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कोरोना के खिलाफ छिड़ी जंग की अग्रणी पंक्ति की एक सिपाही मैं भी हूं, मैं, एक डॉक्टर हूं


युद्ध कोरोना के विरुद्ध: सेवा का सुख सर्वोपरि

भोपाल. देश भर में कोरोना के खिलाफ छिड़ी जंग की अग्रणी पंक्ति की एक सिपाही मैं भी हूं। मैं, एक डॉक्टर हूं। यह तथ्य भले ही आज की तारीख में मुझे एक अलग स्थान दिलाता है, पर मेरे जहन में यह स्थान, आज की पैदाइश नहीं है। भेल के कस्तूरबा अस्पताल की मेडिसिन विभाग की प्रमुख डॉ. आरती सिंह ने बताया कि मेंरे मन और तन दोनों इसके लिए उस दिन से तैयार हैं, जिस दिन से मैंने हिप्पोक्रेट ओथ ली थी।

आज मेरे जिस जज्बे के लिए तालियां बजाई जा रही हैं, वो जज्बा सालों से गालियां खा कर भी वैसा ही कायम रहा है। शायद हम डॉक्टरों की ट्रेनिंग ही ऐसी होती है। डॉक्टर आरती सिंह का कहना है कि देश पर आई विपदा की इस घड़ी में डॉक्टर होना और अपना फर्ज पूरा करना यह मेरे लिए कुछ भी नया नहीं है।

भेल क्षेत्र है कोरोना मुक्त
बता दें कि डॉक्टर आरती सिंह कस्तूरबा अस्पताल के मेडसिन विभाग की प्रमुख हैं। इन दिनों पूरी की पूरी जिम्मेदारी इसी विभाग के कंधों पर है। ऐसे में देश भर में आई इस विपदा की घड़ी में आरती सिंह अपनी जिम्मेदारी बाखूबी निभा रही हैं। इसी का परिणाम है कि कस्तूरबा में इलाज कराने आने वाले करीब 22 हजार कर्मचारी और उनके परिवार के साथ ही सीआईएसएफ के जवान और रिटायर्ड कर्मचारियों और उनके परिवार को मिलाकर करीब 30 हजार हैं।

ऐसे में करीब 55 हजार टोकन हैं, जो कस्तूरबा अस्पताल में इलाज के लिए आते हैं। बड़ी बात यह है कि राजधानी में लगातार बढ़ रही कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या के बाद भी भेल क्षेत्र और कस्तूरबा अस्पताल अब भी सुरक्षित है। यहां अब तक एक भी मरीज पॉजिटिव नहीं मिला है।

ड्यूटी के साथ संभाल रहीं घर की जिम्मेदारी
डॉक्टर आरती सिंह के पति आशुतोष सिंह भी डॉक्टर हैं। दो बेटे हैं, बड़ा बेटा मुम्बई में डॉक्टर है और छोटा इंजीनियरिंग कर रहा है। घर पर अभी पति, दो बेटों के अलावा 70 साल के ऊपर के तीन बुजुर्ग भी हैं। देश भर में फैली महामारी कोविड-19 के कारण घर पर कामवालियों का आना बंद है। ऐसे में आरती को ड्यूटी के साथ-साथ घर का काम और जिम्मेदारियां पूरी करनी होती हैं।

घर के काम में सभी करते हैं मदद
इनका कहना है कि घर के कामों में घर के सभी लोग हाथ बटाते हैं, जिससे वह बोझ नही लगता। डॉ. आरती ने बताया कि रोजमर्रा में बहुत से ऐसे बदलाव आए हैं, जो दिखने में छोटे, पर पहले के रूटीन से अलग हो गए हैं। अस्पताल जाने के पहले खुद को अच्छे से हाइडे्रट करती हूं, ताकि 6-7 घंटे मास्क और ग्लव्स न हटाने पड़े। अस्पताल से घर वापस आने पर बाहर ही अस्पताल के कपड़े धोना, नहाना आदि होता है। ऐसे में यह थकावट तब खुशियों में बदल जाती है, जब बेटा अपने हाथ से इन सबके बीच पानी पिलाता है।

खाना खाने बैठती हैं दूर
अस्पताल से आने के बाद खाना भी घर के अन्य सदस्यों से दूर बैठ कर खाती हूं, क्योकि बुजुर्गों को कमरे में खाना देना, उन्हें अपनों से अलग करने जैसा लगता है। घर के सदस्यों में पहली जैसी शारीरिक आत्मीयता तो अब आपस में सावधानी पूर्वक होती है, पर सोशल डिस्टेंसिंग के कठिन दौर में परस्पर मेंटल डिस्टेंसिंग जरूर कम हुई है। परिवार के सभी सदस्य नए सिरे से एक दूसरे से जुड़े हैं। डॉक्टर आरती का कहना है कि इन क्षणों को यादगार बनाते हुए उम्मीद है कि कठिन पल भी अच्छे से निकल जाएंगे।

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