नई दिल्ली
भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती की भूमिका काफी लंबे समय से बन रही थी. यह अचानक नहीं आई है जैसा कि बहुत से लोग कह रहे हैं या जैसा कि हाल के महीनों में ट्रकों की बिक्री में अचानक गिरावट से संकेत मिल रहा है. इसके अलावा, वस्तुओं की सतह से ढुलाई के आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले दशक की तुलना में इस दशक में इसमें तेज गिरावट आई है. इसके संकेत माल ढुलाई और हाई स्पीड डीजल की खपत में गिरावट से भी समझे जा सकते थे.
दीर्घकालिक सुस्ती का निहितार्थ संरचनात्मक प्रकृति का है जिसके शुरुआती संकेतों को या तो नजरअंदाज किया गया या उनका कोई उपाय नहीं किया गया और अब इसके लिए दीर्घकालिक समाधान की जरूरत होगी. अब इसे दूर करने को कोई शॉर्टकट या तात्कालिक तरीका नहीं है.
रेलवे ढुलाई में गिरावट
भारतीय रेलवे द्वारा की जा रही ढुलाई अर्थव्यवस्था की सेहत का अच्छा संकेतक होती है. माल ढुलाई की मात्रा मापने के लिए रेलवे दो सूचकांकों का इस्तेमाल करता है- कमाई कराने वाला माल लदान (सभी स्टेशनों का, मिलियन टन MT में) और कमाई कराने वाली, एक दूरी तक होने वाली माल ढुलाई, अरब टन किलोमीटर BTK में).
साल 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण में 1950-51 से अब तक (2018-19, प्रॉविजनल) के आंकड़े दिए गए हैं. साल 2000-01 में माल लदान 473.5 MT था, जो वर्ष 2011-12 में बढ़कर 969.1 MT और 2018-19 में 1221.39 MT तक पहुंच गया. इस प्रकार 2000-01 से 2011-12 के बीच माल लदान 104.67% बढ़ गया. इन 12 वर्षों में इसमें सालाना औसतन 8.7 फीसदी की बढ़त हुई.
लेकिन मौजूदा दशक में साल 2011-12 से 2018-19 के बीच इसमें कुल 26.03 फीसदी की ही बढ़त हुई और पिछले आठ साल में सालाना औसत बढ़त महज 3.25 फीसदी की है.
इसी प्रकार साल 2000-01 में माल ढुलाई 312.4 BTK की थी जो वर्ष 2011-12 में बढ़कर 667.6 BTK तक और 2018-19 में 700.6 6 BTK तक पहुंच गई. इस प्रकार माल ढुलाई 2011-12 से 2018-19 के बीच लगभग स्थिर रही है.
यानी 2000-01 से 2011-12 के 12 साल के बीच जहां माल ढुलाई में 113.7 फीसदी की जबरदस्त बढ़त हुई, वहीं 2011-12 से 2018-19 के बीच इसमें महज 4.9 फीसदी की बढ़त हुई.