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चेतावनी: नौनिहाल बुढ़ापे में चार डिग्री ज्यादा गर्मी झेलेंगे

नई दिल्ली                                                                              
जलवायु परिवर्तन के खतरों की चपेट में सबसे ज्यादा बच्चे आ रहे हैं। एक रिपोर्ट की मानें तो अभी जन्म लेने वाले बच्चों को बुढ़ापे में  औसतन चार डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म वातावरण में रहना पड़ सकता है। लांसेट काउंटडाउन ने 'जलवायु परिवर्तन का स्वास्थ्य पर प्रभाव' रिपोर्ट में चेताया है कि बचपन में हुए नुकसान का असर लोगों में ताउम्र रहता है। रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए प्रयासों की गति धीमी है लेकिन खतरा ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। 

तापमान बढ़ोतरी रोकने की कोशिश

पेरिस समझौते में तापमान बढ़ोतरी दो डिग्री से नीचे और करीब डेढ़ डिग्री तक सीमित रखने की कोशिश हो रही है। यदि कोशिश सफल रही तो आज पैदा होने वाला बच्चा अपने 11वें जन्मदिन पर ब्रिटेन और कनाडा में कोयले का इस्तेमाल बंद होते हुए देखेगा। उसके 21वें जन्मदिन तक फ्रांस में पेट्रोल-डीजल की बिक्री बंद हो जाएगी। वह जब 31 साल की आयु पार कर रहा होगा तो दुनिया शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल कर रही होगी। यानी जितना कार्बन उत्सर्जन हो रहा है, उतने को धरती में सोखने की क्षमता होगी। 

बड़ा खतरा

रिपोर्ट में चेताया गया है कि यदि पेरिस समझौते के अनुरूप दुनिया आगे नहीं बढ़ पाती है तो आज जन्म लेने वाले बच्चे को अपने 71वें जन्म दिन पर औद्यौगिक युग से पूर्व की तुलना में औसतन चार डिग्री तापमान वृद्धि देखनी पड़ सकती है। इसे इस प्रकार अनुभव कर सकते हैं कि अभी यह बढ़ोतरी एक डिग्री हुई है, तब ये हाल है। जब चार डिग्री की बढ़ोतरी होगी तब क्या होगा? इस रिपोर्ट को दुनिया के 35 संस्थानों के 120 विशेषज्ञों ने जलवायु एवं स्वास्थ्य से जुड़े 41 संकेतकों के आधार पर तैयार किया है। 

बच्चों पर कैसे असर

-देश में मक्का एवं चावल की उपज 1960 की तुलना में दो फीसदी घटी। खाद्य कीमतें बढ़ने से बच्चों में कुपोषण बढ़ा। पांच साल से कम उम्र के बच्चों की दो तिहाई मौतें कुपोषण की वजह से 

-वीबरियो बैक्टीरिया दोगुनी क्षमता से पनप रहे। इसी वैक्टीरिया की वजह से 1980 के बाद से हैजा प्रतिवर्ष तीन फीसदी की दर से बढ़ रहा। इस संक्रमण से बच्चे सर्वाधिक प्रभावित

-जलवायु परिवर्तन के कारण, डेंगू दुनिया में सबसे तेजी से फैलने वाला मच्छर जनित वायरल रोग हो गया। दुनिया की लगभग आधी आबादी अब जोखिम में 

-किशोरावस्था में वायु प्रदूषण सर्वाधिक घातक। 2016-18 के बीच कोयले से बिजली उत्पादन में 11% की बढ़ोतरी हुई जो पीएम 2.5 की बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार। इससे बीमारियां एवं मौतें बढ़ी हैं

-भारत में भीषण गर्मी से 2000 से अब तक 22 अरब कार्यघंटों का नुकसान हुआ। यह साबित करता है कि उत्पादकता प्रभावित हो रही है। इसका असर भी बच्चों समेत परिवार के हर सदस्य पर पड़ता है। 

बच्चे विशेष रूप से बदलते जलवायु के स्वास्थ्य जोखिमों के प्रति संवेदनशील होते हैं। उनका शरीर और प्रतिरक्षा तंत्र विकसित हो रहे होते हैं, ऐसी अवस्था में वे बीमारी और पर्यावरण प्रदूषकों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। बचपन में हुआ नुकसान लगातार और व्यापक होता है जिसके स्वास्थ्य परिणाम जीवन भर के लिए होते हैं। 
डॉ. निक वाट्स, द लांसेट काउंटडाउन के कार्यकारी निदेशक

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