नई दिल्ली
नैशनल पॉपुलेशन रजिस्टर को अपडेट करने को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद कुछ विपक्षी दल इसे गुप्त रूप से एनआरसी लागू करने की कवायद ठहरा रहे हैं। गृह मंत्री अमित शाह इसका खंडन कर चुके हैं कि दोनों का आपस में कोई संबंध नहीं हैं। एनपीआर और एनआरसी को लेकर अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं। डिटेंशन सेंटरों को लेकर भी अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं। ऐसे में एनआरसी और एनपीआर की पूरी कहानी को समझना जरूरी है। अफवाहों से बचने के लिए भी जरूरी है कि यह समझा जाए कि एनआरसी को लेकर कब क्या हुआ, क्या एनआरसी और एनपीआर का आपस में रिश्ता है। सबसे पहले बात करते हैं एनआरसी को लेकर जताई जा रही आशंकाओं की।
NRC को लेकर जताई जा रही आशंका
सरकार संसद से लेकर उससे बाहर तक बार-बार जोर देकर कहती रही कि संशोधित नागरिकता कानून से कोई भी भारतीय प्रभावित नहीं होगा क्योंकि यह भारतीय नागरिकों के लिए है ही नहीं। इसके बाद भी देशभर में इस नए कानून के खिलाफ उग्र प्रदर्शन हुए या जारी हैं जिसके पीछे बड़ी वजह इसे एनआरसी से जोड़कर देखा जाना है। CAA को मजहब के आधार पर भेदभाव वाला कानून बताकर विरोध हो रहा है। यह कहा जा रहा है कि जब देशभर में एनआरसी लागू होगी तो उस वक्त नागरिकता साबित करने के लिए जरूरी दस्तावेज मुहैया नहीं करा पाने वाले गैर-मुस्लिम तो CAA की वजह से नागरिक बन जाएंगे लेकिन मुस्लिम अवैध घुसपैठिया करार दे दिए जाएंगे। हालांकि, सरकार इन आशंकाओं को सिरे से खारिज कर रही है और लोगों को ऐसी अफवाहों से बचने की सलाह दे रही है।
NPR से जुड़ी अधिसूचना कब जारी हुई?
एनपीआर से जुड़ी अधिसूचना को इसी साल 31 जुलाई 2019 को जारी किया गया था। इसे 2003 के सिटिजनशिप रूल्स (रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटिजंस ऐंड इश्यू ऑफ नैशनल आइडेंटिटी कार्ड्स) के तहत नोटिफाई किया गया है।
NPR क्या है?
नैशनल पॉपुलेशन रजिस्टर यानी एनपीआर भारत में रहने वाले सामान्य निवासियों का एक रजिस्टर है। गौर करने वाली बात यह है कि यह भारतीय नागरिकों का नहीं बल्कि यहां रहने वाले लोगों (निवासियों) का रजिस्टर है। इसे ग्राम पंचायत, तहसील, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जाता है। नागरिकता कानून, 1955 और सिटिजनशिप रूल्स, 2003 के प्रावधानों के तहत यह रजिस्टर तैयार होता है। NPR को समय-समय पर अपडेट करना एक सामान्य प्रक्रिया है और इसका उद्देश्य देश में रह रहे लोगों का अपडेटेड डेटाबेस तैयार करना है ताकि उसके आधार पर योजनाएं तैयार की जा सकें।
क्या NPR के बाद NRC की तैयारी है?
