नई दिल्ली
हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए सबक है। चुनाव नतीजों से साफ है कि मौजूदा राजनीतिक हालात में 'स्टेट्स को' नहीं चल सकता है। पार्टी को चुनाव मैदान में बेहतर प्रदर्शन करना है, तो निर्णय भी जल्द करने होंगे। क्योंकि संगठन से जुड़े फैसलों में देरी से पार्टी के प्रदर्शन पर असर पड़ता है। हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजे इसका उदाहरण हैं।
हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और वरिष्ठ नेता अशोक तंवर का झगड़ा काफी पुराना है। हुड्डा पिछले डेढ़ साल से पार्टी पर अशोक तंवर को हटाने का दबाव बना रहे थे, पर पार्टी टालमटोल करती रही। कांग्रेस ने चुनाव ऐलान से ठीक पहले प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन का निर्णय किया। इस सबके बावजूद हुड्डा खुद को साबित करने में सफल रहे और पार्टी को लड़ाई में लाकर खड़ा कर दिया।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हुड्डा को एक साल पहले प्रदेश की कमान सौंप दी होती, तो आज तस्वीर दूसरी होती। उन्होंने कहा कि यह स्थिति सिर्फ हरियाणा में नहीं थी, झारखंड में भी कुछ ऐसे ही हालात थे। पार्टी ने वहां भी कुछ माह पहले ही अपना प्रदेश अध्यक्ष बदला है। यदि इन प्रदेशों में लंबे वक्त तक यथास्थिति बनाए रखने के बजाए फौरन निर्णय करने चाहिए थे।
पुराने क्षत्रपों को लेकर चलना होगा
पार्टी के लिए यह भी एक सबक है कि मौजूदा राजनीतिक हालात में पुराने क्षत्रपों को साथ लेकर चलना होगा। पार्टी सिर्फ नए लोगों के दम पर जीत की दहलीज तक नहीं पहुंच सकती। लगातार मतदाताओं के साथ अपना संपर्क बनाए रखना होगा। हरियाणा में इतने कम वक्त में भूपेंद्र हुड्डा इसलिए अच्छा प्रदर्शन करने में सफल रहे, क्योंकि, वह लोगों से जुड़े हुए थे।
जनाधार वाले नेता नहीं
कांग्रेस की मुश्किल यह है कि उसके पास प्रदेशों में जनाधार वाले नेता नहीं है। कुछ प्रदेशो में है, तो वह संगठन में बहुत पीछे हैं। ऐसे में पार्टी को जनाधार वाले नेताओं को अहमियत देनी होगी। पार्टी को ऐसे नेताओं को जमीनी स्तर पर तैनात करना होगा, जो हर वक्त लोगों के बीच रहे। उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करे। तभी पार्टी संगठन खड़ा कर पाएगी और चुनाव में फायठा उठा पाएगी।