श्रीनगर
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमला करने वाले आदिल डार के रिश्ते के भाई समीर डार के एक खुलासे ने सुरक्षा बलों की टेंशन बढ़ा दी है। समीर डार ने खुलासा किया है कि जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों के पास सामान्य स्टील से बने ऐसे कारतूस मौजूद हैं जिनसे बख्तरबंद गाड़ियों को भी आसानी से भेदा जा सकता है। खास बात यह है कि दुनियाभर में बैन इन कारतूसों को हमारा चिर प्रतिद्वंद्वी देश चीन बनाता है और वहीं से इसे आतंकियों को सप्लाइ होती है। उधर, इस खुलासे के बाद कश्मीर में अब तक आतंकियों की गोलीबारी से बचने के लिए बख्तरबंद गाड़ियों और बंकरों का इस्तेमाल करने वाले सुरक्षा बलों की चिंता बढ़ गई है।
समीर डार ने दिसंबर 2019 में भी जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों को कश्मीर घाटी में पहुंचाया था। समीर ने बताया कि आतंकवादियों के पास सामान्य बख्तरबंद गाड़ियों को भेदने में सक्षम स्टील के कारतूस सहित भारी मात्रा में गोला-बारूद थे। समीर पुलवामा जिले के काकपोरा इलाके का रहने वाला है। उसे पुलिस ने शुक्रवार को तब पकड़ा था, जब वह जैश आतंकियों द्वारा सुरक्षाबलों पर गोलीबारी के बाद नगरोटा से भाग रहा था।
क्या है स्टील बुलेट और क्यों है अजेय
पिछले साल जून महीने में जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में सुरक्षा बलों पर आतंकवादियों ने फिदायिन हमला किया। इस हमले में सीआरपीएफ के 5 जवान शहीद हो गए। सूत्रों के मुताबिक इन जवानों ने बुलेटप्रूफ जैकेट पहन रखा था, इसके बाद भी ये गोलियां जवानों को छलनी करती हुई निकल गईं। सुरक्षाबलों की जांच में खुलासा हुआ कि आतंकवादियों ने स्टील से बनी बुलेट का इस्तेमाल किया जिसके सामने सुरक्षाबलों के बुलेटप्रूफ जैकेट बेदम साबित हुए।
स्टील से बने कारतूस
सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों को ये बुलेट मुहैया करा रही है। इन स्टील बुलेट को चीन बनाता है और वहीं से इसकी सप्लाइ आईएसआई को होती है। ये स्टील बुलेट इतनी खतरनाक होती हैं कि किसी भी बख्तरबंद वाहन और बंकर को भी भेद सकती हैं। अब जैश-ए-मोहम्मद इन स्टील बुलेट का इस्तेमाल सुरक्षा बलों पर हमले के लिए कर रहा है। जैश के आतंकियों ने 27 दिसंबर 2017 को पहली बार स्टील की बुलेट का इस्तेमाल किया था।
इस्तेमाल में बेहद आसान हैं स्टील के कारतूस
स्टील बुलेट इस्तेमाल में बेहद आसान होती हैं। इसे सामान्य एके-47 असॉल्ट राइफल से दागा जा सकता है। एक बार में मैगजीन में दो से तीन गोलियों को रखा जा सकता है। सुरक्षा बलों का मानना है कि जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी नूर मोहम्मद तांत्रे उर्फ पीर बाबा ने पहली बार आतंकवादियों को यह कारतूस दिया था। जांच में पता चला है कि ये बुलेट हार्ड स्टील या टंगस्टन से बनाया जाता है। इसे कवच को भेदने वाली बुलेट कहा जाता है। आमतौर पर एके-47 की बुलेट में आगे के हिस्से में हल्के स्टील का इस्तेमाल किया जाता है जो बुलेट प्रूफ शील्ड को भेद नहीं पाता है लेकिन स्टील बुलेट इसे भेदने में सक्षम है।
सुरक्षा बलों की बढ़ी टेंशन, वीआईपी सुरक्षा में खतरा
आतंकियों के पास से स्टील बुलेट आने से सुरक्षा बलों की टेंशन काफी बढ़ गई है। वीआईपी सुरक्षा का जिम्मा संभाल रही एजेंसियों को स्टील बुलेट को देखते हुए अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना पड़ रहा है। खासकर तब जब ये गोलियां बुलेट प्रूफ वाहनों को भी भेदने में सक्षम हैं। इन गोलियों पर पूरी दुनिया में प्रतिबंध है लेकिन चीन इसे धड़ल्ले से बना रहा है और अब ये गोलियां कश्मीर में आतंकवादी कर रहे हैं।
कश्मीर में स्टील बुलेट के आने पर एक सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि स्टील की गोलियों के इस्तेमाल का खुलासा होने के बाद हमने सतर्कता बढ़ा दी है। इस तरह की गोलियों को चीन की तकनीक की मदद से हार्डकोर स्टील से बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कश्मीर में जिन बुलेट प्रूफ जैकेटों का इस्तेमाल सुरक्षा बल करते हैं, वे स्टील बुलेट का सामना करने में अक्षम हैं।