आइये हम भी तब तक इस घंटी रूपी घर में परिवार के साथ, संयम के साथ, अन्न- जल ग्रहण करते हुए, प्रभु के प्रति आस्था रखते हुए, विश्राम करें जब तक ये हमारे लिए उठाई न जाए
भोपाल. कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र को विशाल सेनाओं के आवागमन की सुविधा के लिए तैयार किया जा रहा था। उन्होंने हाथियों का इस्तेमाल पेड़ों को उखाडऩे और जमीन साफ करने के लिए किया। ऐसे ही एक पेड़ पर एक गौरैया अपने चार बच्चों के साथ रहती थी। जब उस पेड़ को उखाड़ा जा रहा था तो उसका घोंसला नीचे जमीन पर गिर गया, लेकिन चमत्कारी रूप से उसकी संतानें अनहोनी से बच गईं।
बच्चे अभी बहुत छोटे होने के कारण उडऩे में असमर्थ थे। इस पर कमजोर और भयभीत गौरैया मदद के लिए इधर-उधर देखती रही, तभी उसने कृष्ण को अर्जुन के साथ वहां आते देखा। वे युद्ध के मैदान की जांच करने और युद्ध की शुरुआत से पहले जीतने की रणनीति तैयार करने के लिए वहां गए थे।
आपके हाथों में सौंपती हूं अपने बच्चों के भाग्य
गौरैया ने कृष्ण के रथ तक पहुंचने के लिए अपने छोटे पंख फडफड़़ाए और किसी प्रकार श्री कृष्ण के पास पहुंची। गौरैया ने श्रीकृष्ण से कहा हे कृष्ण कृपया मेरे बच्चों को बचाएं, क्योंकि लड़ाई शुरू होने पर कल उन्हें कुचल दिया जाएगा। इस पर भगवान श्रीकृष्ण बोले मैं तुम्हारी बात सुन रहा हूं, लेकिन मैं प्रकृति के कानून में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। इस पर गौरैया ने कहा हे भगवान मैं जानती हूं कि आप मेरे उद्धारकर्ता हैं, मैं अपने बच्चों के भाग्य को आपके हाथों में सौंपती हूं। अब यह आपके ऊपर है कि आप उन्हें मारते हैं या बचाते हैं।
काल चक्र पर किसी का बस नहीं है
भगवान श्री कृष्ण ने एक साधारण व्यक्ति की तरह उससे बात की जिसका आशय था कि वहा ऐसा कुछ भी नहीं था, जिसके बारे में वो कुछ भी कर सकते थे। गौरैया ने विश्वास और श्रद्धा के साथ कहा प्रभु, आप कैसे और क्या करते हंै वो मैं नहीं जान सकती,। आप स्वयं काल के नियंता हैं, यह मुझे पता है। मैं सारी स्थिति, परिस्थति और खुद को परिवार सहित आपको समर्पण करती हूं। इस पर श्री कृष्ण बोले अपने घोंसले में तीन सप्ताह के लिए भोजन का संग्रह करो।
गौरैया और श्री कृष्ण के संवाद से अनभिज्ञ, अर्जुन गौरैया को दूर भगाने की कोशिश करते है। गौरैया ने अपने पंखों को कुछ मिनटों के लिए फुलाया और फिर अपने घोंसले में वापस चली गई। दो दिन बाद, शंख के उद्घोष से युद्ध शुरू होने की घोषणा की गई। इस पर कृष्ण ने अर्जुन से कहा की, अपने धनुष और बाण मुझे दो। अर्जुन चौंका, क्योंकि कृष्ण ने युद्ध में कोई भी शस्त्र नहीं उठाने की शपथ ली थी। इसके अतिरिक्त, अर्जुन का मानना था कि, वही सबसे अच्छा धनुर्धर है।
भगवान की माया से अनजान हंस पड़ा अर्जुन