सरकार का कहना है कि एनपीआर और एनआरसी का आपस में कोई संबंध नहीं है। दूसरी तरफ विपक्ष खासकर कांग्रेस ने एनपीआर को एनआरसी की दिशा में पहला कदम बताते हुए सरकार पर झूठ बोलने का आरोप लगाया है। हालांकि, जिन नियमों के तहत एनपीआर की प्रक्रिया नोटिफाई की गई है, उसके मुताबिक यह एनआरसी से जुड़ी है। अगर सरकार एनपीआर को एनआरसी से अलग करती है तो उसे नियमों में बदलाव करना पड़ेगा।
सरकारी दस्तावेजों में जिक्र- एनआरसी की दिशा में NPR पहला कदम
सरकारी दस्तावेजों में ही इस बात का जिक्र है कि नैशनल पॉपुलेशन रजिस्टर एनआरसी की दिशा में पहला कदम है। सरकारी वेबसाइट censusindia.gov.in पर भी इसका जिक्र है। वेबसाइट में यूपीए सरकार के दौरान 2011 की जनगणना के संबंध में 'अक्सर पूछे जाने वाले सवाल' (FAQ) में इसका जिक्र है। NPR को लेकर FAQ में एक सवाल है कि क्या एनपीआर के तहत रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है? इसके जवाब में लिखा गया है 'नागरिकता कानून में 2004 में हुए संशोधन के मुताबिक सेक्शन 14 के तहत किसी भी नागरिक के लिए एनपीआर में रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है। नैशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटिजंस के लिए पंजीकरण कराना जरूरी है और एनपीआर इस दिशा में पहला कदम है।'
गृह मंत्रालय की 2008-09 की सालाना रिपोर्ट में भी जिक्र
सेंसस इंडिया की वेबसाइट के अलावा यूपीए सरकार के ही दौरान गृह मंत्रालय की 2008-09 की रिपोर्ट में भी इस बात का जिक्र है, 'एनपीआर तैयार हो जाने के बाद स्वतंत्र रूप से नैशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटिजंस (NRIC) को एनपीआर के सबसेट के तौर पर बनाना मुमकिन होगा।' (रिपोर्ट देखने के लिए क्लिक करें, पेज नंबर 146 देखें) इसके अलावा 2012 में गृह मंत्रालय की तरफ से संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में भी यही कहा गया था कि नैशनल पॉपुलेशन रजिस्टर एनआरसी तैयार करने की दिशा में पहला कदम है।
क्या हैं डिटेंशन सेंटर?
सबसे पहले तो डिटेंशन सेंटर क्या है इसे समझना जरूरी है। डिटेंशन सेंटर में अवैध अप्रवासियों को रखा जाता है, जिन्हें ट्राइब्यूनल/अदालतें विदेशी घोषित कर देती हैं। या ऐसे विदेशियों को रखा जाता है, जिन्होंने किसी जुर्म में सजा काट ली हो और अपने देश डिपोर्ट किए जाने का इंतजार कर रहे हों। विदेश कानून, 1946 के सेक्शन 3(2)(सी) में केंद्र सरकार के पास भारत में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों को उनके देश भेजने का अधिकार है। राज्य भी डिटेंशन सेंटर स्थापित कर सकते हैं।
डिटेंशन सेंटरों का एनआरसी से क्या लेना देना है?
असम में एनआरसी निवासियों की एक सूची है जिससे ये पहचान की जा सकती है कि कौन यहां का मूल निवासी है और अवैध शरणार्थी का पता लगाया जा सकता है। 2013 में, तमाम रिट याचिकाओं के जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने भारत के रजिस्ट्रार जनरल को ये निर्देश दिया कि इस साल 31 अगस्त तक एनआरसी की अपडेट लिस्ट जारी करें। ये प्रक्रिया 2015 में शुरू हुई थी और बीती 31 अगस्त को ये लिस्ट जारी कर दी गई। इसमें जगह बना पाने में 19.07 लाख आवेदक विफल रहे। असम की एनआरसी लिस्ट में जगह न बना पाने वाले लोगों के पास फॉरेनर्स ट्राइब्यूनल और उसके बाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प है। अगर उनका मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और वे वहां भी अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए तो वे अवैध घुसपैठिया ठहराए जाएंगे और ऐसे लोगों को डिटेंशन सेंटरों में रखा जाएगा।
डिटेंशन सेंटरों पर यूपीए सरकार ने संसद में दिया था यह जवाब
13 दिसंबर 2011 को तत्कालीन गृह राज्यमंत्री एम. रामचंद्रन ने लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में बताया था कि सरकार ने असम में 3 डिटेंशन सेंटरों (गोलपारा, कोकराझार और सिलचर में) को स्थापित किया है। मंत्री ने अपने जवाब में यह भी बताया था कि नवंबर 2011 तक विदेशी/अवैध प्रवासी घोषित किए गए 362 लोगों को इन तीनों डिटेंशन सेंटरों में भेजा गया था।