नई दिल्ली
निर्भया के दोषियों को जल्द-से-जल्द फांसी पर लटकाने की मांग वाली केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही है। केंद्रीय गृह मंत्री और दिल्ली पुलिस ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर पटियाला हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने की मांग की है जिसमें निर्भया के दोषियों के डेथ वॉरंट पर अमल पर रोक लगा दी गई है। सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दोषियों पर कानून के दुरुपयोग का आरोप लगाया। अब दोषियों के वकील दलील रख रहे हैं।
मुकेश की ओर से वकील की दलील
दोषी मुकेश की ओर से वकील रेबेका जॉन ने कहा कि मौजूदा मामले में निचली अदालत से जारी आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती, जब दोषी को कहा गया कि वही निचली अदालत के आदेश को यहां चुनौती नहीं दे सकता, इसके लिए उसे सुप्रीम कोर्ट जाना होगा तो यही नियम केंद्र पर भी लागू होना चाहिए।
दूसरी आपत्ति यह है कि केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हाल में जिस नियम के संशोधन की मांग रखी है, उसी से जुड़ी मांग लेकर यहां आती है क्योंकि वह जानती है कि मौजूदा नियमों के मुताबिक दया याचिका खारिज होने के बाद दोषियों को फांसी दिए जाने से पहले 14 दिनों का वक्त मिलता है और संबंधित नियम को लेकर स्पष्टता नहीं है। लेकिन सह दोषियों की याचिकाओं पर जो फैला आएगा, उससे मेरे उपचार के रास्ते फिर खुल सकते हैं। फांसी की सजा पाने वाले दोषियों के भी अधिकार हैं। जघन्य अपराध के ही दोषी क्यों न हों, उनके भी अधिकार हैं। मुझे पता है कि फांसी दी जानी है पर बस इतना चाहता हूं कि कानून के मुताबिक हो।
दोषियों के वकील की दलील
दोषियों के वकील एपी सिंह ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने बिल्कुल सही आदेश पारित किया है। एपी सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और संविधान की ओर से फांसी के लिए कोई समय निर्धारित नहीं है। दया याचिका खारिज होने पर 14 दिन का समय मिलता है। नियमों के मुताबिक दया याचिका खारिज होने के बाद दोषी को अपने बचे हुए काम निपटाने के लिए 14 दिनों का वक्त मिलता है।
सिंह ने कहा कि दोषी राम सिंह की जेल में हत्या कर दी गई थी जो मुकेश का भाई था। दोनों राजस्थान से हैं। इस पर जज ने सिंह से पूछा कि वह रामसिंह का मुद्दा क्यों उठा रहे हैं जब वह है ही नहीं, यह मामला रामसिंह से नहीं जुड़ा है। सिंह ने कहा कि सारे मामले आपस में जुड़े हुए हैं और न्याय के हित में इसका जिक्र जरूरी है। हालांकि जज ने उन्हें तर्कसंगत दलीलें देने के लिए कहा।
सॉलिसिटर जनरल ने क्या कहा?
सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता सरकार का पक्ष रख रहे हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दोषियों ने जानबूझकर देरी की। उन्होंने कहा कि एक बार सुप्रीम कोर्ट दोषियों पर अंतिम फैसला सुना देता है तो उन्हें अलग-अलग फांसी दिए जाने में कोई बाधा नहीं है। जेल नियमों के मुताबिक, एक अंतिम कानूनी उपचार जो फांसी को टाल सकता है वह है सुप्रीम कोर्ट के सामने स्पेशल लीव पिटिशन।
उन्होंने कहा कि दिल्ली कारागार नियमावली 2018 के मुताबिक अगर किसी एक अपराधी की एसएलपी लंबित हो तो बाकी के दोषियों की फांसी भी होल्ड हो जाएगी, पर यह नियम दया याचिका के संबंध नहीं रखता। निचली अदालत ने जिसको आधार बनाते हुए सभी दोषियों कि फांसी स्थगित कर दी।
'दोषी के इरादे खतरनाक'
मेहता ने कहा कि मुकेश ने कानून का दुरुपयोग किया, उसने दया याचिका खारिज किए जाने के फैसले तक को चुनौती दी और वह भी खारिज हो गई है।
पवन की और से सातवीं बार अपील दायर की गई है, अभी दया याचिका का तो इंतजार हो रहा है। मुकेश की ओर से तो निचली अदालत के सामने यह भी कहा गया है कि वह आगे नए सिरे से दया याचिका दायर करेगा। दोषी के कितने घातक इरादे सामने आ रहे हैं, दोबारा से दया याचिका तभी दायर हो सकती है जब परिस्थितियों में किसी तरह का बदलाव हो।
मेहता ने कोर्ट को सभी दोषियों की कानूनी राहत के विकल्प के स्टेटस का चार्ट सौंपा। उन्होंने कहा कि दोषियों के रवैये से साफ है कि वो कानून का दुरूपयोग कर रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस, दोनों ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका देकर कहा है कि 'निर्भया के चारों दोषियों ने कानून का मजाक बनाकर रख दिया है।'