न आये की खुशी न जाये का गम, कोरोना के समयकाल को भी परिवार के साथ समय बिताकर आनन्दित करें
भोपाल. एक बार एक अमीर आदमी कहीं जा रहा होता है, तो उसकी कार खराब हो जाती है। उसका कहीं पहुंचना बहुत जरूरी होता है। उसको दूर एक पेड़ के नीचे एक रिक्शा दिखाई देता है। वो उस रिक्शा वाले पास जाता है। वहां जाकर देखता है कि रिक्शा वाले ने अपने पैर हैंडल के ऊपर रखे होते हैं। पीठ उसकी अपनी सीट पर होती है और सिर जहां सवारी बैठती है, उस सीट पर होती है ।
और वो मजे से लेट कर गाना गुन-गुना रहा होता है। वो अमीर व्यक्ति रिक्शा वाले को ऐसे बैठे हुए देख कर बहुत हैरान होता है, कि एक व्यक्ति ऐसे बेआराम जगह में कैसे रह सकता है। कैसे खुश रह सकता है। कैसे गुन-गुना सकता है। वो उसको चलने के लिए बोलता है। रिक्शा वाला झट से उठता है और उसे 20 रुपए देने के लिए बोलता है।
रास्ते में वो रिक्शा वाला वही गाना गुन-गुनाते हुए मजे से रिक्शा खींचता है। वो अमीर व्यक्ति एक बार फिर हैरान होता है कि एक व्यक्ति 20 रुपए लेकर इतना खुश कैसे हो सकता है। इतने मजे से कैसे गुन-गुना सकता है। वो थोड़ा इर्षापूर्ण हो जाता है और रिक्शा वाले को समझने के लिए उसको अपने बंगले में रात को खाने के लिए बुला लेता है। रिक्शा वाला उसके बुलावे को स्वीकार कर लेता है।
अमीर आदमी अपने हर नौकर को बोल देता है कि इस रिक्शा वाले को सबसे अच्छे खाने की सुविधा दी जाए। अलग-अलग तरह के खाने की सेवा हो जाती है। सूप्स, आइसक्रीम, गुलाब जामुन सब्जियां यानि हर चीज वहां मौजूद थी।
रिक्शा वाला खाना शुरू कर देता है, लेकिन इस दौरान न तो कोई प्रतिक्रिया देता है और न ही कोई घबराहट बयान करता है। बस वही गाना गुन-गुनाते हुए मजे से वो खाना खाता है। वहां मौजूद सभी लोगों को ऐसे लगता है, जैसे रिक्शा वाला ऐसा खाना पहली बार नहीं खा रहा है। पहले भी कई बार खा चुका है। वो अमीर आदमी एक बार फिर हैरान, एक बार फिर इष्र्यापूर्ण कि कोई आम आदमी इतने ज्यादा तरह के व्यंजन देख के भी कोई हैरानी वाली प्रतिक्रिया क्यों नहीं देता और वैसे कैसे गुन-गुना रहा है, जैसे रिक्शे में गुन-गुना रहा था।
यह सब कुछ देखकर अमीर आदमी की इष्र्या और बढ़ती है। अब वह रिक्शे वाले को अपने बंगले में कुछ दिन रुकने के लिए बोलता है। रिक्शा वाला हां कर देता है। उसको बहुत ज्यादा इज्जत दी जाती है। कोई उसको जूते पहना रहा होता है, तो कोई कोट। एक बेल बजाने से तीन-तीन नौकर सामने आ जाते हंै। एक बड़ी साइज का टेलीविजन स्क्रीन पर उसको प्रोग्राम दिखाए जाते हैं और एयर-कंडीशन कमरे में सोने के लिए बोला जाता है।
अमीर आदमी नोट करता है कि वो रिक्शा वाला इतना कुछ देख कर भी कुछ प्रतिक्रिया नहीं दे रहा। वो वैसे ही साधारण चल रहा है, जैसे वो रिक्शा में था वैसे ही है। वैसे ही गाना गुन-गुना रहा है, जैसे वो रिक्शा में गुन-गुना रहा था। अमीर आदमी के इष्र्या बढ़ती चली जाती है और वह सोचता है कि अब तो हद ही हो गई। इसको तो कोई हैरानी नहीं हो रही, इसको कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा। ये वैसे ही खुश है, कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दे रहा है।
अब अमीर आदमी पूछता है, आप खुश हैं ना। इस पर वह रिक्शा वाला कहता है साहेब बिलकुल खुश हूं। अमीर आदमी फिर पूछता है, आप आराम में हैं ना। रिक्शा वाला कहता है, जी बिलकुल आरामदायक हूं। अब अमीर आदमी तय करता है कि इसको उसी रिक्शा पर वापस छोड़ दिया जाए। वहां जाकर ही इसको इन बेहतरीन चीजों का एहसास होगा। क्योंकि वहां जाकर ये इन सब बेहतरीन चीजों को याद करेगा।
अमीर आदमी अपने सेके्रटरी को बोलता है कि इसको कह दो कि आपने दिखावे के लिए कह दिया कि आप खुश हो, आप आरामदायक हो। लेकिन साहब समझ गये हैं कि आप खुश नहीं हो आराम में नहीं हो, इसलिए आपको उसी रिक्शा के पास छोड़ दिया जाएगा।
सेके्रटरी के ऐसा कहने पर रिक्शा वाला कहता है, ठीक है सर, जैसे आप चाहें, जब आप चाहें। उसे वापस उसी जगह पर छोड़ दिया जाता है, जहां पर उसका रिक्शा था। अब वो अमीर आदमी अपनी गाड़ी के काले शीशे ऊंचे करके उसे देखता है। रिक्शे वाले ने अपनी सीट उठाई बैग में से काला सा, गन्दा सा, मैला सा कपड़ा निकाला, रिक्शा को साफ किया और मजे में बैठ गया और वही गाना गुन-गुनाने लगा।
अमीर आदमी अपने सेके्रटरी से पूछता है, कि चक्कर क्या है। इसको कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा। इतनी आरामदायक वाली, इतनी बेहतरीन जिंदगी को ठुकरा के वापस इस कठिन जिंदगी में आना और फिर वैसे ही खुश होना, वैसे ही गुन-गुनाना।
फिर वो सेके्रटरी उस अमीर आदमी को कहता है, सर इसे कहते हैं समभाव का सफल जीवन अर्थात न आये की खुशी, न जाय का गम। सर यह एक सफल व्यक्ति की पहचान है। एक सफल व्यक्ति वर्तमान में जीता है, उसको मनोरंजन करता है और उत्तम जीवन की अपेक्षा में अपना वर्तमान खराब नहीं करता। अगर उससे भी बढिय़ा जिंदगी मिल गई तो उसे भी स्वागत करता है।
उसे भी आनन्द पूर्वक भोगता है और उस वर्तमान को भी खराब नहीं करता। और यदि जीवन में दोबारा कोई बुरा दिन देखना पड़ तो वो भी उस वर्तमान को उतने ही सम भाव से, खुशी से, उतने ही आनंद से, उतने ही मजे से भोगता है, मनोरंजन करता है और उसी में आनंद लेता है।
आइये इस कोरोना के समयकाल को भी परिवार के साथ समय बिताकर आनन्दित करें। कामयाबी आपके खुशी में छुपी है और अच्छे दिनों की अपेक्षा में अपने वर्तमान को खराब नहीं करें और न ही कम अच्छे दिनों में ज्यादा अच्छे दिनों को याद करके अपने वर्तमान को खराब करना है।