श्रीनगर
जम्मू-कश्मीर में कई युवा आतंकियों और कट्टरपंथियों के चक्कर में पड़कर आतंक का रास्ता अपना लेते हैं। आतंक के आका इन युवाओं को बरगला कर गलत रास्ते पर ले जाते हैं। ऐसे युवाओं को फिर से मुख्यधारा में लाने के लिए भारतीय सेना 'ऑपरेशन मां' चला रही है। इसके तहत आतंकवादी बन चुके युवाओं को समझाने-बुझाने के लिए उनकी मां या परिवार के सदस्यों को मौका दिया जाता है। 'ऑपरेशन मां' शुरू करने वाले लेफ्टिनेंट जनरल कंवर जीत सिंह (केजेएस) ढिल्लों बताते हैं कि इससे काफी युवकों को वापस लाया गया है और अभियान बहुत ज्यादा सफलता बटोर चुका है।
लेफ्टिनेंट जनरल केजेएस ढिल्लों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से निपटने के लिए चलाए गए 'ऑपरेशन मां' का प्रभाव उल्लेखनीय रहा है और इसके जरिए आतंकवादी समूहों के सरगनाओं से जन-हितैषी तरीके से निपटा जा रहा है। आर्मी की 15वीं कोर के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल ढिल्लों ने ही 'ऑपरेशन मां' की शुरुआत की थी। इसमें मुठभेड़ के दौरान जब स्थानीय आतंकवादी पूरी तरह घिर जाते हैं तो उनकी मां या परिवार के अन्य बड़े सदस्यों या समुदाय के प्रभावी लोगों को उनसे बात करने का अवसर दिया जाता है। इस दौरान वे युवकों को आतंकवाद का रास्ता छोड़कर सामान्य जीवन में लौटने के लिए समझाते हैं।
'मां की अपील से कई बार मिली सफलता'
लेफ्टिनेंट जनरल ढिल्लों का मानना है, 'कुछ भी तब तक नहीं खो जाता है, जब तक आपकी मां उसे खोज नहीं सकती।' उन्होंने इस अभियान के नतीजों को उल्लेखनीय बताया है। लेफ्टिनेंट जनरल ढिल्लों ने कहा, ‘सभी अभियानों के दौरान हम स्थानीय आतंकवादियों को वापसी का अवसर देते हैं। मुठभेड़ को आधे में रोक दिया जाता है और उसके माता-पिता या समुदाय के बुजुर्गों को घिरे हुए स्थानीय आतंकवादियों से लौट आने की अपील करने को कहा जाता है। यह है ऑपरेशन मां और हमें कई बार सफलता मिली है।'