अर्जुन ने श्री कृष्ण से कहा मुझे आज्ञा दें, केशव। अर्जुन ने दृढ़ विश्वास के साथ श्री कृष्ण से कहा, मेरे तीरों के लिए कृछ भी अभेद्य नहीं है। इसके बाद चुपचाप अर्जुन से धनुष लेकर कृष्ण ने एक हाथी को निशाना बनाया। लेकिन, हाथी को मार के नीचे गिराने के बजाय, तीर हाथी के गले की बड़ी घंटी में जा टकराया और एक चिंगारी सी उड़ गई और हाथी के गले की घंटी टूट कर निचे गिर गई। अर्जुन ये देखकर अपनी हंसी नहीं रोक पाया कि भगवान श्री कृष्ण एक आसान सा निशाना चूक गए।
कृष्ण ने युद्ध के लिए अर्जुन को शंख फूंकने को कहा
क्या मैं प्रयास करू, अर्जुन ने स्वयं को प्रस्तुत किया। उसकी प्रतिक्रिया को नजर अंदाज करते हुए, कृष्ण ने उन्हें धनुष वापस दिया और कहा कि कोई और कार्रवाई आवश्यक नहीं है। इस पर अर्जुने श्री कृष्ण से पूछा कि हे केशव तुमने हाथी को क्यों तीर मारा। इस पर श्रीकृष्ण ने कहा कि इस हाथी ने उस गौरैया के आश्रय उसके घोंसले को जो कि एक पेड़ पर था उसको गिरा दिया था।
इस पर अर्जुन ने पूछा कौन सी गौरैया। इस पर अर्जुन ने कहा हाथी तो अभी स्वस्थ और जीवित है, केवल उसके गले की घंटी ही टूट कर निचे गिरी है। अर्जुन के सवालों को खारिज करते हुए, कृष्ण ने उसे शंख फूंकने को कहा।
युद्ध शुरू हुआ, अगले अठारह दिनों में कई जानें चली गईं। अंत में पांडवों की जीत हुई। एक बार फिर, कृष्ण अर्जुन को अपने साथ सुदूर क्षेत्र में भ्रमण करने के लिए ले गए। कई शव अभी भी वहां हैं, जो उनके अंतिम-संस्कार का इंतजार कर रहे हैं। युद्ध का मैदान गंभीर अंगों और सिर, बेजान सैनिकों और हाथियों से अटा पड़ा था। इस दौरान भगवान श्री कृष्ण एक निश्चित स्थान पर रुके और एक घंटी जो कि हाथी के गले में बांधी जाती थी उसे देख कर विचार करने लगे।
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा, क्या आप मेरे लिए यह घंटी उठाकर उसे एक तरफ रख दोगे। निर्देश बिलकुल सरल था, परन्तु अर्जुन के समझ में नहीं आया। आखिरकार, विशाल मैदान में जहां बहुत सी अन्य चीज़ों को साफ़ करने की ज़रूरत थी, कृष्ण उस धातु के एक टुकड़े को रास्ते से हटाने के लिए क्यों कहेंगे। इस पर अर्जुन ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उनकी ओर देखा। इस पर कृष्ण ने कहा हां, यह घंटी। कृष्ण ने दोहराया, यह वही घंटी है, जो हाथी की गर्दन से टूट पड़ी थी जिस पर मैंने तीर मारा था।
वहां का दृष्य देख कर अचंभित रह गया अर्जुन
अर्जुन बिना किसी और सवाल के भारी घंटी उठाने के लिए नीचे झुका। जैसे ही उन्होंने इसे उठाया, उसकी हमेशा के लिए जैसे दुनिया बदल गई। उस घंटी के नीचे से एक, दो, तीन, चार और पांच। चार युवा पक्षियों और उसके बाद एक गौरैया उस घंटी के नीचे से निकले। बाहर निकल के मां और छोटे पक्षी कृष्ण के इर्द-गिर्द मंडराने लगे और आनंद पूर्वक उनकी परिक्रमा करने लगे। अठारह दिन चले घनघोर युद्ध के पहले काटी गई एक घंटी ने पूरे परिवार की रक्षा की थी।