मध्य प्रदेश

गाँधी जी की छिन्दवाड़ा यात्रा का स्मृति दिवस- आज

छिंदवाड़ा
'मुझे यह बताते हुए गर्व है कि मेरे दादाजी महात्मा गाँधी से मिले थे और उस समय के राजनैतिक परिदृश्य पर उनसे बातचीत की थी। यह कहते हुए नितिन त्रिवेदी गर्व से भर उठते हैं। नितिन छिंदवाड़ा जिले के पोला ग्राउंड इलाके में प्रिंटिंग प्रेस चलाते हैं। उनके पिता देवेंद्र गोविंदराम त्रिवेदी ने इसकी शुरुआत की थी।

नितिन त्रिवेदी ने अपने पिता से बहुत सुना कि कैसे उनके दादा गोविंदराम त्रिवेदी महात्मा गाँधी के आह्वान पर कांग्रेस में शामिल हुए। उनके दादा नामी वकील थे। नितिन ने अपने पिता से सुनी हुई उन बातों को साझा किया, जिनमें वे बताते थे कि किस तरह से गोविंदराम त्रिवेदी ने गाँधी जी से एक चाँदी की प्लेट 501 रुपये में खरीदी थी। गाँधी जी 1933 में दूसरी बार छिंदवाड़ा आये थे। वे स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थन में धन जुटा रहे थे। उन्होंने चांदी की प्लेट नीलाम कर दी। नीलामी की कीमत सबसे कम 11 रुपये आंकी गई थी, लेकिन गोविंद राम त्रिवेदी ने इस महान कार्य के लिए इस प्लेट को 501 रुपये में खरीदा।

गाँधी जी के कहने पर गोविंद राम त्रिवेदी कांग्रेस में शामिल हुए। नितिन त्रिवेदी अपने पुराने घर में लकड़ी का झूला दिखाते हैं, जिस पर गाँधी जी बैठे थे और उनके दादा से तत्कालीन मुद्दों पर चर्चा की थी। नितिन अपने दादा पर गर्व महसूस करते हैं और स्मृति की विरासत को संजो कर रखे हैं।

महात्मा गाँधी छह जनवरी 1921 को छिन्दवाड़ा आये थे। उनके साथ क्रांतिकारी अली बंधु थे। वे दिसम्बर 1920 को नागपुर अधिवेशन में शामिल हुए। कार से दोपहर करीब तीन बजे छिन्दवाड़ा पहुंचे थे। शाम को साढ़े सात बजे गाँधी जी ने चिटनवीसगंज में विशाल जनसभा में भाषण दिया था। उपलब्ध दस्तावेज़ के अनुसार इसमें दस हजार लोग मौजूद थे। आज गाँधी जी के छिंदवाड़ा भाषण की 99वीं वर्षगाँठ है।

कई अर्थों में यह भाषण स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। असहयोग आंदोलन के विचार को गाँधी जी ने जनता में पहली बार स्पष्ट शब्दों में समझाया था। साफ-साफ बात करना उनकी विशेषता थी। आम नागरिकों का क्या कर्तव्य है? छात्रों, वकीलों, सरकारी नौकरों को क्या करना है और उनसे क्या अपेक्षाएं हैं, यह समझाया था।

गाँधी जी ने कहा था -'पंजाब के अन्याय का निराकरण कराना चाहते हों तथा स्वराज की स्थापना करना चाहते हों तो हमारा कर्तव्य क्या है, यह बात हमें नागपुर अधिवेशन में बताई गई है। हम सरकारी उपाधियों से विभूषित लोगों से जो कुछ कहना चाहते थे, सो सब कह चुके हैं। उपाधियों को बरकरार रखने अथवा उनका त्याग करने की जिम्मेदारी कांग्रेस ने उन्हीं पर डाली है, इसी से इस बार के स्वीकृत प्रस्ताव में उनका उल्लेख तक नहीं किया गया है। अब देश का कोई बच्चा भी ऐसा न होगा, जिसे इन उपाधिधारी लोगों से किसी प्रकार का भय अथवा उनकी उपाधियों के प्रति मन में आदरभाव हो।'

गाँधी जी ने इसी भाषण में वकीलों से वकालत छोड़ने और देश सेवा में सारा समय देने को कहा था। उन्होंने कहा था की 'कांग्रेस ने वकीलों से वकालत का धंधा छोड़ने की दिशा में और अधिक प्रयत्न करने तथा देश की सेवा के लिये अपना सारा समय अर्पण कर देने का अनुरोध किया है। जिन वकीलों ने इतनी भी बचत नहीं की है कि गुजारा चल सके, उन वकीलों को कांग्रेस गुजर करने लायक पैसा अवश्य देगी। वकील अदालतों में अपनी शक्ति और समय का अपव्यय कर रहे हैं। देश के कार्यों के लिए उनकी बहुत ज्यादा जरूरत है।'

गाँधी जी ने विद्यार्थियों के संबंध में उनके माता-पिता के कर्तव्य का भी उल्लेख किया था। उन्होंने कहा था कि 'आपका फर्ज बालकों को स्कूलों से निकालने के साथ-साथ उन्हें अन्य कार्यों से निरत करना भी है। अगर उन्हें शिक्षा दी जा सकती हो, तो आपको उसका प्रबंध करना चाहिये और यदि फिलहाल शिक्षा न दी जा सके, तो आप उन्हें देश के अन्य कार्यों में लगायें। मैं नहीं मानता कि कोई भी बालक ऐसा होगा, जो पंजाब में हुये अत्याचारों और खिलाफत के प्रश्न पर किये गये अन्याय को सुनकर यह न कहे 'मैं इस राज्य को निर्मूल करना चाहता हूँ।' उन्होंने पंद्रह वर्ष से अधिक उम्र के विद्यार्थियों को सरकारी स्कूलों और कॉलेजों को तुरंत छोड़ देने की सलाह दी थी।

गाँधी जी ने अपने छिन्दवाड़ा भाषण में सैनिकों से कहा था ' राजभक्ति, देशभक्ति की अनुवर्तिनी है और जिस समय राजभक्ति आड़े आती है उस समय राजभक्ति को छोड़कर देशभक्ति को स्वीकार करना मनुष्य का धर्म हो जाता है। '

इन सब बातों के अलावा गाँधी जी ने स्वदेशी पर जोर देते हुए कहा था कि 'जब इस देश में लंकाशायर का कपड़ा आना बंद हो जाये, तब आप समझें कि अब भारत की स्वाधीनता की नींव रख दी गई है। हमारी-मुक्ति चरखे में है। हर घर में चरखे की प्रतिष्ठा करने की जरूरत है। यदि अभी देश का हरएक व्यक्ति स्त्री, पुरूष और बालक अपने-अपने खाली वक्त में थोड़ा सूत कातने का व्रत ले, तो हम देखते-देखते अपने देशवासियों के शरीर को ढंकने के लिये विदेशी कपड़े पर निर्भर न रहेंगे और प्रतिवर्ष साठ करोड़ रूपया भी बचा लेंगे।'

हिन्दू-मुस्लिम एकता पर इसी भाषण में गाँधी जी ने कहा था कि 'हमें भाई-भाई बनकर रहना है। शैतान हमेशा छिद्रों का लाभ उठाता है। इसलिये छिद्रों को भरना ही हमारा काम है।'

 

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