गोण्डा
जंगे कर्बला इंसानियत और हक की पहचान है। हजरत इमाम हुसैन ने अपने 72 साथियों के साथ शहादत देकर न सिर्फ इस्लाम को जिंदा किया बल्कि इंसानियत का भी पैगाम दिया। हजरत इमाम हुसैन की शहादत तमाम मज़हबों को मानने वालों के लिए हक और बातिल में फर्क करने का पैगाम भी है। यह जिक्र मौलाना शाकिर ने डा. वसी हैदर के अजाखाने में हुई मजलिस के दौरान किया।
उन्होंने कहा कि समाज में कर्बला के वाकए के बारे में जानने वाले इसीलिए मौला हुसैन के शैदाई हैं। उन्होंने कहा कि मजलिसे हुसैन और जुलूसे मोहर्रम इसीलिए मनाया जाता है ताकि लोग जंगे कर्बला को महज़ एक जंग न समझे बल्कि एक दर्सगाह समझे। जहां से तमाम आलम के लिए एक ऐसा पैगाम और ऐसी कुर्बानी पेश की गई जो रहती दुनिया तक जिंदा रहेगी। मौलाना ने कहा कि यही वजह है कि आज सभी समुदायों के लोग मोहर्रम में शिरकत करतें हैं और इजहारे गम करते हैं।
उन्होंने कहा कि मजलिसे हुसैन का मकसद लोगों को शिया और सुन्नी या मुसलमान बनाना नहीं बल्कि हुसैनी बनाना है। इस मौके पर रजा हुसैन रिजवी, कल्बे आबिद, मोहसिन, कासिम, इमरान सदफ, कमाल, सद्दन, आरजू कमाल समेत तमाम सोगवारान मौजूद रहे।