देखी सुनी

एक पत्थर की भी तकदीर संवर सकती है, शर्त यह है कि सलीके से तराशा जाए

अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस

साक्षरता आज की सबसे बड़ी जरूरतों में से एक है। इसका सामाजिक एवं आर्थिक विकास से गहरा संबंध है। दुनिया से निरक्षरता को समाप्त करने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने 17 नवंबर, 1965 के दिन 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस मनाने का फैसला लिया था।

1966 में पहला विश्व साक्षरता दिवस मनाया गया
दुनियाभर में 1966 में पहला विश्व साक्षरता दिवस मनाया गया था। जिसके बाद से पूरी दुनिया में अशिक्षा को समाप्त करने के संकल्प के साथ अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस आठ सितंबर को हर साल मनाए जाने की परंपरा जारी है। इसका उद्देश्य व्यक्तियों और समुदायों में साक्षरता के महत्व को रेखांकित करना है। प्रत्येक वर्ष एक नए उद्देश्य के साथ विश्व साक्षरता दिवस मनाया जाता है। वर्ष 2009-2010 को ‘संयुक्त राष्ट्र साक्षरता दशकÓ घोषित किया गया था।

साक्षरता का मतलब केवल पढऩा-लिखना या शिक्षित होना ही नहीं है। यह लोगों में उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरुकता लाकर सामाजिक विकास का आधार बन सकती है। गरीबी उन्मूलन में इसका महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। महिलाओं एवं पुरुषों के बीच समानता के लिए जरूरी है कि महिलाएं भी साक्षर बनें। केरल ने 90.86 प्रतिशत साक्षरता दर के साथ शीर्ष पर अपनी स्थिति बरकरार रखी है। केरल देश में 94.24 प्रतिशत की पुरुष साक्षरता और 87.72 प्रतिशत की स्त्री साक्षरता है।

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