दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं है, मात्र उसके लिए जो जिद और मेहनत लगती है वो कुछ ही विरले लोगों में होती है, इसीलिए वे महान कहलाते हैं
इस बार ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री मोदीजी ने कामेगौड़ा नाम के व्यक्ति का उल्लेख किया, इसलिए जिज्ञासावश उनके बारे में जानकारी प्राप्त की और जानकर सचमुच नतमस्तक हो गयी। बिहार के दशरथ मांझी ने पहाड़ तोड़कर मार्ग तैयार किया था, तो कामेगौड़ा ने एक या दो नहीं तो पूरे 14 तालाब खोद कर तैयार किये हैं। 85 वर्ष की आयु के इस अवलिया को वृद्ध कहना गलत होगा, इतना इनका उत्साह अगाध है।
कामेगौड़ा का घर कर्नाटक के मांड्या गांव के डासनाडोड्डी में है। वे गड़रिये हैं और कुंदिनीबेट्टा गांव के पास भेड़ चराते हैं। 40 वर्ष पूर्व जब वे पहाड़ी पर बकरियां चराने ले जाते थे, तब जानवरों के लिए वहां पीने का पानी नहीं है, यह बात उनके ध्यान में आयी। पहाड़ी होने के कारण वहां बरसात का पानी रुकता नहीं था और नीचे की ओर बह जाता था। तब उनके दिमाग में तालाब बनाने की कल्पना आयी।
शुरू में वे अपनी लाठी से गड्ढा खोदते थे, लेकिन फिर यह काम कठिन होता गया, तब उन्होंने कुछ औजार खरीदने का सोचा। एक साधारण गड़रिये के पास इतने पैसे कहां से होते, लेकिन कहते हैं, जहां चाह वहां राह, उन्होंने कुछ भेड़ें बेचकर पैसा जमा किया और उससे खुदाई के औजार खरीदकर गड्ढे खोदने का काम अविरत जारी रखा।
गड्ढों का रूपांतर तालाब में होता गया और जैसे जैसे जानवरों को पानी मिलता गया, कामगौड़ा का उत्साह बढ़ता गया। किसी की निंदा या उपहास की तरफ ध्यान न देते हुए उन्होंने रोज सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक और कभी-कभी तो लालटेन की रोशनी में भी वे तालाब खोदने का काम करते रहे। उनके इस जुनून को देखकर वहां के लोग ‘मॅडमॅन’ कहते थे।
अशिक्षित कामेगौड़ा ने पानी के प्रवाह की टेक्निक केओ भी समझा। वे सिर्फ रात को घर जाते हैं और दिनभर पहाड़ी और तालाब की देखभाल करते हैं। उनके इस अद्भुत कार्य के लिए उन्हें कई पुरस्कार और धनराशि मिली। पुरस्कार स्वरूप मिले 12 से 15 लाख रुपए घर के लिए उपयोग न करते हुए उन्होंने उन पैसों से तालाब खुदाई में काम आनेवाले कुछ और औजार खरीदे। 2017 तक केवल छ: तालाब बन पाए थे, किंतु पिछले एक डेढ़ वर्ष में कई लोग उनसे जुड़े, जिससे तालाबों की संख्या अब दोगुनी से ज्यादा हो गयी है।
विशेष बात यह है कि उनके बनाए गए 14 तालाब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होंने अपने बनाये पहले तालाब का नाम गोकर्ण रखा है और तालाबों को आपस में जोडऩे वाले मार्गों के नाम राम और लक्ष्मण रखे हैं। उन्होंने उस पहाड़ी पर बरगद के लगभग 2000 पेड़ भी लगाए हैं। उनके नाम के पीछे लगे ‘केरे’ का अर्थ तालाब होता है। प्रकृति को तालाबों का इतना सुंदर उपहार देने वाले ध्यायासक्त कामेगौड़ाजी के सामाजिक कार्य को शतशत प्रणाम।
– साभार