहीं कराई. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "ऐसा लगता है कि जिस तरह से चीजें हो रही है, कोर्ट की ओर से जारी किए गए निर्देशों को लेकर उनके मन में तनिक भी आदर भाव नहीं है."

कोर्ट के आदेश के बाद एयरटेल ने कहा कि वो अपने खाते का आकलन कर रहा है और 20 फरवरी तक 10000 करोड़ रुपये जमा कर देगा. एयरटेल पर कुल बकाया 35600 करोड़ रुपये है.

टेलिकॉम कंपनियों के लिए परीक्षा की घड़ी

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला टेलिकॉम कंपनियों के लिए एक झटके की तरह आया है. टेलिकॉम कंपनियों को ये उम्मीद थी कि अदालत रकम के भुगतान के लिए कुछ उदार शर्तें रखेगा. बता दें कि टेलिकॉम कंपनियों को ये पैसा दूरसंचार विभाग को जमा करना है.

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