रायपुर
झीरम घाटी प्रकरण की जांच कर रही जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग के समक्ष गुरूवार को कांग्रेस के संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेष नितिन त्रिवेदी उपस्थित हुए। उन्होंने आयोग के समक्ष अपना बयान दर्ज कराया और इस सिलसिले में शपथ पत्र भी दिए हैं।
श्री त्रिवेदी के बयान में झीरम घाटी नक्सल हमले की घटना की जांच में 8 नए बिंदु प्रकाश में आए हैं। झीरम घाटी नक्सल हमले में सात साल पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा, विद्याचरण शुक्ल व उदय मुदलियार समेत 30 नेताओं-कार्यकतार्ओं और सुरक्षाकर्मियों की मृत्यु हो गई थी। त्रिवेदी ने अपने बयान में कहा कि एक नवम्बर 2012 में महेन्द्र कर्मा पर हुए हमले के बाद उनकी सुरक्षा की समीक्षा प्रोटेक्शन रिव्यू ग्रुप के द्वारा की गई थी? स्व. महेन्द्र कर्मा को नवम्बर-2012 में उन पर हमले के बाद, उनके द्वारा मांगी गई अतिरिक्त सुरक्षा की मांग पर किस स्तर पर विचार का निर्णय लिया गया था और उस पर क्या कार्रवाई की गई थी?
उन्होंने कहा कि गरियाबंद में जुलाई-2011 में नंदकुमार पटेल के काफिले में हमले के बाद स्व. पटेल और उनके काफिले की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त सुरक्षा उपलब्ध कराई गई थी। क्या उन अतिरिक्त सुरक्षा मानको का पालन झीरम घाटी घटना के दौरान किया गया? क्या पूर्व के बड़ों हमलों की समीक्षा कर कोई कदम उठाए गए? नक्सल विरोधी आॅपरेशन में विशेषकर टीसीओसी की अवधि के दौरान यूनिफाइड किस तरह अपनी भूमिका निभाती थी? यूनिफाइड कमांड के अध्यक्ष के कर्तव्य क्या थे? और यूनिफाइड कमांड के तत्कालीन अध्यक्ष ने अपने उन कर्तव्यों का उपयुक्त निर्वहन किया?
त्रिवेदी ने कहा कि 25 मई-2013 को बस्तर जिले में कुल कितना पुलिस बल मौजूद था? परिवर्तन यात्रा कार्यक्रम की अवधि में बस्तर जिले से पुलिस बल दूसरे जिलों में भेजा गया? यदि हां तो किस कारण से और किसके आदेश से? क्या इसके लिए सक्षम स्वीकृति प्राप्त की गई थी? क्या नक्सली किसी बड़े आदमी को बंधक बनाने के बाद उन्हें रिहा करने के बदले अपनी मांग मनवाने का प्रयास करते रहे? स्व. नंदकुमार पटेल और उनके पुत्र के बंधक होने के समय ऐसा नहीं करने का क्या कारण था? सुकमा के तत्कालीन कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन के अपहरण और रिहाई में किस तरह के समझौते नक्सलियों के साथ किए गए थे? क्या इसका उनके साथ कोई संबंध स्व. महेन्द्र कर्मा की सुरक्षा से था?